Sunday, July 6

गंगा के जल पर राजनीति और अधूरे आंकड़े प्रस्तुत करना ठीक नहीं, इसमें पूजा सामग्री पर रोक की बजाय गंदगी डालने वालों पर हो सख्त कार्रवाई, राज ठाकरे जी अंधविश्वास ही आगे बढ़ा रहा है

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अभी महाकुंभ होकर निपटा है। आंकड़ों के अनुसार 65 करोड़ से ज्यादा लोगों ने महाकुंभ में डुबकी लगाकर अपना जीवन सफल बनाने की कोशिश भी की। इस आयोजन के लिए यूपी सरकार की पीठ भी थपथपाई जा रही है और देश विदेश में आयोजन की तारीफ भी हो रही है। स्मरण रहे कि इससे पूर्व भी गंगा यमुना सरस्वती में स्नान कर भक्त अपना जीवन सफल करते रहे हैं। यह भी सही है कि इनमें डाली जाने वाली गंदगी से जल के प्रदूषित होने के विरोध में आवाज भी उठती रही है और सरकार ने भी गंगा को साफ करने के लिए कोई कमी नहीं छोड़ी है। लेकिन कुंभ के दौरान और बाद में इसे लेकर जो राजनीति शुरू हुई मुझे लगता है कि वो नहीं होनी चाहिए थी। क्योंकि श्रद्धालु सभी दलों के समर्थक रहे। और जो विवाद शुरू हो गया है इससे उनकी भावनाएं आहत होने की बात से इनकार नहीं किया जा सकता। यह किसी को बताने की आवश्यकता नहीं है कि हर बात को मानने के पीछे आस्था और विश्वास होता है। इसलिए इससे संबंध लोग अपनी सोच में सफल होते हैं। ज्यादातर उन्हें नुकसान नहीं होता क्योंकि वह मजबूत इरादे के साथ नदियों में डुबकी लगाते हैं। मेरा मानना है कि पुणे के पिंपरी चिंचवड़ में मनसे के 19वें स्थापना दिवस पर मनसे प्रमुख राज ठाकरे द्वारा जो कहा गया कि मैं उस गंगा के गंदे पानी को नहीं छू सकता हूं जहां करोड़ों लोग स्नान कर चुके हैं। उन्होंने सवाल उठाया कि अगर लोग अपने पापों का प्रायश्चित करने स्नान करने गए तो क्या सब पाप के मुक्त हो सकते हैं। उन्होंने यह भी सवाल उठाया कि इतने लोगों ने स्नान किया है तो वह पानी साफ नहीं हो सकता। उन्होंने इस मुददे को गंगा की सफाई से जोड़ते हुए यह भी कहा कि आपका विश्वास और अंधविश्वास के बीच का अंतर समझ गए होंगे। राज ठाकरे जी हर व्यक्ति की अपनी सोच है और उसी के तहत उसे काम करने की अनुमति है। लेकिन गंगा की पवित्रता पर सवाल उठाने का आपको तब तक अधिकार नहीं है जब तक आप अपनी बातों के सबूत पेश ना करे। मैं यह नहीं कहता कि पानी उतना शुद्ध है जितना कुंभ से एक साल पहले होगा लेकिन इसका भी पक्षधर नहीं हूं कि कोई गंगा के पानी को बिना सबूत गंदा बताए।
मेरा प्रधानमंत्री और यूपी के सीएम से आग्रह है कि वो एनजीटी द्वारा सौंपी गई रिर्पोटों में जो संशय की झलक नजर आती है ऐसी रिर्पोटों के प्रकाशित होने से पहले उस पर विचार किया जाए तभी उसे जनमानस के सामने पेश किया जाए। क्योंकि एक खबर के अनुसार केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) ने राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) को सौंपी अपनी नी रिपोर्ट में कहा गया है कि सांख्यिकीय विश्लेषण के अनुसार प्रयागराज में हाल ही में संपन्न महाकुंभ के दौरान पानी की गुणवत्ता स्नान के लिए उपयुक्त थी।
सीपीसीबी की रिपोर्ट में कहा गया है कि सांख्यिकीय विश्लेषण इसलिए आवश्यक था क्योंकि एक ही स्थान से अलग-अलग तिथियों और एक ही दिन में अलग-अलग स्थानों से एकत्र किए गए नमूनों में आंकड़ों की भिन्नता थी, जिसके कारण ये नदी क्षेत्र में समग्र नदी जल की गुणवत्ता को प्रतिबिंबित नहीं करते थे। बोर्ड की 28 फरवरी की तारीख वाली इस रिपोर्ट को सात मार्च को एनजीटी की वेबसाइट पर अपलोड किया गया। बोर्ड ने 12 जनवरी से लेकर अब तक प्रति सप्ताह दो बार, जिसमें स्नान के शुभ दिन भी शामिल हैं, गंगा नदी पर पांच स्थानों तथा यमुना नदी पर दो स्थानों पर जल निगरानी की है। रिपोर्ट में कहा गया है, विभिन्न तिथियों पर एक ही स्थान से लिए गए नमूनों के लिए विभिन्न मापदंडों जैसे पीएच, घुलित ऑक्सीजन (डीओ), जैव रासायनिक ऑक्सीजन मांग (बीओडी) और फीकल कोलीफॉर्म काउंट (एफसी) के परिमाण में अहम बदलाव देखे गए है। एक ही दिन एकत्र किए गए नमूनों के लिए उपर्युक्त मापदंडों के परिमाण भी अलग-अलग स्थानों पर भिन्न होते हैं। रिपोर्ट के अनुसार जल में ऑक्सीजन की मात्रा या डीओ, जल में कार्बनिक पदार्थों को खंडित करने के लिए आवश्यक ऑक्सीजन की मात्रा को मापता बीओडी, जल की गुणवत्ता के प्रमुख संकेतक हैं। एक विशेषज्ञ समिति ने आंकड़ों में परिवर्तनशीलता के मुद्दे की जांच की और कहा कि आंकड़ा एक विशिष्ट स्थान और समय पर जल गुणवत्ता का तत्कालिक स्थिति को दर्शाता है।
मैं आंकड़े और राज ठाकरे की बात का विरोध तो नहीं कर रहा हूं लेकिन अधूरी जानकारी के दम पर ना तो कुछ कहा जाए क्योंकि इससे करोड़ों श्रद्धालुओं की भावनाओं को ठेस पहुंचती है। यह अधिकार संविधान में किसी को नहीं दिया गया है। गंगा और नदियां पवित्र थी रहेंगी बस पर उन पर ध्यान देने और स्वाथों के लिए जो लोग उनमें गंदगी डालने की कोशिश कर रहे हैं उन्हें रासुका में निरूद्ध कर सजा दी जाए। क्योंकि पूजा की मूर्तियों और सामग्री के विसर्जन पर तो रोक लगाई जा रही है लेकिन नदियों को गंदा करने वालों की कारस्तानी पर रोक नहीं लग पाई है। कुछ नागरिकों की इस बात से मैं भी सहमत हूं। राज ठाकरे जी जहां तक इसमें अंधविश्वास की बात है तो यह हमारी उन्नति का मार्ग प्रशस्त कर रहा है क्योंकि बिना सवाल उठाए कभी हम परिवार के मुखिया कभी नेताओं और कभी अन्य क्षेत्रों में आंख मींचकर भाग रहे हैं तो फिर धर्म के पीछे भागने में क्या बुराई है।
(प्रस्तुतिः रवि कुमार बिश्नोई संपादक दैनिक केसर खुशबू टाइम्स मेरठ)

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