उप्र में नई शिक्षा नीति और सुधार लागू करने के साथ ही छात्रों को उच्च शिक्षा प्राप्त हो और हर व्यक्ति साक्षर बने तथा राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के रामराज्य और सबको शिक्षा का सपना साकार हो सके इसके लिए यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ के मार्गदर्शन में 50 से कम संख्या वाले स्कूलों केा बंद करने तथा बाकी स्कूलों की जर्जर स्थिति सुधारने के लिए कई जिलों के डीएम और जनप्रतिनिधि आगे आ रहे हैं। कोई एक स्कूल गोद ले रहा है तो कोई तीन। इस व्यवस्था को देखकर प्रथम चरण में यही लगता है कि इस क्षेत्र में अब शिक्षा की लहर चलने के साथ ही पढ़ने योग्य व्यक्ति जल्दी साक्षर बन सकेंगे। क्योंकि जहां फर्जी शिक्षकों की छंटाई करने के अभियान चल रहे हैं और जो वो पकड़े जा रहे हैं उनके खिलाफ कार्रवाई भी की जा रही है। दूसरी तरफ प्रदेश सरकार सभी जिलों में प्राथमिक विद्यालयों में 2026 तक पढ़ाई के प्रति बच्चों में रूझान पैदा करने के लिए बाल वाटिका शुरू करने जा रही है। जिससे लगता है कि भविष्य में शिक्षा के क्षेत्र में और सुधार होने तथा छात्रों की संख्या बढ़नी चाहिए।
लेकिन आजकल स्पष्ट कहने भाईचारा का माहौल कायम करने और सरकार को उसकी जिम्मेदारी का अहसास कराने के लिए सुझाव देने में अग्रणी भूमिका निभाने वाले संघ प्रमुख मोहन भागवत भुवनेश्वर में होने वाले गोडिया वैष्णव सम्मेलन में मुख्य अतिथि के रूप में 13 अगस्त को जाने से पूर्व उनके द्वारा इंदौर में सेवा न्याय द्वारा स्थापित माधव दृष्टि आरोग्य केंद्र के उदघाटन के बाद कहे गए शब्द कि पहले स्वास्थ्य और शिक्षा के क्षेत्र में काम सेवा भाव से होता था लेकिन अब व्यावसायिकता हावी हो गई है। अच्छी सुविधाएं लोगों के लिए जरूरी है लेकिन दुर्भाग्यपूर्ण है कि गुणवत्तापूर्ण सेवाएं आम लोगों की पहुंच से दूर हैं। उन्होंने कैंसर के महंगे इलाज पर कहा कि स्वास्थ्य और शिक्षा पहुंच से बाहर हो रही हैं। भले ही संघ प्रमुख ने यह बात क्यो और किस संदर्भ में कही वह अलग विषय है लेकिन उससे यह अहसास तो होता है कि शिक्षा स्वास्थ्य क्षेत्र में जितना पैसा और जनशक्ति खर्च की जा रही है उसके अनुसार आम आदमी को उसका लाभ नहीं मिल रहा है। इस बात पर केंद्र और प्रदेश सरकारों को अपना पक्ष रखना चाहिए। साथ ही संघ प्रमुख की चिंताओं का ध्यान रखा जाना भी जरूरी है।
आज एक खबर पढ़ने को मिली कि सीबीएसई में कक्षा 9 के छात्र ओपन बुक एसेसमेंट के साथ परीक्षा देना लागू करने को मंजूरी दे दी है। सीबीएसई ने ऐसा क्यों किया यह वो या उसके नीतिकार ही जान सकते हैं लेकिन 2026-27 सत्र के लिए तीन विषयों के लिए दी गई यह मंजूरी मुझे लगता है कि यह बच्चों का भविष्य शिक्षा की महत्ता और समाज की व्यवस्थाओं को बर्बाद करने का काम करेगी। इससे कोई सुधार होने वाला नही है। बताते चलें कि पूर्व में फिनलैंड सिंगापुर, ऑस्ट्रेलिया अमेरिका के कुछ राज्यों में ओपन रिसोर्स टेस्ट होता है उसी प्रकार सीबीएसई ने 2014-15 में ओटीबी शुरू किया था जो 2017 में बंद करना पड़ा।
सीबीएसई के नीतिकारों की सोच से वर्तमान शिक्षा पद्धति किसी भी रूप में मेल नहीं खाती। जब छात्र किताब लेकर बैठेंगे तो परीक्षा क्या देंगी। जब यह डॉक्टर इंजीनियर बनेंगे तो कैसा इलाज करेंगे और जो पुल सड़क बनाएंगे इसका अंदाजा लगाया जा सकता है। मीडिया में सुनने को मिलता है कि नेता अपना इलाज कराने विदेशों में जाते हैं जबकि देश के डॉक्टरों और इंजीनियरों की श्रेष्ठता को देखते हुए दुनियाभर में उनकी मांग है। फिर भी बड़े नेताओं को यहां के इलाज पर भरोसा नहीं है। अब अगर किताब पढ़कर छात्र परीक्षा देंगे तो उसका क्या भविष्य होगा यह कोई भी जान सकता है। क्योंकि हाईस्कूल में जाने के बाद उच्च शिक्षा की शुरूआत होती है लेकिन कमजोर शिक्षा प्राप्त कर बच्चे आगे बढ़ेंगे और भविष्य में यह क्या करेंगे। मेरा मानना है कि केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय को इस बारे में फैसला लेकर सीबीएसई की इस प्रणााली को प्रतिबंधित करना चाहिए।
(प्रस्तुतिः- रवि कुमार बिश्नोई दैनिक केसर खुशबू टाइम्स मेरठ)
सरकार दें ध्यान: स्वास्थ्य और शिक्षा को लेकर महत्वपूर्ण है मोहन भागवत जी का कथन, यूपी सरकार साक्षरता बढ़ाने के कर रही है प्रयास, सीबीएसई बोर्ड की नौंवी में किताब देखकर परीक्षा की नीति लागू हुई तो बच्चों के साथ साथ बड़ों का भी भविष्य पड़ जाएगा खतरे में
Share.