समय और काल कोई भी रहा हो लेकिन युवा यह कर सकते हैं उन्हें आगे बढ़कर कीर्तिमान स्थापित करने चाहिए ऐसी बातें करने वालें हर मंच पर जब भी बोलते हैं तो उनके द्वारा युवाओं का गुणगान किया जाता है। अब देखिए युवाओं की प्रतिभा का उपयोग करने के लिए चुनाव में मतदान और लड़ने की आयु २१ वर्ष किए जाने की चर्चा चल रही है। ऐसे समय में जब ६५ प्रतिशत से अधिक जनसंख्या ३५ साल से कम की है उसे चुनाव लड़ने का अधिकार मिलने से राजनीति की भरपूर छूट मिलती है। लगता है हमारे बुजुर्ग युवा शक्ति को आगे लाने और उससे देश के विकास तथा समाज की कुरीतियों को दूर करने का प्रयास कर रहे हैं। वर्तमान समय में २० साल से कम उम्र के बच्चे कीर्तिमान स्थापित कर रहे हैं और अपने हुनर से करोड़ों कमा रहे हैं। अगर २१ साल चुनाव लड़ने की उम्र तय हो जाती है तो वो क्रांतिकारी निर्णय लेकर देशहित में काम कर सकते हैं। अभी शिक्षा मंत्रालय ने अटल इनोवेशन मिशन के सहयोग से एक बड़ी मुहिम शुरु की है जिसके तहत कक्षा छह से १२वीं तक के छात्र आत्मनिर्भर भारत, वोकल फॉर लोक और स्वदेशी भारत पर विचार देंगे। इस योजना से जुड़े लोगों का कहना है कि स्कूली बच्चे भी बन सकेंगे अब करोड़पति।
मेरा मानना है कि बच्चों में अब काबिलियत है तो करोड़पति बनना कोई बड़ी बात नहीं है। जब वह वोकल फॉर लोक और स्वदेशी भारत योजना पर विचार करने में सक्षम है तो वह कुछ भी कर सकते हैं। लेकिन सवाल यह है कि कई क्षेत्रों में बुजुर्ग युवाओं की प्रतिभा का गुणगान तो करते हैं समाज सुधार में उनके योगदान की चर्चा करते हैं लेकिन मौका मिलने पर यही इसमें बड़ी बाधा बनते हैं। तीन दशक पूर्व मेरठ के मेला नौचंदी के एक कैप में दहेज की कुरीतियों को दूर करने की योजना चल रही थी। समाज के गणमान्य लोग मौजूद थे। जब मैंने कहा कि जब हमारे घर में युवा हैं। अगर हम सब बेटों की शांदियां गरीब बेटियों से बिना दहेज के करें तो दहेज प्रथा से बचा जा सकता है। तो यह जानकार अफसोस होगा कि किसी के जुबान से कुछ नहीं निकला और सभी वहां से चले गए। इस क्रम में एक नया उदाहरण उस समय देखने को मिला जब एक संस्था के चुनाव में जीते अध्यक्ष से चर्चा चली कि कमेटियों में युवाओं को चेयरमैन बनाकर मौका दिया जाए तो अध्यक्ष बोले कि इन पर वरिष्ठों की तैनाती ही की जाए। कहने का आश्य है कि कहने को बात बहतेरी लेकिन फायदा हम अपना ही सोचेंगे। युवाओं को पीछे रखने की सोच अब बदलनी चाहिए। तभी कुछ हो सकता है।
(प्रस्तुतिः- रवि कुमार बिश्नोई संपादक दैनिक केसर खुशबू टाइम्स मेरठ)
ऐसे कैसे होगा नौजवानों की प्रतिभा का इस्तेमाल! सुधार के नाम पर युवाओं को आगे लाने की बात करने वाले मौका मिलने पर वरिष्ठों को पद देने पर ही विचार करते हैं
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