सिरोही 09 अप्रैल। जिले के आबूरोड स्थित ब्रह्माकुमारी संस्थान की मुख्य प्रशासिका (चीफ) दादी रतन मोहिनी का सोमवार रात 1.20 बजे अहमदाबाद के निजी अस्पताल में देहवसान हो गया. दादी के निधन से अनुयायियों में शोक को लहर दौड़ गई. वे पिछले माह ही 101 साल पूरे किए थे. पीआरओ बीके कोमल ने बताया की गुरुवार 10 अप्रैल को सुबह 9 आबूरोड के शांतिवन परिसर मे दिवंगत दादी रतनमोहिनी का अंतिम संस्कार होंगे. संस्थान के देशभर से पदाधिकारी आबूरोड पहुंचकर उनको श्रद्धांजलि दे रहे हैं. अंतिम संस्कार मे देशभर से संस्थान के अनुयायी जुटेंगे. बुधवार को शांतिवन से माउंट आबू तक वैकुंठी निकाली जायेगी. जो तलहटी से होती हुई माउंट आबू पहुंचेगी. संस्थान के पांडव भवन और ज्ञान सरोवर मे कल अंतिम दर्शन क़े लिए पार्थिव देह रखा जाएगा जहा लोग उनको श्रद्धांजलि देंगे. वहीं, पीएम नरेंद्र मोदी ने निधन पर दुख जताया है. पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे, केंद्रीय मंत्री शिवराज सिंह चौहान, तेलंगाना क़े सीएम रेवंत रेड्डी सहित कई राजनैतिक हस्तियों ने भी निधन पर दुख जताया है.
दादी रतन मोहिनी का जन्म का नाम लक्ष्मी था. उनका जन्म हैदराबाद सिंध (तत्कालीन भारत और अब पाकिस्तान में है) के प्रसिद्ध व धार्मिक परिवार में 25 मार्च, 1925 को हुआ. जैसे दादी वर्णन बताती थी कि वे काफी शर्मीली थीं, लेकिन अच्छी छात्रा थीं. अधिकांश समय शिक्षा को समर्पित करती थी. जब वह ज्ञान में आई (ब्रह्माकुमारी के संपर्क में आई), तब उनकी उम्र केवल 13 वर्ष थी. बचपन से ही उनका झुकाव अध्यात्मिकता व पूजा-पाठ की तरफ था. यही कारण था का 13 वर्ष की उम्र में ब्रह्माकुमारी के संपर्क मे आने के बाद वे लगातार जुड़ी रही और संस्थान की स्थापना में मुख्य भूमिका निभाई.
दिवंगत रतन माेहिनी जीवन के आखिरी समय तक सक्रिय रहीं. सवेरे साढ़े तीन बजे से दिनचर्या शुरू करती थी. रात दस बजे तक ईश्वरीय सेवाओं की गतिविधियां चलती थी. दादी के निर्देशन में कई विशाल पदयात्रा, रैलियां हुई. वे 70 हजार किमी की पदयात्रा कर चुकी थीं. वर्ष 2006 में 31 हजार किमी पदयात्रा की. इसके अलावा 1985 में करीब 40 हजार किमी की 13 यात्राएं की.
उन्होंने संस्थान में आने वाली बहनों के प्रशिक्षण और नियुक्ति का कार्यभार भी देखा. ब्रह्मा-कुमारीज संस्थान को समर्पित होने से पहले दादी के सान्निध्य में युवा बहनों का प्रशिक्षण चलता था. इसके बाद ही बहनें ब्रह्माकुमारी कहलाती हैं. वे देश के 4600 सेवा केंद्रों की 46 हजार से अधिक बहनाें काे प्रशिक्षण दे चुकी हैं. युवा प्रभाग की राष्ट्रीय अध्यक्ष भी रही थीं.
दादीजी ने वर्ष 1937 से लेकर ब्रह्मा बाबा के अव्यक्त होने (वर्ष 1969) तक साए की तरह साथ रहीं. इन 32 साल में आप बाबा के हर पल साथ रहीं.
वर्ष 1996 में ब्रह्माकुमारीज़ की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में तय हुआ कि अब विधिवत बेटियों को ब्रह्माकुमारी बनने की ट्रेनिंग दी जाएगी. इसके लिए एक ट्रेनिंग सेंटर बनाया गया और तत्कालीन मुख्य प्रशासिका राजयोगिनी दादी प्रकाशमणि ने आपको ट्रेनिंग प्रोग्राम की हेड नियुक्त किया. तब से लेकर आज तक आपके ही मार्गदर्शन में बेटियां ब्रह्माकुमारी बनने की ट्रेनिंग लेकर अपना जीवन समाजसेवा और विश्व कल्याण के कार्य में समर्पित करती रही हैं.