Thursday, November 21

सोशल मीडिया पर ही निगरानी क्यों

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वैसे तो पिछले लगभग एक दशक से लोकसभा हो या विधानसभा चुनाव जीतने के लिए हर समझदार उम्मीदवार और उसके सहयोगी सोशल मीडिया का उपयोग करने में किसी भी रूप में पीछे नहीं है। बताया जाता है कि पिछला लोकसभा चुनाव तो पीएम मोदी की टीम द्वारा इसी के दम पर लगभग जीता गया था। इस बार भी घर घर प्रचार करने के साथ साथ चुनाव में सोशल मीडिया का भरपूर उपयोग किया जा रहा है क्योंकि दो तिहाई भारतीय स्मार्टफोन का उपयोग कर रहे हैं जिनकी संख्या 2026 तक एक अरब पार हो सकती है। लेकिन फिलहाल वॉटसऐप और अन्य सोशल मीडिया मंचों का उपयोग करने हेतु सभी दलों द्वारा अपना एक पूरा विभाग बनाया गया है जहां बैठे लोग देशभर के मतदाताओं को लुभाने और अपने उम्मीदवार के प्रति आकर्षित करने के लिए प्रयासरत रहेंगे। यह किसी से छिपा नहीं है कि सोशल मीडिया इस समय सबसे तेज है। इसकी आवाज इसे शुरू करते ही कुछ सेंकेंडों में दुनिया के कोने तक पहुंचने लगती है इसलिए चुनावों में सस्ता और कारगर प्रचार इससे अच्छा और कोई हो ही नहीं सकता।

चुनाव में आचार संहिता का पालन हो। पारदर्शिता भी कायम रहे। और हर पात्र व्यक्ति चुनाव लड़ने का अधिकार का उपयोग कर सके और मतदाता वोट दे सके इसके लिए शांति और कानून व्यवस्था कायम रहना अत्यंत आवश्यकत है। इससे कोई भी मुंह नहीं मोड़ सकता लेकिन कभी फेक न्यूज और गलत समाचार चलाने के नाम पर कुछ मंचों पर यह कहा जाना कि सोशल मीडिया पर रहेगी खास निगरानी मुझे लगता है कि सही नहीं है। सोशल मीडिया कुछ वर्षों से प्रकाश में आया है। इससे पहले भी खबरों को लेकर जिम्मेदारों द्वारा नाराजगी व्यक्त की जाती थी और कहा जाता था कि गलत खबर चलाई गई है तो फिर सोशल मीडिया पर ही निगरानी की बात क्यों। निर्चाचन आयोग हो या प्रशासन और शासन मेरा मानना है कि जब निगरानी की बात हो तो कहा जाए कि मीडिया पर रखी जाएगी नजर। और जो गलत करेगा उस पर कार्रवाई होगी।

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