Saturday, July 27

नगर निगम कार्यालय का निर्माण रूकवाकर आवास विकास द्वारा जनविरोधी व शासन की योजनाओं में बाधा पहुंचाने का काम किया जा रहा है, इनके क्षेत्र में अवैध निर्माण और घरों में चल रही दुकानों को लेकर भी हो अभियंताओं की जांच

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नगर निगम और आवास विकास के बीच चल रही तनातनी कुछ लेन देन को लेकर होगी ऐसा तो नहीं कहा जा सकता लेकिन शास्त्रीनगर की नई सड़क पर नगर निगम द्वारा बनाए जा रहे कार्यालय के निर्माण में अड़ंगा डालने के लिए आवास विकास के अधिकारियों की जमकर आलोचना जनमानस में हो रही है। नागरिकों का कहना है कि कई दशक से यह भूमि खाली पड़ी थी। कितने ही लोग इस पर कब्जा करने के लिए प्रयासरत रहे। पिछले कुछ सालों से यहां बीमारियां बांटने में सक्षम गंदगी और बदबू का साम्राज्य कायम रहा तब आवास विकास कहां गया था और इसके अधिकारी कहां सोए हुए थे। कुछ लोगों का यह भी कहना है कि आवास विकास के अधीक्षण अभियंता राजीव कुमार की सक्रियता इनके कार्यक्षेत्र में हो रहे अवैध निर्माणाों को रोकने के मामले में कहां चली जाती हैं तथा यह और इनके सहयोगी उन अवैध निर्माणकर्ताओं से जाकर क्यों नहीं पूछते हैं कि नक्शा पास है या नहीं और मालिकाना हक क्यों नहीं दिखाई देता। इनका कहना है कि अगर देखा जाता तो शास्त्रीनगर में ज्यादातर घर दुकानों में परिवर्तित नहीं होते। यह भी चर्चा इस मुददे को लेकर है कि जमीन पर अवैध कब्जे को लेकर शिकायत करने थाने पहुंचे आवास विकास के सहयक अभियंता एसपी सिंह और अवर अभियंता अजब सिंह के क्षेत्र में अवैध निर्माणों की क्या स्थिति है और वह किसकी शह पर हुए इसकी जांच अधिकारियों को करानी चाहिए। क्योंकि नगर निगम की नई इमारत का कार्य 20 दिन से चल रहा था। इसका शिलान्यास सांसद राजेंद्र अग्रवाल, डॉ. लक्ष्मीकांत वाजपेयी, महापौर हरिकांत अहलूवालिया समेत मंत्री सोमेंद्र तोमर की उपस्थिति में हुआ और सीएम की योजनाओं में इसे स्वीकृति प्राप्त है। उसके बावजूद आवास विकास की हठधर्मिता समझ से बाहर है। अपर नगर आयुक्त ममता मालवीय का कहना है कि जमीन नगर निगम की है। बिल्डिंग का निर्माण कार्य चल रहा है। आवास विकास के अधिकारी वहां पहुंुचे थे। देर शाम सभी दस्तावेज दिखाए गए। काम फिर शुरू होगा। अब इस मामले में किसी धर्मपाल सिंह द्वारा भी अपना स्वमित्व होने की बात कही जा रही है। आवास विकास परिषद इस भूमि पर अपना हक जमा रहा है। असलियत क्या है यह तो दोनों विभागों के अधिकारी और धर्मपाल सिंह ही जानते होंगे लेकिन दोनों सरकारी विभाग है उसके बावजूद मुख्यमंत्री के विकास कार्यो की श्रेणी में पास नगर निगम कार्यालय के निर्माण कार्य को रूकवाना एक प्रकार से आवास विकास के अफसरों का सरकारी काम में बाधा डालने का प्रयास ही जनता द्वारा बताया जा रहा है। वैसे भी शहर की यातायात व्यवस्था नागरिकों की सुविधाओं को ध्यान में रखते हुए नगर निगम का कार्यालय यहां से स्थानांतरित होना समय की सबसे बड़ी मांग है क्योंकि वहां तक आदमी आसानी से नहीं पहुंच पाता है।
इधर भी ध्यान दें
