मेरठ, 17 नवंबर (प्र)। हस्तिनापुर की धरती हजारों वर्षों का इतिहास समेटे है। वर्ष 1950-52 के बाद पिछले वर्ष हुए उत्खनन ने एक बार फिर इस तथ्य की पुष्टि की थी। केंद्र सरकार ने पिछले वर्ष देश के पुरातात्विक महत्व के पांच स्थलों को आइकोनिक साइट के रूप में विकसित करने का निर्णय लिया गया था। इसमें हस्तिनापुर भी शामिल था। पांच एकड़ भूमि पर राष्ट्रीय संग्रहालय बनना था, लेकिन पांडव टीला वन क्षेत्र में होने से निर्माण में मुश्किल आ रही है। राष्ट्रीय संग्रहालय बनने से पूर्व उत्खनन में मिली महत्वपूर्ण वस्तुओं को अस्थायी तौर पर प्रदर्शित करने की पुरातत्व विभाग ने योजना बनाई है। इससे पर्यटकों के आकर्षित होने की संभावना है।
हस्तिनापुर में पांच एकड़ जमीन पर राष्ट्रीय संग्रहालय बनाने के साथ भारतीय धरोहर और संरक्षण संस्थान की स्थापना की घोषणा की गई थी। इसके लिए भूमि अधिग्रहण भी होना था। पांडव टीला और कर्ण मंदिर के बीच के स्थान को इसके लिए को उपयुक्त माना गया, लेकिन पांडव टीला के पास भूमि वन क्षेत्र में है। इस कारण निर्माण के लिए अभी तक भूमि नहीं मिल सकी है। पांडव टीला से हटकर आबादी में किसी दूरस्थ स्थल पर संग्रहालय बनना पर्यटकों के लिए सुविधाजनक नहीं होगा। भूमि का प्रस्ताव स्वीकृत होने पर भी राष्ट्रीय संग्रहालय बनने में समय लगेगा। ऐसे में पुरातत्व विभाग ने 1950 से 1952 और पिछले साल हुए उत्खनन में मिली महत्वपूर्ण वस्तुओं को शेड डालकर प्रदर्शित करने की योजना बनाई है। यहां इनसे संबंधित फोटो आदि भी प्रदर्शित होंगे। पर्यटकों के लिए पार्किंग की व्यवस्था भी होगी। बस्ती से पांडव टीले की ओर जाने वाली साइड में खड़ने का निर्माण पूरा हो गया है। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के अधीक्षण पुरातत्वविद विनोद सिंह रावत कहते हैं कि उत्खनन में मिली महत्वपूर्ण वस्तुओं के प्रदर्शन से पर्यटक आकर्षित होंगे। उन्हें हस्तिनापुर का इतिहास समझने में आसानी होगी।
हस्तिनापुर के ‘लघु संग्रहालय’ में होंगे प्राचीन विरासत के दर्शन
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