Saturday, October 25

हरित पटाखों से मनेगी दीपावली, प्रदूषण फैलाने वाली आतिशबाजी के निर्माण पर देशभर में लगाई जाए रोक! सिर्फ एनसीआर में ही क्यों

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पटाखों से होने वाले प्रदूषण से मुक्ति के लिए एनसीआर क्षेत्र में भारी जददोजहद के बाद ग्रीन पटाखों की बिक्री और प्रचलन की अनुमति सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर प्रशासन द्वारा कुछ नियमों के तहत अनुमति दी जा रही है। बताते हैं कि निर्धारित स्थानों के अतिरिक्त पटाखें नहीं बिकेंगे। इसका भंडारण भी आबादी के बीच नहीं होगा। दुकानों पर अग्निशमन की व्यवस्था करनी होगी।
स्मरण रहे कि १८ से २० अक्टूबर तक सुबह छह से सात और रात आठ से १० बजे तक ग्रीन पटाखे फोड़े जा सकेंगे। सीजेआई जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस विनोद चंद्रन की पीठ के द्वारा इस बारे में फैसला दिया गया। इसके लिए सभी जिला प्रशासन को निर्देश दिए गए हैं। जिसके तहत ई कॉमर्स वेबसाइटों से पटाखों की बिक्री नहीं हो सकेगी। नियमों के अनुसार ग्रीन पटाखों के लिए यह हैं मानक इनमें वेरियम और भारी धातु सीसा आर्सनिक क्रोमोयिम का उपयोग नहीं होता। इनकी आवास भी कम होती है। इनमें डस्ट जियो लाइट जैसे पटाखों का इस्तेमाल होता है जो धुंए को दबाते हैं। हरित पटाखों पर क्यू आर कोड होता है जो नीरा उत्पादों के पंजीकरण को दर्शाता है। यह कह सकते हैं कि प्रदूषण से बचने और किसी अनहोनी घटना को रोकने के लिए निर्धारित नियमों का पालन हुआ तो शायद दीपावली पर प्रदूषण इस बार कम होगा। कुछ नागरिक अदालत के इस आदेश से खुश हैं और उनका कहना है कि हरित पटाखों से पर्यावरण को होने वाले नुकसान को पांच दिन तक रोका जाएगा। अदालत ने फैसले के पक्ष में कहा कि हमें एक संतुलित दृष्टिकोण अपनाना होता है जिससे उद्योग और पर्यावरण दोनों की आधिकारिक रक्षा हो सके। मुझे लगता है कि पटाखा प्रेमियों के लिए भी यह व्यवस्था सही है लेकिन कई सालों से प्रतिबंध के बावजूद हर जगह दिवाली पर आतिशबाजी होती है और प्रदूषण फैलता है वो आती कहां से हैं आ ैर जिम्मेदार क्या कर रहे होते हैं। पिछले दिनों एक खबर पढ़ने को मिली कि ६२ कुंतल प्रतिबंधित पटाखे नष्ट कराए गए तो लोगों का कहनाहै कि करोड़ों के प्रतिबंध पटाखे पुलिस ने पकड़े आखिर वो गए कहां। एक समाचार में जिनके यहां पटाखों का जखीरा पकड़ा गया उन्होंने आरोप लगाया कि पुलिस जितने पटाखे ले गई उतने दिखाई नहीं। जो भी हो इस आदेश से पटाखे बनाने बेचने वालों को खुशी हुई होगी इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता।
आज तक जितना देखा सरकार और अदालत द्वारा जो आदेश किए जाते हैं सब अधिकारी उसका पालन नहीं करा पाते जितना होना चाहिए। यह भी चिंता का विषय है कि यह कैसे तय होगा कि दुकानदार ग्रीन पटाखों की आड़ में प्रतिबंधित पटाखें नहीं बेच रहा। यह कौन तय करेगा कि छोड़े जा रहे पटाखे ग्रीन है या सामान्य।
मेरा मानना है कि अगर सरकार और अदालत को प्रदूषण फैलाने वाली आतिशबाजी का प्रचलन रोकना है तो देशभर में जहां इनका उत्पादन होता है वहां इससे संबंधित सामग्री जब्त की जाए और उसे समाप्त करने के बाद पटाखे बनाने वाले सभी उद्योगपतियों को बुलाकर जिला प्रशासन बैठक करे और बताए कि अगर ग्रीन पटाखों की बजाय प्रदूषण वाली आतिशबाजी का निर्माण किया गया तो कार्रवाई होगी। मेरा मानना है कि ऐसा करने से जिन कारखानों में यह आतिशबाजी बनती है उनके मालिक भी राष्ट्रीय नीति तय होने पर वो भी हरित पटाखे बनाने लगेंगे। इससे एक तो ग्रीन की आड़ में साधारण पटाखे उपलब्ध नहीं होंगे और जो व्यापारी हर साल दीपावली से पहले इनको स्टोर करते हैं वो भी नहीं करेंगे क्योंकि पकड़े जाने से जितना नुकसान होता है उसकी भरपाई आसानी से नहीं हो पाती होगी।
२०२३ में जब प्रदूषण को लेकर बवाल मचा तो दीवाली पर एनसीआर में जो आतिशबाजी हुई वो पहले के मुकाबले कम थी। सवाल उठता है कि आम आदमी एनसीआर में ही नहीं पूरे देश में रहते हैं और आतिशबाजी सभी जगह प्रदूषण फैलाकर पर्यावरण को नुकसान पहुंचाती है कितने नागरिक जो दमे व फेफड़ों के रोग से पीड़ित होते हैं वो और भी बीमार हो जाते हैं तो आखिर आतिशबाजी पर रोक एनसीआर क्षेत्र में ही क्यों। पूरे देश में इस पर रोक लगाकर हरित पटाखों का उपयोग करने का माहौल कयें नहीं बनाया जाता। जो इसे बनाएं या बेचे उनसे साधारण पटाखें न बनाने का शपथ पत्र लेना चाहिए । एनसीआर में प्रतिबंधित आतिशबाजी रोकने के चलाए अभियान में करोड़ों रूपये की आतिशबाजी पकड़ी गई। आखिर यह आतिशबाजी वहां कैसे पहुंची और क्षेत्र की पुलिस क्या करती रही। इसे देखते हुए क्षेत्रीय पुलिस को जवाबदेह बनाते हुए उन्हें भी पाबंद किया जाना चाहिए तभी साधारण आतिशबाजी की बिक्री और प्रदूषण रूक पाएगा मेरी निगाह में यही बात है। क्योंकि हरित पटाखे भी प्रदूषण तो फैलाएंगे ही लेकिन नागरिकों की भावनाओं को भी आहत नहीं किया जा सकता। ग्रीन पटाखे प्रचलन में लाए जा सकते हैं। यह प्रतिबंध साल भर तक रहना चाहिए।
(प्रस्तुतिः- रवि कुमार बिश्नोई संपादक दैनिक केसर खुशबू टाइम्स मेरठ)

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