Wednesday, November 12

बेकसूरों को कई कई वर्ष तक जेल में रखना दोषियों को सरकार दे सजा और पीड़ितों को मुआवजा बिना अपराध सजा काट चुके व्यक्तियों को संगठित होकर ?

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बिहार के पश्चिम चंपारण जिले के पिपरा गांव निवासी डकैती के मामले में आरोपित विजय यादव को २१ की उम्र में १९८६ में जेल भेजा गया। और ६० की उम्र में मामले में साक्ष्य के अभाव के चलते उनकी रिहाई हो गई। इसके पीछे जो भी कारण रहे हो लेकिन जनवरी १९९५ को दायर आरोप पत्र के आधार पर जेल गए विजय यादव रिहा भी हो गए लेकिन सवाल उठता है कि ६० साल की जेल काट कर रिहा हुए विजय यादव का कसूर क्या था। इस वक्त और बिना मजबूत तथ्यों के आधार पर उन्हें आरोपित बनाकर जेल भिजवाने वाले हुक्मरान के खिलाफ अब सरकार क्या कार्रवाई कर रही है इससे भी अवगत कराना चाहिए।
सात अक्टूबर १९८६ की घटना पीपरा गांव में घटी। गृह स्वामी शशिकांत दुबे ने थाने में मुकदमा दर्ज कराया। पीड़ित की तरफ से की गई पहल गलत नहीं थी लेकिन सैद्धांतिक व्यवस्था कि भले ही दस दोषी बरी जाएं लेकिन एक निर्दोष को सजा नहीं मिलनी चाहिए को ध्यान में रख जांच कराने की बजाय चौतरवा थाने के उस समय के प्रभारी और अन्य से व्यक्तिगत रूप से पीड़ित को कम से कम एक करोड़ का मुआवजा और उसकी जिंदगी के साठ साल जो जेल में कटे उसका हर्जाना तो नहीं कह सकते लेकिन सहायता जरूर मिले और बिहार सरकार अपनी मशीनरी की गलती पर विजय यादव के परिवार को सहायता दे।
आए दिन समाचार पत्रों में जो पढ़ने सुनने को मिलता है उससे पता चलता है कि कुछ लोग कई कई साल से जेलों में पड़े हैं। उनकी पैरवी और सुनवाई ना होने से कोई इस ओर ध्यान नहीं दे पा रहा है। इसे ध्यान में रखते हुए देश की सभी जेलों की एक कमेटी बनाकर केदियों के अपराध और जेलों में बीत रहे समय की समीक्षा कराकर बिना किसी कारण या सुनवाई के सजा काट रहे कैदियों की समीक्ष बनाकर रिहाई के प्रयास केंद्रीय कानून और गृह मंत्रालय को करने चाहिए। क्येांकि विजय यादव का यह अकेला मामला नहीं हो सकता। पूर्व में भी ऐसी खबरें पढ़ने सुनने को मिल रही है। भगवान ने हमें बहुमूल्य जीवन जीने के लिए दिया है ना कि बिना कारण जेलों में रहने के लिए। मुझे लगता है कि जेलों में कैदियों की समीक्षा का कार्य जल्द किया जाए और इससे बड़ी बात बिना अपराध कई साल जेल में बिताकर निकलने वाले नागरिकों को अपना एक संगठन बनाकर उच्च जनप्रतिनिधियों से मुलाकात शांतिपूर्ण तरीके से अपनी मांगों को पूरा करने के लिए धरना आंदोलन भी गलत नहीं कह सकते।
(प्रस्तुतिः- रवि कुमार बिश्नोई संपादक दैनिक केसर खुशबू टाइम्स मेरठ)

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