नई दिल्ली 08 नवंबर। रिजर्व बैंक सावधानी के साथ आगे बढ़ रहा है। लेकिन साहस दिखाने की जरूरत ने हाल में बैंकों की गतिविधियों को नियंत्रित करने वाले नियमों को आसान बना दिया है। केंद्रीय बैंक के पास गलत व्यवहार पर लगाम लगाने के लिए पर्याप्त साधन हैं। गवर्नर संजय मल्होत्रा ने स्पष्ट किया कि बैंकों पर बढ़ी हुई जिम्मेदारियां उनके बेहतर प्रदर्शन और गवर्नेंस के कारण हैं। मल्होत्रा ने मुंबई में एक कार्यक्रम में कहा, आरबीआई सूक्ष्म प्रबंधन नहीं करना चाहता। कोई भी नियामक बोर्डरूम के फैसले का स्थान नहीं ले सकता और न ही लेना चाहिए।
हर मामले को विनियमित संस्थान की योग्यता के आधार पर देखा जाना चाहिए। मल्होत्रा ने कहा, अल्पकालिक वृद्धि के पीछे भागते हुए वित्तीय स्थिरता से समझौता करने से विकास पर दीर्घकालिक प्रभाव के रूप में लागत बढ़ सकती है। आर्थिक हित के लिए दक्षता व नवाचार को बढ़ावा देना जरूरी है। यह आरबीआई का भी कर्तव्य है। जिस तरह कोई मुफ्त भोजन नहीं होता, उसी तरह स्थिरता बढ़ाने के लिए नियमन भी बिना लागत के नहीं हो सकता है।
तेज चलने से लग सकती है ठोकर
आरबीआई गवर्नर ने कहा, ये सभी उपाय संतुलित और उचित हैं। यह एक दशक में व्यवस्थित रूप से सुदृढ़ की गई बैंकिंग प्रणाली की नींव पर आधारित हैं, जिसमें वित्तीय स्थिरता नीतिगत ढांचे की अटूट आधारशिला बनी हुई है। शेक्सपियर के नाटक रोमियो एंड जूलियट का हवाला देते हुए मल्होत्रा ने संकेत दिया कि केंद्रीय बैंक बुद्धिमानी और धीमी गति से आगे बढ़ेगा, क्योंकि तेज चलने से ठोकर लग सकती है।
अस्थिर वृद्धि को कम करने के लिए होगी कार्रवाई
आरबीआई बैंकों की अस्थिर वृद्धि को कम करने के लिए कार्रवाई भी कर सकता है। मसौदा तैयार है। फीडबैक लेने के बाद अंतिम रूप दिया जाएगा। मल्होत्रा ने कहा, नियामक की भूमिका माली के समान है। जैसे माली पौधे की वृद्धि पर नजर रखता है और अवांछित वृद्धि को काट देता है, उसी तरह हम भी बैंक कर्ज में अवांछित वृद्धि पर लगातार नजर रखते हैं।
