Friday, November 22

72 साल पहले 1951 मेें घूस लेकर सवाल पूछने पर समाप्त हुई थी सदस्यता, महुआ मोइत्रा को जाना चाहिए न्यायालय

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महुआ मोइत्रा की पैसे लेकर सवाल पूछने के मामले में संसद सदस्यता समाप्त होना कोई पहला मामला नहीं है। 18 साल पूर्व 24 दिसंबर 2005 को भी ऐसे ही मामले में 11 सांसदों की सदस्यता रद हो गई थी। जिसमें भाजपा के छह समेत 11 सांसद शामिल होने की चर्चा में बताया गया है कि बसपा के तीन राजद कांग्रेस का एक एक सदस्य शामिल था। इससे पूर्व 1951 में घूस लेकर सवाल पूछने के मामले में कांग्रेसी सांसद एसजी मुदगल को अपनी सदस्यता गंवानी पड़ी थी। खबर के अनुसार उन्होंने एक बिजनेस से संसद में सवाल पूछने के लिए पांच हजार रूपये लिए जाना चर्चाओं में है। इस पूरे मामले में तृणमूल अध्यक्ष ममता बनर्जी ने कहा कि भाजपा लोकतांत्रिक रूप से नहीं लड़ सकती इसलिए राजनीतिक प्रतिशोध लेती है। जिस तरीके से महिला विशेषकर युवा नेता का उत्पीड़न किया गया है और लोकतंत्र की हत्या की गई है मैं उसकी निंदा करती है। महुआ मोइत्री ने कहा कि मुझे बिना सुने बिना साक्ष्य के सजा दी गई है। कांग्रेस ने रिपोर्ट पर सवाल उठाए है।
सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव का कहना है कि सरकार विपक्ष की आवाज कुचल रही है। इस मामले में महुआ मोइत्रा हाईकोर्ट या सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दे सकती हैं और दोबारा चुनाव जीतने के बाद फिर से लोकसभा में आ सकती है। बीती 15 अक्टूबर को निशिकांत दूबे द्वारा की गई शिकायत के बाद 47 बार महुआ मोइत्रा का अकाउंट दुबई से लॉगिन हुआ। अगर ध्यान से देखें तो यह निष्कासन इस प्रकार के मामलों में अगर संलग्न है तो सीख है। कांग्रेस सांसद शशि थरूर का कहना है कि इंडिया के लिए है। शुभ संकेत। दूसरीओर संसदीय कार्य मंत्री प्रहलाद जोशी का यह कहना कि महुआ मोइत्रा ने खुद कारोबारी हीरानंदा से तोहफे लेना स्वीकार किया है तो सुबूत क्या चाहिए। जदयू सांसद गिरधारी लाल यादव का कहना है कि मेरा सवाल भी दूसरे लोग पूछते हैं पर स्पीकर ने फटकार लगाई। यह प्रकरण क्योंकि कानूनी होने के साथ साथ सांसदों की गरिमा से जुड़ा है। महुआ मोइत्रा को अदालत जाने का मौका है। इसलिए सबके लिए रास्ते खुले है। इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता। पश्चिम बंगाल की सीएम ममता बनर्जी ने कहा कि हम महुआ के साथ है। इसलिए यह भी नहीं कह सकते कि वो अकेली है। विपक्ष का समर्थन उन्हें भरपूर मिल रहा है। चाहे तो कोर्ट आराम से जा सकती है। मैं इस प्रकरण में हुई कार्रवाई या व्यवस्था पर तो कुछ नहीं कहना चाहता लेकिन एक बात जरूर कहना चाहता हूं कि जिम्मेदार जनप्रतिनिधियों और संविधान में संशोधन करने में सक्षम जनप्रतिनिधियों को कुछ ऐसी व्यवस्था जरूर करनी चाहिए कि ऐसे प्रकरणों की दोबारा पुनरावृति ना हो। मैं किसी पर आरोप प्रत्यारोप तो नहीं कर रहा हूं। मगर मेरा मानना है कि ऐसे कई मामलों में संसद और विधानसभा को छोड़़ दे तो भी पूछे जाने की मोखिक चर्चाएं सुनने को मिलती रही है लेकिन यह नही कह सकते कि वो किसी लालचवश होता होगा। लेकिन हम हर स्तर पर ऐसे मामलों में कार्रवाई किए जाने की रोक भ्रष्टाचार की समाप्ति होनी चाहिए। मुझे लगता है कि सरकार को आम आदमी में से भी ऐसी व्यवस्था को समाप्त करने हेतु वृहद स्तर पर अभियान चलाना चाहिए। जहां तक कुछ लोगों का यह कहना कि बहुत ज्यादती हुई है तो 2018 में तो खुद भाजपा के भी पांच सांसदों पर कार्रवाई की खबर पढ़ने को मिली। इसलिए जानबूझकर उत्पीड़न की बात तो इसलिए नहीं कही जा सकती क्योंकि 1951 में भी ऐसी कार्रवाई हो चुकी है। इसलिए महुआ मोइत्रा को अदालत का द्वार खटखटाना चाहिए और विपक्ष भी इस मामले में उनका साथ दे। क्योकि इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि देश का सबसे उच्च सदन और उसके सदस्यों की पहचान ईमानदार और काम करने वाले जनप्रतिनिधि की होने चाहिए। महुआ मोइत्रा के खिलाफ कुछ गलत हुआ है तो कोर्ट से उन्हें इंसाफ मिलने से नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। अभी हाल में कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी और आप के राघव चढढा की सदस्यता भी खत्म की गई थी जो बाद मेें बहाल हो गई।

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