Friday, November 22

रेमंड के गौतम सिंघानिया और पूर्व कृषि अधिकारी के बेटे ने जो किया वो शर्मनाक है, हम लेने की बजाए मां बापों को देने और उनकी सेवा करने का संकल्प ले तो संपत्ति की लड़ाई खत्म हो सकती है

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जब आंख खुली तो पैदा होने के बाद समझ आई तो ज्यादातर मौकों पर सुनने को मिलता था कि पूत का पूत कहे धन संचय पूत सपूत कहे धन संचय जब थोड़ा बड़े हुए तो समझ आया तो यह था कि अगर बच्चे समझदार और होशियार है तो तुम्हारा नाम और दाम काम सब बढ़ा लेंगे और नासमझ हो तो जो तुम कमाआगें तो वो भी गंवा देंगे। इसके अलावा हर व्यक्ति हमेशा कभी संतानों की बात चलती है तो यही कहते सुना जाता है कि जब तक जिंदा हो सब कुछ अपने पास रखना औलाद के नाम मत करना वर्ना दर की ठोकरें खोने और भूखा रहने के लिए मजबूर होना पड़ सकता है।
आज जब समाचार पत्र पढ़ने बैठा तो एक ही समाचार पत्र में दो खबरें बाप बेटों के संदर्भ में पढ़ने को मिली जिन्होंने हिलाकर रख दिया और यह सोचने को मजबूर होना पड़ा कि अगर ऐसी धारणा लोगों की बनती चली गई तो बच्चे या मां बाप एक दूसरे के साथ ऐसा धोखा करेंगे तो विश्वास की जो नींव है जिस पर सारी व्यवस्था ही टिकी हुई है वो पूरी तरह हिल जाएगी।
1900 में महाराष्ट्र के ठाणे में वुलन मील के तौर पर एक कंपनी शुरू हुई जो मील सेना के जवानों के लिए यूनिफॉर्म बनाती थी। 1940 में कैलाशपथ सिंघानिया जी द्वारा इसके खरीदकर रेमंड का नाम दिया गया। द कम्पलीट मैन से लेकर फिल्स लाईक हेवन तक इसकी स्लोगन ने लोगों को रेमंड से जोड़ा। 1980 में विजयपथ सिंघानिया ने रेमंड की कमान संभाली और ठीक 2015 में 1000 करोड़ के सारे शेयर और 12000 करोड़ की कंपनी बेटे गौतम को सौंप दी। उसके बाद जो रिश्ते बिगड़े तो पुत्र ने खबर के अनुसार अपने ही बाप को हराकर सड़कों पर अकेला घूमने और दरदर भटकने के लिए छोड़ दिया। शायद इसीलिए अपने एक ताजा साक्षत्कार में विजयपत सिंघानिया का कहना था कि जीते जी सारी संपत्ति बच्चों को दे दी तो आपके भी मेरे जैसे हाल हो सकते है। और जैसा मेरे बेटे ने कंपनी की कमान लेते ही मुझसे सब छीन लिया आपके साथ भी ऐसा हो सकता है। उनका कहना है कि बच्चों के लिए जो करना है करिए पर जीते जी संपत्ति उन्हें न सौंपे आपके मरने के बाद तो सब उन्हें मिलने वाला ही है। क्योंकि मेरे बेटे ने घर कार और ड्राईवर सब छींन लिये और इतना ही नहीं उस घमंड़ी ने चेयरमैन एमेरिटस लिखने का अधिकार तक मुझसे छींन लिया।
यह तो रही एक बड़े स्तर पर होने वाली घटना दूसरी घटना उप्र के बुलंदशहर के एक कृषि विभाग से सेवानिवृत्त अधिकारी की है जो पिछले दिनों जिलाधिकारी चंद प्रकाश से मिलने पहुंचे और उन्हें बताया कि मेरे बेटे ने मुझसे सब कुछ छिन लिया आप मुझे वृद्ध आश्रम पहुंचा दीजिए फिलहाल मैं अपनी बेटी के यहां रह रहा हूं। संवेदनशील सोच के जिलाधिकारी ने 88 वर्षीय सेवानिवृत्त पूर्व कृषि अधिकारी की सभी बात ध्यानपूर्वक सुन नोएडा में रह रहे दो बच्चों के पिता और अच्छी नौकरी कर रहे वृद्ध के बेटे को टेलीफोन कर उसे समझाया तो बेटा मान गया और बाप को घर ले गया।
