Saturday, July 27

न्यूटिमा विधायक विवाद: अतुल प्रधान को मिल रहा है जनता का समर्थन डॉक्टरों ने भी निशुल्क इलाज और लाइफ सपोटिंग अभियान, नर्सिंग होम व क्लीनिकों की हो जांच, इन मुददों पर भी हो कार्रवाई

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न्यूटिमा हॉस्पिटल प्रबंधन तथा डॉक्टरों और सपा विधायक अतुल प्रधान के बीच मरीजों के हित में आवाज उठाने पर शुरू हुआ आंदोलन अभी समाप्त नहीं हो पा रहा लगता है लेकिन अतुल प्रधान को मिल रहे निरंतर समर्थन और डॉक्टरों द्वारा की गई सुधार की परंपरा से एक बात तो स्पष्ट होती जा रही है कि सब तो नहीं लेकिन कुछ चिकित्सक तो दूध के धुले नहीं है। सरधना से जुझारू विधायक ने न्यूटिमा में मरीज को परेशान को परेशान करने दवाई और बिल के पैसे ज्यादा लेने और पूरे शब्दों में दवा का नाम ना लिखने आदि मुददों को लेकर जो आंदोलन शुरू किया था वो चिकित्सकों के लाख यह कहे जाने के बावजूद भी कि विधायक डॉक्टरों को धमकाते हैं। उनसे दुर्व्यवहार करते हैं। और ऐसे ही अनेक बिंदुओं को लेकर बड़े बड़े पोस्टर बैनर के साथ निकाले गए पैदल मार्च और निरंतर किए जा रहे पत्रकार सम्मेलन के बाद भी उन्हंे वो जनसमर्थन नहीं मिल पा रहा लगता है जो मिलना चाहिए था। गरीब और आम आदमी की निगाह में लड़ रहे लड़ाई को लेकर अतुल प्रधान काले कपड़े पहनकर विधानसभा में पहुंचे तो अन्यों का समर्थन भी इस मुददे पर उन्हें मिला और उन्होंने अपनी बात भी जमकर सदन में रखी। तो डॉक्टर यही कहते रहे कि बर्दाश्त नहीं करेंगे उत्पीड़न। लेकिन सवाल यह उठता है कि आखिर उनका उत्पीड़न क्या हो रहा था। छात्र उनके विरूद्ध है। युवा अधिवक्ता उनके खिलाफ आवाज उठा रहे हैं। जनता उनके समर्थन में नहीं है। जबकि विधायक को सब तरफ से समर्थन प्राप्त हो रहा है।
जनहित में इन मुददों पर सरकार दें ध्यान
हम विधायक और डॉक्टरों के विवाद को एक तरफ रखकर सोचें तो मेरठ में कई सौ नर्सिंग होम और डॉक्टरों के क्लीनिक हैं। लेकिन जानकारों का कहना है कि कुछ प्रतिशत को छोड़कर ज्यादातर अवैध रूप से निर्मित है और जिनके मानचित्र भी पास कराए गए हैं उनके निर्माण भी गलत है। कई के भूउपयोग भी नर्सिग होम के लिए नहंीं है।
दूसरे यह मांग भी सही प्रतीत होती है सरकार जांच कराए और देखें कि चिकित्सकों के यहां क्लीनिक और नर्सिंग होमों में सरकारी नियमों का पालन हो रहा है या नहीं।
तीसरा कुछ लोगों की इस बात में भी दम नजर आता है कि नर्सिंग होमों में खुले अवैध मेडिकल स्टोर पर मरीजों को महंगी दवाईयां बेची जाती है। इसलिए इन मेडिकल स्टोरों को अगर गलत हैं तो वहां से हटाया जाए।
चौथा यह मांग भी सही लगती है कि डॉक्टर दवाई का पूरा नाम पर्चे पर क्यों नहीं लिखते हैं।
पांचवा इसके अलावा यह मांग भी सही है कि पीएम की भावनाओं से जुड़ी जेैनेरिक दवाई जो सस्ती मिलती है सभी डॉक्टरों द्वारा लिखी जाएं। क्योंकि महंगी दवाईयां सबके बस का खरीदना नहीं है और कोई इनके बारे में गलत अफवाह ना फैलाए कि यह असर नहीं करती है।
