Thursday, October 30

सरकार पुलिसकर्मियों और कैदियों को उपलब्ध कराए सुविधा, हवाला जैसे प्रकरणों के लिए आरोपी डीएसपी जैसी कार्यप्रणाली पर लगे रोक, नागरिक पुलिस भाई भाई का संदेश हो लागू, सुरक्षा बल के जवान कू्ररता भरा व्यवहार बंद करें, भयमुक्त वातावरण की स्थापना

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मैं यह तो नहीं कहता कि पुलिस और सुरक्षा बल के जवान कुछ नहीं कर रहे हैं क्योंकि १६ घंटे तक यह डयूटी देते हैं। छुटिटयां इन्हें आसानी से मिलती नहीं और सरकारी आवास शायद पूर्ण नहीं इसलिए यह कहना और सोचना गलत है कि यह अपनी जिम्मेदारियों को पूरा नहीं कर रहे हैं। यह सही है कि एक मछली सारे तालाब को गंदा करती है कहावत के अनुसार कुछ की लापरवाही, या डंडे की धोंस दिखाकर जो कार्यप्रणाली अपनाई जा रही है उससे गालियां देने से पुलिस की छवि आशा के अनुकूल नहीं नजर आ रही है। पुलिस अधिकारी नारा देते हैं नागरिक पुलिस भाई भाई भयमुक्त वातावरण की स्थापना के हो रहे हैं प्रयास हो सकता है कि सही हो लेकिन ऐसा हो तो नहीं रहा है। क्योंकि खबरों में छप रहा है कि पसवाड़ा गांव के सोहित की हत्या मामले में पुलिस की लापरवाही सामने आई है। ट्रांसपोर्टर ने पुलिस उत्पीड़न तंग होकर जहर खाया थानाध्यक्ष निलंबित, फर्रूखाबाद की एसपी को हाईकोर्ट ने वकील की रिहाई तक अदालत में बैठाया क्योंकि वकील को धमकाने, और गिरफ्तारी का आरोप खुलकर सामने आया। भले ही पूर्व मंत्री आजम खां विपक्षी दल के नेता हो लेकिन जेल से वापस आने पर सुरक्षा मिली तो उन्होंने कहा कि मैं कैसे मान लूं कि यह पुलिस वाले हैं। यह कोई आखिरी मामले नहीं है। ऐसी खबरें आए दिन सुनने पढ़ने को मिलती ही रहती है। पिछले दिनों मेरठ के व्यापारी धनेंद्र जैन के बेटे की तेहरवीं में आए लोगों के वाहनों के यातायात पुलिस ने चालान कर दिए बिना यह बताए कि कसूर क्या है। क्योंकि वाहन गलत खड़े थे तो वहां और भी वाहन सड़क पर खड़े थे उनमें से किसी का जानकारी अनुसार चालान नहीं किया गया। सांत्वना देने आए लोगों को तो बख्शा ही जाना चाहिए था। हरियाणा के एडीजीपी पूरण कुमार की आत्महत्या और अब इस मामले में एएसआई संदीप लाठर की आत्महत्या और लिखे गए सुसाइड नोट से सामने आ रहा है कि कुछ ना कुछ तो गलत हो ही रहा है। मेरा मानना है कि कुछ पुलिस अधिकारियों का यह कहना गलत नहीं है कि सख्त डयूटी देने और पूरी तौर पर आवास व्यवस्था उपलब्ध ना होने से कभी कभी पुलिसकर्मी डिस्टर्ब हो जाते हैं तो ऐसी घटनाएं हो जाती हैं जिन्हें सही नहीं कहा जा सकता। कुछ लोगेां के इस कथन से मैं भी सहमत हूं कि जो नौकरी से संतुष्ट नहीं है उन्हें इस्तीफा दे देना चाहिए उनके स्थान पर नौजवानों को मौका मिलेगा तो शायद कुछ सुधार की उम्मीद बंधे। सुख सुंविधा उपलब्ध कराना सरकार और अफसरों का काम है। यह भी परिवार के साथ समय गुजार सके उसकी भी इंतजाम हो लेकिन आम लोगों के साथ क्रूरता पर रोक लगे और सिपाही लेकर उच्चाधिकारी तक किसी को भी आत्महत्या के लिए मजबूर ना होना पड़े ऐसा माहौल उपलब्ध कराया जाए। सरकार के आदेशों का थानों पर अमल नहीं होता। आने वालों की शिकायत सुनी जाए और मुकदमा भी दर्ज हो और हम कमरे में सीसीटीवी कैमरे हो और पीएम के स्वच्छता अभियान को ध्यान रखते हुए बैरक हवादार सुलभ शौचालय और समय से भोजन उपलब्ध कराया जाए जिससे थानों की बैरक में कैदियों को आत्महत्या जैसा कदम ना उठाने के लिए मजबूर ना होना पड़े। क्योंकि दिल्ली की मुख्यमंत्री की सख्त कार्रवाई के बाद हवाला के 2.96 करोड़ रूपये की लूट में महिला डिप्टी एसपी समेत 11 पुलिसकर्मियों पर डकैती का जो मामला दर्ज हुआ ऐसे प्रकरणों की पुर्नवृत्ति भी पुलिस की छवि में सुधार के लिए समय की बड़ी आवश्यकता है।
(प्रस्तुतिः- रवि कुमार बिश्नोई संपादक दैनिक केसर खुशबू टाइम्स मेरठ)

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