Monday, December 23

क्षत्रिय समाज की यह बात तो सही है, फिल्में टीवी सीरियल और वेब सीरीज ठाकुरों सहित कई जातियों की छवि खराब करने में निभा रहे हैं अग्रणी भूमिका

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400 रियासतों 40 लाख एकड़ जमीन और हजार से ज्यादा साम्राज्य दान करने वाले क्षत्रिय समाज की हो रही है उपेक्षा। जिसकी जितनी हिस्सेदारी उतनी उसकी साझेदारी के हिसाब से इस समाज को राजनीति में मिले हिस्सेदारी की मांग के साथ ही मेरठ-सहारनपुर मंडल के क्षत्रियों के सम्मेलन में 2024 के लोकसभा चुनाव में पूर्व विधायक संगीत सोम को टिकट देने की पुरजोर मांग उठी। साकेत स्पोर्टस क्लब के मैदान में गत रविवार को अध्यक्ष राजपूत उत्थान सभा ओमकार चौहान मटौर की अध्यक्षता में हुई बैठक में भले ही क्षत्रिय समाज के नामचीन नेता नजर ना आए हो लेकिन उपस्थितों की संख्या को देखकर संगीत सोम की लोकप्रियता खुलकर नजर आई। वक्ताओं ने स्पष्ट कहा कि पहले बादशाह अकबर ने राजपूत समाज की छवि को दूषित किया और अब सिनेमा ने ठाकुरों को गुंडा, लूटेरा और दुष्कर्मी दिखाकर उनकी छवि बर्बाद की है। इससे दूसरी जातियों के मन में ऐसी बात भरी जा रही है। जबकि ठाकुरों ने ऐसा कभी नहीं किया। वक्ताओं ने कहा कि पश्चिमी उप्र में 15 प्रतिशत आबादी के साथ सबसे बड़ा समाज राजपूत है। इसलिए राजनीतिक भागीदारी पाने का प्रयास करें। पहले 14 लोकसभा सीटों में सात क्षत्रियों की होती थी। उसे वापस लाने के लिए संगठित हों। मंच से सभा के आयोजक पूर्व विधायक ठाकुर संगीत सोम ने कहा कि अलीगढ़ से लेकर कश्मीर तक हमास के समर्थन में प्रदर्शन हो रहे हैं। अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी जैसी संस्थाओं में ताले डाल देने चाहिए। पश्चिमी उप्र का विरोध करते हुए कहा गया कि एक विशेष वर्ग के दुकानदारों से सामान खरीदने का बहिष्कार कर सकते हैं। तौकीर रजा जैसे लोगों को जेल में डाला जाना चाहिए। इस मौके पर महाराजा दलपत सिंह की चर्चा करते हुए कहा गया कि उन्होंने भी इसराइल के लिए बिना हथियार के लड़ाई लड़ी थी। यह भी मांग उठी कि इतिहासकारों की कमेटी या आयोग बने। संगीत सोम ने बिना किसी का नाम लिए कहा कि राजपूत समाज सभी को जोड़कर चलता है। चाहे वह गुर्जर समाज हो या अन्य कुछ छुटभैये नेता राजनीति के तहत आग लगाने का काम कर रहे हैं। सम्मेलन में सभी को पगड़ी पहनाकर सम्मान किया गया। क्षत्रिय चेतना चिंतन सम्मेलन में बोलते हुए पूर्व विधायक ने खबरों के अनुसार कहा कि हमास का समर्थन करने वाले गददार हैं। उन्हें जवाब देने की जरूरत है। कुशल कुशवाहा तथा मोंटी सोम के संचालन में चले सम्मेलन में किसने क्या कहा और क्या मांग की यह तो एक अलग बात है मगर हमेशा से ही प्रखर स्पष्टवादी संगीत सोम के इस कथन से मैं ही क्या समाज के ज्यादातर निष्पक्ष सोच वाले लोग सहमत होंगे कि सिनेमा और वर्तमान में ओटीटी पर दिखाई जाने वाली वेबसीरीज में ठाकुरों सहित कई जातियों को विशेषकर गुंडा लुटेरा, अपहरणकर्ता और दूसरों के उत्पीड़न कर्ता के रूप में दिखाकर उनकी छवि तो खराब की ही जा रही है। मेरा मानना है कि जिस प्रकार हाथ की पांचों अंगुलियां एक समान नहीं होती उसी प्रकार समाज के सभी व्यक्ति एक समान नही होते। दूसरी तरफ कानून और समाज भी कहता है कि निर्दोषों का उत्पीड़न और बेकसूरों को सजा नहीं होनी चाहिए। इसलिए मुझे लगता है कि दलित पिछड़ों और कमजोरों को सरकार हर तरह की सुविधाएं उपलब्ध कराएं। बच्चे आगे बढ़कर देश की बागडोर संभाले ऐसा माहौल बनाया जाए लेकिन प्रायोजित तरीकें से किसी समाज को दोषी ठहराना उचित नहीं लगता। सबसे बड़ी बात तो यह है कि अब किसी को जाति का नाम लेकर बदनाम करने की बजाय वर्तमान परिस्थितियों पर ध्यान देकर एकता और विकास का माहौल तैयार करें तो ज्यादा अच्छा है। आए दिन खबरों में छपता है कि जाति का नाम लेकर किसी का उत्पीड़न हुआ। मेरा मानना है कि व्यक्ति का उत्पीड़न हुआ तो जाति के नाम पर जहर धोलने की जरूरत क्या है। फिल्मों, कार्यक्रमों और वेबसीरीज में व्यापारियों को जमाखोर ठाकुरों आदि को गुंडा जैसे चरित्र में दिखाने पर पूर्ण रूप से प्रतिबंध लगाया जाए। अगर सीन के अनुसार कोई पात्र दिखाया जाना है तो उसकी जाति नहीं नाम का उल्लेख होना चाहिए।

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