मेरठ, 17 मई (प्र)। सड़क पर दौड़ने वाले तमाम व्यावसायिक वाहनों के लिए फिटनेस कराना आवश्यक होता है, लेकिन परिवहन विभाग की बसों की हालत जर्जर हैं, फिर भी इनका फिटनेस ‘ओके’ हैं। फिटनेस कैसे दिया जा रहा हैं, ये बड़ा सवाल हैं। इनकी खिड़की नहीं हैं। शीशे टूटे पड़े हैं। इमरजेंसी खिड़की नहीं हैं। इंडीकेटर नहीं हैं। औसतन हर रोज दो बसें सड़कों पर खराब खड़ी रहती हैं। फिर भी इनकी फिटनेस ‘ओके’हैं। ऐसे में सवाल उठता है कि आरटीओ ने किस चश्मे से फिटनेस ‘ओके’ कर दिया है।
मेरठ एनसीआर का हिस्सा हैं। यहां पर एनजीटी के आदेश है कि पेट्रोल की 15, डीजल की 10 वर्ष और सीएनजी की 15 वर्ष गाड़ी सड़कों पर दौड़ सकती हैं। कानपुर में पंजीकृत सीएनजी की 96 बसों को मेरठ रोडवेज को दे दिया गया था। इनके 15 वर्ष भी चार माह बाद पूरे हो जाएंगे। ऐसा रोडवेज बसों के दस्तावेजों को देखने से आरटीओ ऑफिस से जानकारी मिली हैं। ज्यादातर बसों का 15 वर्ष की अवधि पूरी होने जा रही हैं। महत्वपूर्ण बात ये है कि ये बसें जर्जर हालत में हैं, फिर भी इनके फिटनेस कैसे पास किये जा रहे हैं? इसको लेकर सवाल उठ रहे हैं।
प्राइवेट वाहनों के फिटनेस एक कमी होगी तो भी पास नहीं होंगे, लेकिन ये सरकारी बसें हैं, जर्जर है तो भी फिटनेस किया जा रहा हैं। इसमें आरटीओ की भूमिका पर भी सवाल उठ रहे हैं। यदि कहीं हादसा हो गया तो जिम्मेदार कौन होंगे? दरअसल, ये बसें सिटी ट्रांसपोर्ट कारपोरेशन द्वारा संचालित की जा रही हैं। इसकी चेयरमैन कमिश्नर हैं। कानपुर में पहले इनका पंजीकरण था, लेकिन बाद में इनके तमाम दस्तावेज मेरठ आरटीओ में पहुंचा दिये गए थे, तभी से इनकी फिटनेस मेरठ आरटीओ में हो रही हैं।
बहुत सारी बसों का तो फ्लोर तक क्षतिग्रस्त हैं। सीट टूटी हुई हैं। खिड़की के शीशे भी क्षतिग्रस्त हैं। बाकौल, आरआई राहुल शर्मा फ्लोर क्षतिग्रस्त बसें उनके पास आई थी, इनका फिटनेस नहीं किया गया तथा इन्हें वापस लौटा दिया गया। बड़ा सवाल ये है कि जब ये जर्जर है तो इनका फिटनेस कैसे स्वीकृत किया जा रहा हैं। एक भी फिटनेस के मानक ये बसें पूरा नहीं करती हैं। कोई हादसा हो गया तो इसके बाद ही अफसरों की नींद टूटेगी।