Wednesday, November 12

आखिर हम कब तक सरकार से ही मांगते रहेंगे! कागज पर जीएसटी कम करने की मांग करने वालों को अपना मुनाफा और कमीशन घटाएं,बच्चों को सस्ती पुस्तकें मिलने लगेंगी

Pinterest LinkedIn Tumblr +

सब जानते हैं कि बिना आर्थिक संसाधनों के अपनी द्वारा की गई घोषणाओं को केंद्र व प्रदेश सरकार पूरा नहीं कर सकती। बेसहारा गरीब और बेरोजगार नागरिकों द्वारा सरकार जो मांगा जाता है वो उनकी मजबूरी है लेकिन हर तरीके से समर्थ और आर्थिक रूप से मजबूत सर्राफा व्यसायी उद्योगपति या व्यापारी छूट मांगते हैं तो अजीब लगता है और यह सोचने पर मजबूर होना पड़ता है कि यह भी छूट मांगेंगे तो घोषणाओं को पूरा करने और विकास के लिए पैसा कहां से आएगा।
मैं हमेशा सरकार और नौकरशाहों द्वारा कम खर्च किए जाने और नागरिकों से खर्चो को पूरा करने के लिए टैक्स बढ़ाने का पूर्ण विरोधी हूं लेकिन बीते दिनों सर्राफा व्यवसासियों ने निशुल्क या सस्ती भूमि की मांग की। आज एक खबर पढ़ी कि बच्चों को सस्ती पुस्तकें नोटबुल उपलब्ध कराने के लिए कागज पर पांच प्रतिशत जीएसटी लागू की जाए। ऐसी मांग करने वालों का क्या सोचना है यह तो वही जानते हैं लेकिन अगर सर्वे कराया जाए तो सामने आता है कि कागज उत्पादक और प्रकाशकों की कमाई में काफी बढ़ोत्तरी हुइ्र है। मुझे लगता है कि पुस्तक छापने वाले अपने मुनाफे और पुस्तक विक्रेताओं को अपनी महंगी किताबे बिकवाने के लिए जो कमीशन दिया जाता है उसमें कमी करें तो सस्ती पुस्तकें बच्चों को मिल सकती है।
मौखिक रूप से जो पता चलता अपनी किताबें स्कूलों में लगवाने हेतु जो कमीशन दिया जाता है पुस्तक विक्रेता उसका कुछ हिस्सा कमीशन देने की बात करते हैं वो खत्म कर दिया जाए तो किताबें सस्ती होंगी। जमाना जानता है कि कुछ दशक पहले इतनी कमीशनखोरी नहीं चलती थी। अब ५० रूपये में तैयार पुस्तक ५०० या १००० में बेचने मोटा मुनाफा कमाने के नाम पर बेची जा रही है। इसलिए किताबें महंगी हो रही है जीएसटी के चक्कर मेें नहीं। अगर कागज उत्पादक और प्रकाशक जनहित की सोचते हैं जो उन्हें अपने मुनाफा कम करने चाहिए। मगर आपकी किताबें नए पाठयक्रम की है तो दुकानदारों को उन्हें बेचना और स्कूलों को पढ़ाना मजबूरी हो जाएगी। उदारता की आड़ में जो अभिभावकों का उत्पीड़न हो रहा है उसका क्या हश्र होता है यह बीते दिनों एक छात्र द्वारा की गई आत्महत्या की घटना से सामने आ रहा है। अच्छी बातें कर माल कमाने वालों अब थोड़ा अपने कमीशन पर रोक लगाईये। पांच या दस प्रतिशत जीएसटी से कुछ होने वाला नहीं है।
(प्रस्तुतिः- रवि कुमार बिश्नोई संपादक दैनिक केसर खुशबू टाइम्स मेरठ)

Share.

About Author

Leave A Reply