मेरठ 20 जून (प्र)। कम ही लोग जानते होंगे कि बुनकर प्रजाति का हल्के पीले रंग का बया पक्षी गजब का कारीगर होता है। वाटरप्रूफ घोंसला बनाने में माहिर होने के कारण इसे बुनकर पक्षी या टेलर बर्ड भी कहा जाता है। यह पक्षी इंसानों को प्यार का संदेश भी देता है। किसानों का मित्र कहे जाने वाले इस पक्षी को लेकर मेरठ वन विभाग और ग्रीन प्लानेट वेलफेयर संस्था संयुक्त रूप से पहली बार 20 जून को भारतीय बया पक्षी दिवस मना रहे हैं। चिंताजनक पहलू यह है कि इस पक्षी की मेरठ में संख्या घट रही है। इस पक्षी को पक्षियों का इंजीनियर भी कहा जाता है।
वेदव्यासपुरी, रासना, हस्तिनापुर, संजय वन में देखे जाते हैं बया पक्षी
आइपी कालेज बुलंदशहर के वनस्पति विज्ञान विभाग के असिस्टेंट प्रोफेसर और पक्षी प्रेमी डा. यशवंत राय बताते हैं कि मेरठ के वेदव्यासपुरी में बया पक्षी के 125, संजय वन में 30 से अधिक और रासना गांव में 50 से अधिक घोंसले देखे गए हैं। डीएफओ वंदना फोगाट का कहना है कि इस समय जनपद में लगभग 1500 बया पक्षी हैं।
घोंसला बनाने में विशेष घास का करते हैं प्रयोग
वन विभाग के रेंजर विखिल कुमार का कहना है कि यह पक्षी घोंसले बनाने में विशेष घास, सरकंडा और मिट्टी का प्रयोग करते हैं। घोंसले को वाटरप्रूफ बनाने के लिए विशेष तकनीक का इस्तेमाल करते हैं। शिकारियों से घोंसले को बचाने के लिए ऊपरी परत पर कंटीली घास की परत चढ़ाते हैं । खजूर, सेमल, खैर, गूलर के पेड़ पर घोंसला बनाना पसंद करते हैं।
मादा करती है घोंसला को पसंद- नापसंद
असिस्टेंट प्रोफेसर डा. यशवंत राय का कहना है कि बया पक्षी किसानों का मित्र है। कीट पतंगों व कैटरपिलर लार्वा को खाकर फसलों की रक्षा करता हैं। बारिश के मौसम में जब नर पक्षी आधा घोंसला बना लेता है तो मादा पक्षी को घोंसला दिखाने के लिए आवाज लगाकर बुलाता है। यदि मादा को घोंसला पसंद नहीं आता तो नर उसे अधूरा छोड़कर दूसरा घोंसला बनाना शुरू कर देता है। अपने बच्चों को बेहद प्यार करता है।
इसलिए हो रहा बया पक्षी विलुप्त
रेंजर विखिल कुमार और असिस्टेंट प्रोफेसर डा. यशवंत राय का कहना है कि बदलते परिवेश में शहरीकरण, कीटनाशकों के प्रयोग, कंक्रीट के जंगल बढ़ने और तालाब पटने के कारण बया पक्षियों की संख्या तेजी से कम हुई है। पिछले 15 सालों में इनकी संख्या में 40 प्रतिशत की गिरावट आई है। इस पक्षी की उम्र 20 साल होती है।