मेरठ कोतवाली क्षेत्र के बनियापाड़ा निवासी शंकर रस्तौगी और उनके परिवार की परतापुर के सरस्वती इंडस्ट्रियल एरिया में इनोवेटिव पब्लिकेशन हाउस में गत 16 अक्टूबर को दोपहर में दूसरी मंजिल पर लगी आग जिसे बुझाने में तीन जिलों की 20 फायर ब्रिगेड की गाड़ियों और लाखों लीटर पानी लगा तब भी आग पर आठ घंटे बाद काबू पाया जा सका। गनीमत यह रही कि लंच के समय कर्मचारी बाहर थे इसलिए कोई जान का नुकसान होने की खबर नहीं रही। लेकिन घटना कितनी भयंकर होगी इसका अंदाजा सभी को होगा। अभी उक्त प्रकरण शहरवासी भूल भी नहीं पाए कि लगभग 20 घंटे बाद 17 अक्टूबर को लोहियानगर में फैक्ट्री जिसमें कोई साबुन बनाने की बात कर रहा है तो कुछ का कहना है कि पटाखे की संभावनाओं से भी इनकार नहीं किया जा सकता ने आसपास के क्षेत्रों को दहलाकर रख दिया। और बताते हैं कि इस घटना में पांच लोगों की मौत हुई।
देशभर में आए दिन कहीं ना कहीं से इस तरह की घटनाओं की खबर मिलती ही रहती है। बीते मंगलवार को ही तमिलनाडु के विरूधुनगर की पटाखा फैक्ट्री में आग लगी जिसमें 11 लोगों की मौत हो गई। सवाल यह उठता है कि हम दोषियों की तरफ से नजर हटाकर कब तक सिर्फ श्रद्धांजलि और मुआवजा देकर व जांच बैठाकर पीड़ितों की भावनाओं से आखिर खिलवाड़ करते रहेंगे। यूपी के ऐतिहासिक शहर मेरठ में भी साल में कई बार ऐसी घटनाएं होती हैं और संबंधित विभागों के अधिकारी अपनी कमियों से निगाह हटाने के लिए आग के कारण होते कुछ हैं लेकिन इनके द्वारा बताए कुछ और जाते हैं। लोहियानगर प्रकरण मेें भी मजिस्टेट जांच के आदेश दिए गए हैं और 48 घंटे में इसकी रिपोर्ट देने के निर्देश दिए गए हैं। घटना के बाद मंत्री जी भी मौके पर पहुंचे और अफसोस जताते हुए यह कहकर कि दोषियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई होगी वहां से चले गए। लेकिन सवाल यह उठता है कि आखिर वो दोषियों के खिलाफ कार्रवाई कब होगी। धमाका कितना मजबूत था इसका अंदाजा इससे लगा सकते हैं कि मलबा हटाते समय भी रूक रूककर आवाजें हो रही थी। पड़ोसी शादाब के मकान की दूसरी मंजिल गिर गई और बचावकर्मियों को भी भागकर जान बचानी पड़ी।
आवासीय कॉलानियों में इस प्रकार की फैक्ट्रियां चल रही है और जब भी उनमें घटना होती है तो बड़े बड़े दावे कार्रवाई के किए जाते हैं। मगर दोषी या तो मौके से भाग जाते हैं या कार्रवाई से बचने के लिए बयान बदलना शुरू कर देते हैं। कुछ दिनों बाद पुलिसकर्मी अपने काम में लग जाते हैं और प्रशासन अपनी व्यवस्थाओं को पूरा करने में। आसपास के लोगों का कहना है कि साबुन बनाने की आड़ में पटाखों की फैक्ट्री चल रही है इसका ज्ञान सभी को था। बस किसी ने समय रहते कार्रवाई को अंजाम देने की कोशिश नहीं की। आम नागरिकों की इस बात में दम है कि कुछ ही मिनटों में होने वाले विस्फोटो से मचने वाले खूनी कहर कब हो जाएं यह कोई नहीं कह सकता क्येांकि जनपद में तमाम जगह ऐसे फैक्ट्रियांें के रूप में बारूद के ढेर चलने की बात सामने आ रही है। कहीं काले तेल से मोबिल आयल बनाने की बात चल रही है तो कहीं कैमिकल बनाने का काम हो रहा है। कहीं पटाखे बनाए जा रहे हैं तो अन्य कई ज्वलन पदार्थों का अवैध कारोबार आवासीय कॉलोनियों में हो रहा है। मगर इन्हें रोकने के लिए जागरूकों की नींद जब घटना हो जाती है तभी क्यों टूटती है यह सवाल भी सुरसा के मुंुह की भांति सामने खड़ा है।
