मेरठ 05 नवंबर (प्र)। लोहिया नगर थाना क्षेत्र के गांव घोसीपुरा में जिस भूमि को जावेद और गाजी अपनी बता रहे थे, वह असल में मेरठ विकास प्राधिकरण (मेडा) की निकली है। बता दें कि पिछले महीने विश्व हिंदू महासंघ के प्रदेश मंत्री पंडित अमित भारद्वाज ने प्रेस वार्ता कर जमीन पर बांग्लादेशियों का कब्जा होने के बात उजागर की थी। इसके बाद नगर निगम की टीम जब जमीन खाली कराने पहुंची थी, तो विरोध के चलते कार्रवाई बीच में ही रोकनी पड़ी थी। इसके बाद नगर आयुक्त सौरभ गंगवार ने पूरे प्रकरण की जांच के आदेश दिए थे।
अब नगर निगम की जांच रिपोर्ट में बड़ा खुलासा हुआ है। सहायक नगर आयुक्त शरद कुमार पाल ने रिपोर्ट तैयार कर नगर आयुक्त को सौंप दी है और मेरठ विकास प्राधिकरण के उपाध्यक्ष संजय मीणा को पत्र भेजकर स्पष्ट किया है कि लोहिया नगर थानाक्षेत्र के घोसीपुर गांव में मेडा की जमीन पर बांग्लादेशी और रोहिंग्या समुदाय के लोगों ने अवैध रूप से कब्जा कर दो हजार से अधिक झुग्गी-झोपड़ियां बना रखी हैं। रिपोर्ट में कहा गया कि मेडा अपनी जमीन तत्काल मुक्त कराए।
नगर निगम की सम्पत्ति विभाग की टीम ने मौके पर जांच की, जिसमें पाया गया कि मेडा के स्वामित्व वाली खसरा संख्या 294 295, 296, 304, 305 और 306 की भूमि पर बड़ी संख्या में झुग्गियां खड़ी हैं। यहां रह रहे लोगों ने खुद को असम के बरपेटा जिले का निवासी बताया। कुछ ने आधार कार्ड दिखाए तो कई के पास कोई पहचान पत्र नहीं था। रिपोर्ट में दर्ज नामों में इब्राहिम अली, बसीदा खातून, शहीदुल इस्लाम, इमान अली, मलिक मुल्ला समेत कई नाम शामिल हैं। इससे पहले नौचंदी मैदान से हटाए गए लोगों ने भी खुद को असम निवासी बताया था। जांच में खुलासा होने पर नगर निगम ने एसपी सिटी आयुष विक्रम सिंह और एडीएम सिटी बृजेश सिंह को पत्र लिखा है।
झुग्गी-झोपड़ियों में बिजली के कनेक्शन भी
नगर निगम ने साफ किया है कि चूंकि यह जमीन मेडा की है, इसलिए निगम खुद बेदखली की कार्रवाई नहीं कर सकता। वहीं, बांग्लादेशी या रोहिंग्या होने की पुष्टि पुलिस या सक्षम एजेंसी ही कर सकती है। रिपोर्ट में यह भी सामने आया है कि मेड़ा की इस भूमि पर अवैध झुग्गियों में वर्षों से लोग रह रहे हैं, लेकिन मेडा को इस बात की जानकारी तक नहीं थी कि यह जमीन उसके नाम दर्ज है। हैरानी की बात यह है कि अवैध कब्जे के बावजूद यहां बिजली के कनेक्शन तक दिए जा चुके हैं। अब नगर निगम की रिपोर्ट के बाद मेरठ विकास प्राधिकरण से सख्त कार्रवाई की उम्मीद की जा रही है, ताकि वर्षों से बांग्लादेशी कब्जे में पड़ी सरकारी जमीन को मुक्त कराया जा सके।