इस संबंध में एक खबर को लेकर हुई चर्चा अनुसार वर्ष 1977 में उत्तर प्रदेश आवास एवं विकास परिषद की शास्त्री नगर आवासीय योजना संख्या 7 के लिए अधिग्रहित की गई लगभग 225 से अधिक भूखसरों की भूमि के मध्य आवासीय कॉलोनी के क्षेत्र में नगर निगम मेरठ द्वारा खसरा संख्या 6041 पर आवास विकास परिषद से अनुज्ञा प्राप्त किए बिना नवीन नगर निगम कार्यालय परिसर का अवैध निर्माण कराए जाने के विषय में महामहिम राज्यपाल उत्तर प्रदेश के दरबार तक भी जा पहुंचा। परिषद की योजना संख्या 7, शास्त्रीनगर, मेरठ में समाविष्ट कस्बा मेरठ के खसरा संख्या 6041 की भूमि के सम्बन्ध में।
इस संबंध में आवास विकास एवं कमिश्नर के साथ निगम के अधिकारी वीडियो कांफ्रेंसिंग के माध्यम से मीटिंग आहूत की गयी। उक्त भूमि के स्वामित्व के सम्बन्ध में एक रिट याचिका संख्या 44695, 1998 जेपी माथुर बनाम नगर निगम, उच्च न्यायालय में विचाराधीन थी। जिसमें परिषद को पक्षकार नहीं बनाया गया था। उक्त याचिका उच्च न्यायालय द्वारा 9 नवंबर 2009 को निस्तारित कर दी गयी। तत्कालीन डीएम संजय अग्रवाल द्वारा लिया गया निर्णय दिनांक 16 दिसंबर 1998 जिस द्वारा धारा-38 का लाभ आवास विकास को दिया गया।
पूर्व में जब भूमि पर नगर निगम द्वारा बाउन्ड्रीवाल का निर्माण प्रारम्भ किये जाने पर परिषद द्वारा रिट संख्या 30482, 2012 परिषद बनाम नगर निगम आदि उच्च न्यायालय, इलाहाबाद में योजित कर स्थगन आदेश प्राप्त कर लिया गया था। जिसमें उच्च न्यायालय द्वारा इस सुझाव के साथ खारिज कर दी गयी कि याचिकाकर्ता द्वारा परिषद अधिनियम की धारा-38 (5) के अन्तर्गत उत्तर प्रदेश सरकार से एप्रोच करते हुए समाधान प्राप्त किया जा सकता है। ऐसी चर्चा भी चल रही है।
स्मरण रहे कि जब नगर निगम कार्यालय इस भूमि पर बनने की बात कही गई थी तो सूचना का अधिकार कार्यकर्ता लोकेश खुराना मामले को कोर्ट ले गए थे। धर्मपाल सिंह इस पर अपना हक जताते हुए कोर्ट में रिट डाल चुके हैं। इतना होने पर भी जब तक निर्माण कार्य शुरू नहीं हुआ आवास विकास के अधिकारी कहां सोए थे इसकी जांच होनी चाहिए और सरकार इसकी भी जांच कराए कि क्या आवस विकास क्षेत्र में होने वाले अवैध निर्माणों को रोकने के लिए अधिकारियों ने इतनी तत्परता दिखाई। कुछ मिलाकर नागरिकों की इस बात से मैं भी सहमत हूं कि अवैध निर्माण की कारवाई रोकने में पूर्ण असफल आवास विकास अफसरों द्वारा पहली नजर में नागरिकों की सुविधााअें और शासन की नीति के तहत जनप्रतिििनधियों के प्रयासों से मुख्यमंत्री की योजनाओं में स्वीकृत इस कार्य को रूकवाने में आवास विकास अफसरो ंने सरकार और जनविरोध काम किया है। जिसके लिए इसके अधिकारियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई होनी चाहिए। क्योंकि आवास विकास परिषद के अधीक्षण अभियंता राजीव कुमार द्वारा बिना सोचे समझे सरकारी काम में बांधा पहुंचाने का नागरिकों का आरोप पूरी तौर पर सही ना भी हो मगर कार्य में लापरवाही तो है ही।
कुछ लोगों का यह भी कहना है कि आवास विकास के अफसरों की यह कार्रवाई इस भूमि को कब्जा कराने के लिए प्रयासरत कुछ लोगों के इशारे पर तो नहीं की जा रही। इस तथ्य पर भी उच्चाधिकारी ध्यान दें।

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