मेरठ 19 जुलाई (प्र)। चैट जीपीटी और क्विल बॉट जैसे आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस (एआई) टूल का प्रयोग कर रिसर्च पेपर, प्रोजेक्ट और थिसिस लिखने वालों को एआई से ही पकड़ा जाएगा। चौ. चरण सिंह विवि ने एआई से चोरी पकड़ने के लिए टर्नेटिन सॉफ्टवेयर अपग्रेड किया है।
पहले यह सॉफ्टवेयर केवल प्लेगेरिज्म (साहित्यिक चोरी) को चिह्नित करता था, लेकिन अब इसमें एआई भी जुड़ गया है। विवि ने जो एआई केंद्रित टर्नेटिन सॉफ्टवेयर लिया है, वह रिसर्च पेपर, प्रोजेक्ट या थिसिस में एआई टूल से तैयार कंटेंट पकड़ लेगा। विवि किसी भी स्थिति में एआई जनरेटिड सहित दस फीसदी से अधिक प्लेगेरिज्म को प्रयुक्त करने की अनुमति नहीं देगा। इस पहल से मामूली समय में एआई टूल से रिसर्च पेपर, प्रोजेक्ट, चौप्टर या थिसिस लिखने पर रोक लगेगी।
एआई की बारी
विवि साहित्यिक चोरी पकड़ने को टर्नेटिन और ड्रिलबिट सॉफ्टवेयर प्रयुक्त कर रहा है। टर्नेटिन केवल अंग्रेजी भाषा में चोरी का कंटेंट पकड़ता है, जबकि ड्रिलबिट अंग्रेजी सहित 30 भारतीय भाषाओं में साहित्यिक चोरी पकड़ लेता है। इन सॉफ्टवेयर ने साहित्यिक चोरी पर तो रोक लगा दी, लेकिन एआई के प्रयोग से चुनौती बढ़ गई। छात्र एआई टूल से तैयार रिसर्च पेपर, थिसिस, प्रोजेक्ट तैयार करने लगे। विवि को भी इसे पकड़ने को एआई की मदद लेनी पड़ी।
ऑक्सफोर्ड, एल्सवेयर कर रहे हैं प्रयोग
विवि ने जो एआई टर्नेटिन सॉफ्टवेयर सब्सक्राइब किया है उसे दुनियाभर में स्प्रिंजर, टेलर एंड फ्रेंसिस, ऑक्सफोर्ड प्रेस, कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी प्रेस और एल्सवेयर एंड रटलेज भी प्रयोग कर रहे हैं।
ये हैं नियम
यदि प्लेगेरिज्म 10 फीसदी या इससे कम है तो थिसिस स्वीकार हो जाती है। 10 प्रतिशत से ज्यादा, लेकिन 40 प्रतिशत से कम होने पर थिसिस वापस कर दी जाती है। छात्र को रिवाइज करने को छह माह का समय दिया जाता है। 40 प्रतिशत से ज्यादा और 60 प्रतिशत से कम होने पर रिवाइज करने को एक साल का समय दिया जाता है। 60 प्रतिशत से ज्यादा प्लेगेरिज्म होने पर पंजीकरण निरस्त होता जाता है।
सीसीएसयू लाइब्रेरियन प्रो.जमाल अहमद सिद्दीकी का कहना है कि विवि ने एआई टर्नेटिन को सब्सक्राइब कर लिया है। यह प्लेगेरिज्म सहित एआई से तैयार कंटेंट को भी चिह्नित कर सकेगा। छात्रों को अधिकतम 10 फीसदी तक ही एआई जनरेटिड सहित कुल 10 फीसदी कंटेंट के प्रयोग की ही अनुमति होगी जैसा यूजीसी मानकों में प्लेगेरिज्म के लिए है।
