Friday, November 22

मान्यवर यह इंसाफ तो नहीं है! नगर निगम मेडा आवास विकास आदि के अफसरों के द्वारा आम आदमी का उत्पीड़न

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सरकार द्वारा निर्धारित कर समय से देना हर व्यक्ति की जिम्मेदारी है चाहे वो आम हो या खास। क्योंकि सरकार के पास ना तो कोई कारू का खजाना है और ना ही अल्लाउद्दीन का चिराग जिसे घिसकर धन आ जाए और विकास कार्य करा दिये जाए। जन समस्याओं के समाधान आम आदमी के हित में चलाई जा रही जनहित की योजनाओं का लाभ जनता को दिलाने और विकास कार्य समय से कराने तथा सामाजिक रूप से सार्वजनिक सभी व्यवस्थाऐं करने हेतु पैसे की आवश्यकता होती है और वो विभिन्न प्रकार के टैक्स और करों से ही प्राप्त होता है। मगर माननीय वर्तमान समय में स्थानीय निकाय से संबंध कार्यालय एवं नगर निगम विकास प्राधिकरण आवास विकास आदि सरकारी विभाग शासन द्वारा उन्हें सौंपी गई जिम्मेदारियां पूरी करने में तो असक्षम सिंद्ध हो ही रहे है। जिन जनहित के कार्यों हेतु सरकार इन विभागों में तैनात अफसरों को बजट देने के साथ साथ सभी सुविधाऐं घोड़ा गाड़ी बढ़िया वातानुकूलित कमरें उपलब्ध कराने के अतिरिक्त सौंपे गये कार्य पूरा करने हेतु अन्य सुविधाऐं भी दे रही है। उसके वाबजूद इन विभागों के अफसर ज्यादातर कार्य अपने पद के तहत आने वाले पूरा करने में सफल नजर नहीं आ रहा है। क्योंकि विभाग से संबंध सुविधाऐं जनता को उपलब्ध करा नहीं रहे है। लेकिन विभागीय फौज को लेकर वसूली करने और किसी वजह से एकदम अदायगी न करने पर अनकहे रूप से एक प्रकार का आतंक फैंलाने का जो प्रयास इनके द्वारा किया जाता है वो तो सही नहीं है।
आखिर आम आदमी भी इसीलिए टैक्स और कर देता है कि उसे जरूरी सुविधाऐं प्राप्त होगी। माननीय मुख्यमंत्री जी स्थिति कहां तक पहुंच गई है इसका अंदाज इससे लगाया जा सकता है कि राज्य सभा सदस्य कांता कर्दम की गैस एजेंसी पर मात्र 60 हजार रूपये की वसूली के लिए निगम की टीम उसे सील करने पहुंच गई। जो महापौर हरिकांत अहलुवालिया के पहुंचने पर खोल दी गई। इसी प्रकार से शहर में अवैध निर्माणों कच्ची कालोनियों और सरकारी भूमि घेरकर निर्माण करने वालों एवं नियम विरूद्ध हरित पट्टी रोड़ बाईडिंग की जमीन पर कब्जा करने वालों को रोकने में तो मेरठ विकास प्राधिकरण मेडा के अधिकारी असफल नजर आते है। एक खबर के अनुसार इसके कार्य क्षेत्र में 14,408 अवैध निर्माण बताये जाते है। जिन्हें सिर्फ नोटिस भेजने तक ही विभाग सिमट गया है। पूरा शहर मेडा नगर निगम और आवास विकास के अधिकारियों की लापरवाही के चलते हुए अवैध निर्माणों के कारण आग के मुहाने पर खड़ा नजर आता है क्योंकि पता नहीं कब किस बिल्डिंग में अवैध कार्यों के चलते कब विस्फोट हो जाए या आग लग जाए कोई कुछ नहीं कह सकता।
मान्यवर ज्यादातर नागरिक अगर सुविधा मिले तो सभी प्रकार के टैक्स देने के लिए हमेशा तैयार रहते है। लेकिन ऊपर दिये गये नामों आदि से संबंध कुछ विभागों के अफसर सुविधाऐं देने को तो तैयार नहीं है वसूली के लिए पूरी फौज लेकर पहुंच जाते है जनता की तो बात छोड़िएं नगर निगम पार्षदों और जनप्रतिनिधियों से भी इनके द्वारा जनता का उत्पीड़न किये जाने के विरूद्ध कई बार पंगे होते होते बचे है।
मुझे लगता है कि सरकारी विभागों के हुकुमरानों को भी अब ये समझना होगा कि लोकतांत्रिक रूप से चुनी गई सरकारों में मतदाता का अधिकार सर्वो प्रिय होता है। और उसे पूरा न करने पर थोड़े दिनों तक तो लाठी डंडें और दबाव में मनमर्जी चलाई जा सकती है लेकिन लम्बे समय तक यह संभव नहीं है इसलिए सरकारी छोटे बड़े बाबुओं को एसी कमरों में बैठकर मीटिंग के नाम पर चाय की प्याली खनकाने के अतिरिक्त सरकारी की नीतियों के विपरित काम करने वाले सफेदपोशों मुख में राम बगल में छुरियां चलाने वालों से चर्चा और गलबलियां करने और सुझाव लेने से शासन की जनहित की योजनाऐं लागू होने और उनका लाभ आम आदमी तक पहुंचने वाला नहीं है यह अधिकतर समझना होगा। मान्यवर आम आदमी जो कर देता है उसकी एवज में उसे सुविधाऐं और काम भी चाहिए।
जिसके लिए सरकार हर संभव प्रयास कर रही है। खुद आदरणीय प्रधानमंत्री जी और मुख्यमंत्री जी अफसरों को कार्रवाई निर्देश और आदेश भी दे रहे है मगर ज्यादातर उन्हें क्यों मान नहीं रहे है इस बात को जनप्रतिनिधियों को समझना होगा। क्योंकि आम आदमी इंसाफ चाहता है। और हुजूर अफसरों की उक्त कार्यप्रणाली को इंसाफ नहीं कहा जा सकता। मान्यवर ये इंसाफ तो नहीं है।

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