डीएम के कहने पर बेटे की ममता जागी है डर के मारे फिलहाल तो वो बुजुर्ग को ले गया लेकिन भविष्य में क्या होगा इस बारे में कोई कुछ नहीं कह सकता। हमारा मानना है कि हाथ की पांचों अंगुलियां सबकी सोच जिस प्रकार से एक नहीं हो सकती उसी प्रकार सारी संतानें और मां बाप भी एक सोच के नहीं होते। हो सकता है कि विजयपंथ सिंघानिया जी और पूर्व कृषि अधिकारी के बेटे इतने नालायक रहे हो लेकिन सबके बारे में ऐसी राय कायम नहीं होनी चाहिए। हां बच्चों में आपकी जायदाद को लेकर जब न रहे कोई हंगामा न हो इसके लिए एक सीधा सरल उपाय अपने जीते जी जिसे जो देना है उसका नाम अपनी बसीयत में शामिल कर ले और उसमें स्पष्ट कर दे कि मेरे बाद इस इस को अगर वसियत की गई उसके अनुसार कुछ बचता है तो इससे इससे यह यह मिलेगा। उसे पहले अगर मां नहीं रहती तो पति का और अगर बाप नहीं रहता तो मां का अधिकार रहेगा एक दूसरे की संपत्ति पर मेरी निगाह में जहां भविष्य में होने वाला विवाद समाप्त होगा और आपसी तालमेल और संबंधो की गरिमा और प्यार भी बना रहेगा।
और सबसे बड़ी बात तो यह है कि वर्तमान में युवाओं को आगे आकर संपत्ति का मोह छोड़ मां बापों की सेवा और उनका ध्यान रखने की व्यवस्था मजबूत करनी चाहिए जिससे इस प्रकार की भावनाऐं जो विजयपत सिंघानिया के साथ उनके बेटे गौतम सिंघानिया तथा सेवानिवृत्त कृषि अधिकारी के बहुराष्ट्रीय कंपनी में उच्च पद पर विराजमान बेटे के द्वारा किया गया। हमें लगता है कि कल को हम भी मां बाप बनेंगे और अगर हमारे बच्चों ने हमारे साथ ऐसा किया तो हमें कैसा लगेगा और तब हम क्या सोचेंगे और उस समय कैसा होना चाहिए बाप के प्रति बेटों का व्यवहार और बेटों के प्रति बाप का। इस सोच को आत्मसात करेंगे तो शायद ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति न होगी। आओ मिलकर मां बापों की सेवा करने और संबंधो को मधुर बनाने की ऐसी शुरूआत करें कि एक दूसरे को किसी से शिकायत न रहे। और अगर वैसे भी मां बाप सही है तभी उन्होंने ये सब पैदा किया जिसे लेकर बच्चे लड़ रहे है। वो क्यों नहीं सोचते कि अगर वो खर्चिले अगर उड़ाने वाले होते तो इतना सब होता ही नहीं जिसे लेकर विवाद हो तो लड़ाई क्यों। और वैसे भी कहते है कि अपने हाथ जन्ननाथ भगवान हमें इतनी ताकद दे कि हमें मां बापों की संपत्ति की ओर न देखना पड़े हम आगे बढ़कर भले ही हम श्रवण कुमार न बन पाए मगर सेवा में कोई कमी न छोड़े।
प्रस्तुतिः अंकित बिश्नोई पूर्व सदस्य मजीठिया बोर्ड यूपी सोशल मीडिया एसोसिएशन एसएमए के राष्ट्रीय महामंत्री संपादक पत्रकार

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