देर से ही सही भारत निर्वाचन आयोग द्वारा चुनाव के दौरान झूठी शिकायतें हार के बाद होने वाली फजीहत से बचने के लिए जो की जाती है उनकों करने वालों के खिलाफ अब आयोग कार्रवाई कर सकता है। मैं पिछले कई दशक से यह आवाज उठाता रहा हंू कि चुनाव आचार संहिता घोषित होने और उम्मीदवारों की घोषणा के बाद जो शिकायतें आती हैं उन पर बहुत गंभीरता से विचार और फिर कार्रवाई करनी चाहिए क्योंकि ऐसा करने वालों के विरूद्ध अभी तक कोई कार्रवाई नहीं की जा रही थी। इसलिए जो भी उम्मीदवार हारने की स्थिति में होता था वह खुद या उसके लोग या पार्टी आयोग में जाकर चुनाव में गडबड़ होने की शिकायत करते थे और उसी के आधार पर जीतने वालों के विरूद्ध अदालत में वाद दायर कर समय की बर्बादी होने की संभावनाएं बनती थी। लेकिन अगर अब आयोग ने जो यह प्रयास शुरू किया है। उस पर कार्रवाई की गई तो इसके अच्छे परिणाम निकलकर सामने आएंगे। स्मरण रहे कि पूर्व निर्वाचन आयुक्त टीएन शेषन द्वारा की गई सख्ती और मतदान में गडबड़ी रोकने के प्रयास से निर्वाचन आयोग की छवि में अलग ही निखार आया था। तब से हर निर्वाचन आयुक्त नियमों का पालन कराने का प्रयास करते हैं। ऐसे में अगर झूठी शिकायतों पर कार्रवाई होने लगी तो शिकायतों में कमी आएगी। और निर्वाचन आयोग के साथ ही अदालतों का समय बचेगा जो इन शिकायतों के चक्कर में खराब होता था। इस अच्छे और जनहित के निर्णय के लिए मेरा मानना है कि सभी राजनीतिक दलों के नेताओं को चुनाव आयोग की प्रशंसा करनी चाहिए। क्योंकि ऐसा करने वालों में कोई एक नहीं काफी लोग शामिल होते थे। जिसे हारने की उम्मीद लगी तो वो शिकायत दर्ज कराकर बेफिक्र हो जाता था। कि अब अगर पराजय मिलती है तो यह कहा जा सकता है कि मैं तो पहले ही बता चुका हूं कि गडबड़ होंगी।
झूठी शिकायतों के संदर्भ में चुनाव आयोग का निर्णय है सराहनीय
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