बड़े नेताओं को भी आयोजनों में आमंत्रित नहीं किया जाता, जयंत जी क्या रालोद इसी दम पर चुनाव जीतने की सोच रहा है
राजनीतिक दलों में गुटबंदी और कार्यकर्ता व नेताओं में ये भावना कि दूसरा मुझसे आगे न बढ़ जाए और दल के मुखिया की नजर में न आ जाए इस बात की लड़ाई और गुटबंदी खूब सुनने और देखने को मिलती है क्योंकि उनके पास सत्ता और मजबूत विपक्ष की जो धमक होती है उसकी चमक प्राप्त करने की लालसा निरंतर बनी रहती है।
लेकिन जिस दल की अभी दोबारा से थोड़ी चमक और प्रसिद्धि बढ़नी शुरू हुई उसके नेता और कार्यकर्ता अपने सहयोगियों को नजरअंदाज करे और चार आदमी जुटे नहीं कि अपने आप को बड़ा लीडर समझकर यह प्रयास करने लगते है कि लोग उनकी प्रशंसा करे वो ठीक नहीं इसलिये रालोद के नेता अपने पुराने कार्यकर्ता और नेताओं को दोबारा सक्रिय करने से घबराते है कि कहीं वो आगे न बढ़ जाए।
पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह जी के कार्यकाल में देश के कई प्रांतों में अपनी पार्टी का झंड़ा बुलंद रखने वाले स्वर्गीय किसान मजदूर और मजलूमों के लीडर चौ0 चरण सिंह जी साहब के बाद कुछ वर्षों तक स्वर्गीय अजीत सिंह साहब ने भी उस धमक को कायम रखा। वो केन्द्रीय उद्योगमंत्री रहे और यूपी सरकार में भी उनके मंत्रियों को स्थान मिला लेकिन कुलिया में सिमटी सोच के चलते एक समय ऐसा भी आया कि बागपत और शामली में भी रालोद का कोई विशेष प्रभाव नहीं रहा।
यूपी के बीते विधानसभा चुनाव में जयंत चौधरी राष्ट्रीय लोकदल के अध्यक्ष जिनमें बड़े चौधरी साहब की झलक पुराने नेता व मतदाताओं को नजर आती है क्योंकि उन्होंने अपनी सुझबुझ तथा चुनाव नीति और राष्ट्रीय महामंत्री त्रिलोक त्यागी व डा0 राजकुमार सांगवान जैसे सक्रिय पार्टी नेताओं की मेहनत और प्रयासों से अपने आप निर्णय लेते हुए समाजवादी पार्टी के मुखिया पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव जी से गठबंधन किया। और पूरी ईमानदारी से रालोद नेता ने अपनी पार्टी के नये पुराने मतदाताओं के वोट सपा उम्मीदवारों को डलवाई परिणाम स्वरूप सपा मुखिया ने भी दिल खोलकर सहयोग किया। जिस कारण बहुत दिनों बाद यूपी विधानसभा में रालोद के विधायक उसका नाम जिंदा रखने लायक पहुंचे और जयंत चौधरी व अखिलेश यादव की जुगलबंदी का परिणाम यह रहा कि रालोद अध्यक्ष राज्यसभा में भी पहुंच गये।
वर्तमान में 2024 के लोकसभा चुनाव में सपा और रालोद की स्थिति मजबूत रखने और इंड़िया गठबंधन अगर चलता है तो उसके उम्मीदवारों को जीताने का माहौल पहले से ही बनाने की रणनीति जयंत चौधरी जी द्वारा अपने नेताओं और समर्थकों के साथ बनाकर खेल एवं भाईचारा और सद्भाव प्रकोष्ठ से जुड़े लोगों को सक्रिया किया गया। जिससे लगा कि यह लोग अपने नेता की भावनाओं को समझकर पार्टी की मजबूती हेतु चौधरी साहब के जमाने से जुड़े मतदाता नेताओं और कार्यकर्ताओं को जोड़कर पार्टी का जनाधार मजबूत करेंगे।
लेकिन जिस प्रकार से रालोद के जनपदों में सक्रिय नेताओं द्वारा इससे संबंध रैलियों आदि के दौरान कार्यकर्ताओं को कहे अनकहे रूप में दूर रखा जा रहा है जनपदों में वरिष्ठ नेताओं के आवागमन पर पार्टी के पूर्व पदाधिकारियों तक को आमंत्रित न कर तथा पत्रकार सम्मेलनों आदि से मुख्य नेताओं को भी दूर रखने से ऐसा प्रतीत हो रहा है कि रालोद के कुछ नेता शायद ये नहीं चाहते कि जयंत चौधरी का कद राजनीति में और उनके जनप्रतिनिधियों की संख्या विधानसभा और लोकसभा में बढ़े वर्ना इनके स्थानीय नेताओं को अपने जनपदों में सक्रिय रहे पूर्व नेताओं और पदाधिकारियों तथा मतदाताओं के साथ ही मीडिया से जुड़े लोगों का ज्ञान और जानकारी पूरी होनी चाहिए थी। लेकिन यहां तो जो नजर आता है उसके अनुसार पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जयंत चौधरी महामंत्री त्रिलोक त्यागी के आवागमन की सूचना भी उन्हें नहीं जाती और अगर कुछ पत्रकार बड़े नेताओं को कवंर करने वहां पहुंचते है तो वहां मौजूद आयोजकों को अपने बड़े नेताओं के नाम भी पता नहीं होते है और अव्यवस्था का जो हाल होता है ये किसी को बताने की आवश्यकता नहीं है। सब फोटो खिंचवाने नाम चमकाने के प्रयासों में ही लगे रहते है। रालोद के राष्ट्रीय अध्यक्ष जयंत चौधरी जी को सोचना होगा कि क्या ऐसे नेताओं और कार्यकर्ताओं के चलते पार्टी का बजूद और जनप्रतिनिधियों की संख्या बढ़ पायेगी। और अगर वो ऐसा नहीं सोचते है तो सिर्फ सिफारिशों के आधार पर मनोनीत नौसंख्य नेताओं और पदाधिकारियों को भी जोड़े रखने के साथ ही अपने पुराने पदाधिकारियों कार्यकर्ताओं और नेताओं व मतदाताओं को भी आगे लाना होगा। अभी पिछले दिनों जब रालोद के बड़े नेता रैलियो के संबंध में जिलों में गये तो यह जानकर बड़ा ताज्जुब हुआ कि बड़े चौधरी साहब के साथ सक्रिय रहे पार्टी की जिला शाखा के अध्यक्ष मेरठ बार के पूर्व पदाधिकारी राजेन्द्र सिंह जानी जैसे रालोद के मजबूत स्तम्भ को भी प्रमुख नेताओं के आवागमन की सूचना और कार्यक्रमों में शामिल होने का निमंत्रण नहीं भेजा गया। जयंत चौधरी जी आप समझ सकते है कि जिलों में नेता क्या कर रहे है।
जयंत जी जिस प्रकार कागज के फूलों से महक नहीं आती इसी प्रकार मठाधीश नेताओं से नहीं बढ़ता पार्टी का जनाधार
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