नई दिल्ली 21 नवंबर। सुप्रीम कोर्ट ने गत दिवस अग्रिम जमानत के संबंध में अहम फैसला सुनाया। कोर्ट ने कहा कि दूसरे राज्य में एफआइआर दर्ज होने के बावजूद हाई कोर्ट और सत्र अदालत अंतरिम संरक्षण के तौर पर सीमित अग्रिम जमानत दे सकती हैं। कोर्ट ने सीआपीसी की धारा 438 के प्रविधानों की व्याख्या करते हुए ऐसे मामलों में सीमित अग्रिम जमानत देने के संबंध में दिशानिर्देश जारी किए और कुछ शर्तें भी लगाईं।
यह महत्वपूर्ण फैसला जस्टिस बी.वी. नागरत्ना और जस्टिस उज्जवल भुइयां की पीठ ने सुनाया। सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के व्यापक मायने हैं। कई बार किसी मामले में गिरफ्तारी की आशंका के चलते अभियुक्त किसी दूसरे राज्य के हाई कोर्ट से अग्रिम जमानत ले लेते हैं। ऐसा पहले भी कई मामलों में हो चुका है।
मौजूदा मामले में कोर्ट ने इसी कानूनी सवाल पर विचार किया था कि एफआइआर किसी दूसरे राज्य में दर्ज होने पर भी क्या कोई हाई कोर्ट या सत्र अदालत गिरफ्तारी से संरक्षण देते हुए अभियुक्त को अग्रिम जमानत दे सकती है। मौजूदा मामला राजस्थान की एक महिला ने दाखिल किया था।
मामला दहेज की मांग से संबंधित था जिसमें बेंगलुरु की एक अदालत ने महिला के पति को अग्रिम जमानत दे दी थी। ज्ञात हो कि सामान्य कानूनी अनुक्रम में जिस राज्य या जिस अदालत के क्षेत्राधिकार में एफआइआर दर्ज होती है, वहीं की संबंधित अदालत में अग्रिम जमानत के लिए आवेदन किया जाता है।
सुप्रीम कोर्ट ने फैसले में कहा है कि नागरिकों के जीवन, व्यक्तिगत स्वतंत्रता और सम्मान के अधिकार की रक्षा की संवैधानिक अनिवार्यता को ध्यान में रखते हुए हाई कोर्ट और सत्र अदालत अंतरिम संरक्षण के तौर पर सीआरपीसी की धारा 438 के तहत सीमित अग्रिम जमानत दे सकती हैं। हालांकि ऐसे मामलों में अग्रिम जमानत देने के हाई कोर्ट और सत्र अदालत के अधिकार को मान्यता देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कुछ शर्तें भी लगाई हैं। कोर्ट ने कहा है कि ऐसे मामले में अदालत ट्रांजिट अग्रिम जमानत दे सकती है, लेकिन मामले में पहली सुनवाई की तारीख पर जांच अधिकारी और जांच एजेंसी को नोटिस जारी किया जाएगा।
शीर्ष अदालत ने कहा कि अग्रिम जमानत की मांग करने वाले आवेदक को, अदालत को संतुष्ट करना होगा कि वह फिलहाल क्षेत्राधिकार रखने वाली अदालत से संपर्क करने में सक्षम नहीं है और उसे जीवन व स्वतंत्रता के उल्लंघन की आशंका है। हालांकि उचित मामले में अदालत को अंतरिम अग्रिम जमानत देने का विवेकाधिकार होगा।
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा है कि अंतरिम अग्रिम जमानत देने के आदेश में कारणों को दर्ज किया जाना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ऐसी सभी अत्यावश्यक परिस्थितयों को बताना असंभव होगा, लेकिन ऐसी शक्ति का इस्तेमाल केवल असाधारण और बाध्यकारी परिस्थितियों में ही किया जाना चाहिए।
शीर्ष कोर्ट ने इसके दुरुपयोग की आशंकाओं की ओर भी इशारा किया और कहा है कि यह फोरम शॉपिंग (दुरुपयोग) का क्रम बन सकता है क्योंकि अभियुक्त सबसे सुविधाजनक अदालत का चयन करेगा और इससे क्षेत्राधिकार की अवधारणा भी महत्वहीन हो जाएगी जो सीआरपीसी के तहत महत्वपूर्ण है। इसलिए आरोपित द्वारा दुरुपयोग किए जाने की आशंका को रोकने के लिए जिस अदालत से राहत की मांग की जाती है, उस अदालत और आरोपित के क्षेत्रीय क्षेत्राधिकार के बीच निकटता का पता लगाना आवश्यक है।
सुप्रीम कोर्ट ने फैसले में कहा है कि क्षेत्रीय क्षेत्राधिकार के साथ ऐसा संबंध निवास स्थान, व्यवसाय, कार्य या पेशे के माध्यम से हो सकता है। कोर्ट ने कहा कि इससे हमारा तात्पर्य है कि आरोपित केवल अग्रिम जमानत लेने के लिए दूसरे राज्य की यात्रा नहीं कर सकता।