छठा 200 रूपये से ज्यादा लेने वाले डॉक्टर मरीज को रसीद दे क्योंकि एक एक चिकित्सक कावक नुमा दुकानों में महंगी फीस लेकर लाखों रूपये रोज कमा रहे हैं और जो टैक्स देने चाहिए ज्यादातर नहीं देते। क्योंकि फीस का हिसाब किताब भी नहीं होता।
सातवां यह मांग भी सही प्रतीत होती है कि डॉक्टर हफते में एक बार फीस लें। अब जो कुछ डॉक्टर कई बार देखने के नाम पर वसूली करते हैं वो गलत है।
आठवां सरकार विशेषज्ञों की कमेटी बनाकर नर्सिंग होमों की जांच कराए और देखें कि इनमें कुछ गलत है तो उनके विरूद्ध कार्रवाई की जाए।
नौवां ऐसे अस्पतालों व क्लीनिकों को व्यवसाय की श्रेणी में रखते हुए इनसे लाइसेंस फीस ली जाए और अगर शमन हो सकता है तो उससे शुल्क वसूला जाए और बाकी के खिलाफ न्यूटिमा की तरह की जाए कार्रवाई।
मेरा मानना है कि उपर भगवान और नीचे डॉक्टर उसके समान होते है। लेकिन कई चिकित्सकों के द्वारा पैसा कमाने की होड़़ में इस पवित्र पेशे की गरिमा को भूल मरीजों से मोटी वसूली की जाती है उन्हें बेइज्जत भी उनकी मजबूरी का फायदा उठाकर किया जाता है। यह कुछ ऐसे बिंदु हैं जिन पर सरकार को ध्यान देकर जनमानस के हित में सस्ता इलाज की नीति के तहत नियम विरूद्ध काम करे डॉक्टरों पर कसा जाए शिकंजा।
जहां तक विधायक अतुल प्रधान के आंदोलन की बात है तो अभी तक वो सीधे सीधे जनहित में और आम आदमी के लाभ के नजर आ रहा है। उसके उदाहरण के रूप में हम डॉक्टरों द्वारा दस रूपये के पर्चे पर जीवनभर मरीजों को देखने हेतु आईएमए की निशुल्क ओपीडी व बेसिक लाइफ सपोर्टिंग योजना को देख सकते है। कुछ डॉक्टरों द्वारा जो यह व्यवस्था की गई है उसकी सराहना की जानी चाहिए लेकिन इसका श्रेय अतुल प्रधान को ही मिलना चाहिए क्योंकि उनके आंदोलन के बाद ही यह व्यवस्था शुरू की गई।
मुझे लगता है कि डॉक्टरों की सुरक्षा के लिए बने नियमों के तहत उनके मान सम्मान से किसी को खिलवाड़ नहीं करने दिया जाना चाहिए लेकिन अवैध निर्माण और अन्य कार्यो में लगे चिकित्सकों द्वारा जो विभिन्न मुददों को लेकर नागरिकों के साथ मारपीट की जाती है ऐसे चिकित्सकों को भी समझना होगा कि आम आदमी के विरूद्ध जाकर सत्ताधारी दल के सदस्य भी उनकी मदद नहीं कर सकते।
इसलिए चिकित्सकों को किसी गलतफहमी में ना रहकर अपने काम को अंजाम देने हेतु नियमानुसार अपने अस्पतालों व क्लीनिकों का निर्माण करना चाहिए।
अगर वो अनाप शनाप फीस वसूल रहे हैं। महंगी दवाई बेच रहे हैं तो उनसे टैक्स की वसूली हो।
हर डॉक्टर के लिए अनिवार्य किया जाए कि वो साफ शब्दों में जैनेरिक दवाई का नाम लिखेंगे और मरीज को यह कहकर डराने की कोशिश नहीं करेंगे कि यह दवाई असर नहीं करती और महंगी दवाई लेने के लिए प्रेरित नहीं किया जाएगा। कुल मिलाकर कहने का मतलब है कि चिकित्सकों और विधायक का विवाद अब समाप्त होना चाहिए क्योंकि सही स्थिति क्या है और आम आदमी किसके समर्थन में है यह बात स्पष्ट हो चुकी है मगर डॉक्टरों की गरिमा भी बनी रहे इसका भी ध्यान हम सबको रखना है। भले ही कुछ गलत रास्ते पर हो लेकिन इनके बिना जीवन का सफर आसानी से हो पाएगा ऐसा लगता नहीं है।

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