एनजीटी के आदेशों को ताक पर रखकर चल रही उक्त फैक्ट्री की आग बुझाने के लिए एनडीआरएफ के 35 और फायर के 25 जवानों के अतिरिक्त डॉग स्कवायड को सक्रिय किया गया था। अब एटीएस की टीम ने भी निरीक्षण किया लेकिन इन फैक्ट्रियांें की ओर घटना से पहले कोई ध्यान क्यों नहीं देता। अपने जनपद में क्या स्थिति है इसका अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि कुछ वर्ष पूर्व सरधना में कांग्रेस नेता के यहां विस्फौट हुआ था जिसमें आधा दर्जन मकान तबाह हुए थे। सरूरपुर के गांव मैनापुठी में पटाखों के जखीरे मे ं आग लगी थी। मवाना के सठला गांव में एक माह में दो बार पटाखें के जखीरे में विस्फोट हुआ। पिछले साल लिसाड़ी गेट क्षेत्र में बारूदी विस्फोट की घटना हुई। सबसे बड़ी घटना तो लापरवाही के परिणामस्वरूप विक्टोरिया पार्क व पूर्व में तीरांगान में हुई थ्ीा जिसमें काफी लोगों की जानें गई थी।
जैसे जैसे समय बीतता जाता है दोषी जुगाड़ से अपना बचाव मैनेज कर लेते हैं और कार्रवाई करने वाले अपनी जिम्मेदारियों को पूरा करने में लग जाते है। जब तक अगली घटना नहीं होती तब तक लोग इसे भूल जाते है। इसके उदाहरण के रूप में हरियाणा के डबावली गांव में आगजनी में काफी बच्चे मरे थे और मेरठ के वेस्ट एंड रोड पर जैन विवाह मंडप में शादी के दौरान लगी आग का भी स्मरण कर सकते हैं।
संयुक्त व्यापार संघ के अध्यक्ष अजय गुप्ता का कहना है कि पुलिस प्रशासन लोहियानगर विस्फोट की जांच सही प्रकार से करे लेकिन व्यापारियों का उत्पीड़न नहीं होने देंगे। गुप्ता के इस बयान पर कई नागरिकों की टिप्पणी रही कि आप तो व्यापारी नेता है। यह जो गलत फैक्ट्रियां नर्सिंग होम अवैध निर्माण में चल रहे हैं आखिर अपने प्रभाव का इस्तेमाल कर इन्हें क्यों नहीं बंद कराते। आखिर आम नागरिक की जान माल के लिए भी तो किसी को सजा और परिवार को न्याय मिलना ही चाहिए। कुछ लोगों का यह कहना भी सही लगता है कि ऐसी फैक्ट्रियांें में बिहार बंगाल व दूसरे प्रदेशों से आए लोग काम करते हैं जिनके साथ दुर्घटना हो जाती है उनके परिवार के लोग कुछ कर नहीं पाते। दोषी मैनेज कर उनका मुंह बंद करा देते हैं। इससे ऐसी घटनाओं के बढ़ने की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकत।
ऐसे प्रकरण प्रधानमंत्री जी और मुख्यमंत्री जी के आम आदमी को सुरक्षित रखने के प्रयासों के विपरित हैं। जिन्हें इन्हें रोकने और गलत काम करने वालों को सजा देने की जिम्मेदारी दी गई है वो अपने मजे में मस्त है।। वरना नगर निगम आवास विकास मेडा और फायर विभाग के किसी ना किसी रूप में ऐसी घटनाओं से संबंध अफसरों के विरूद्ध कार्रवाई होनी चाहिए थी जो नहीं हुई। एकमात्र विक्टोरिया कांड में कुछ लोगों के खिलाफ जांच लंबी चली लेकिन उसमें भी क्या हुआ वो जनता को नहीं पता। मेरा मानना है कि सभी जिलाधिकारियों को निर्देश दिए जाएं और उनकी अध्यक्षता में एक कमेटी गठित हो कि कहीं से भी विस्फोटक बनाने की फैक्ट्रियां आवासीय आबादी के बीच होने की खबर मिलती है तो उस पर तुरंत कार्रवाई करें और जांच कराकरर उन्हें धराशायी करें क्योंकि आम आदमी की जान लेने वाले इन कारखानों को नहीं बख्शा जाना चाहिए। चाहे दोषी कितना भी प्रभावशाली क्यों ना हो।
इन पर हो कार्रवाई
जो प्रकरण पिछले एक साल में हुए उसमें नगर निगम आवास विकास मेडा और फायर व बिजली विभाग के जो अधिकारी लापवारही के दोषी पाए जाएं उन पर भी नियमों के तहत कार्रवाई होनी ही चाहिए। क्योंकि ऐसी ज्यादातर फैक्ट्रियां अवैध निर्माण में लगाई जाती है जिनमें ना पानी बिजली कनेक्शन मिल सकता है ना फायर एनओसी। फिर भी इनमें सभी चीजें होती है। कहीं ना कहीं इन विभागों के अफसर भी कार्रवाई के पात्र हैं ही।
पीएम और सीएम साहब कुछ लोगों के लालच लापरवाही को लेकर कब तक जाती रहेंगी नागरिकों की जान, आबादी में कब तक होते रहेंगे विस्फोट, डीएम साहब नगर निगम मेडा आवास विकास और फायर से संबंधित अधिकारियों के खिलाफ भी हो कार्रवाई
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