Tuesday, October 14

गडढामुक्त सड़क निर्माण में घोटालेबाज ठेकेदारों को डाला जाए काली सूची में, दोषी इंजीनियरों की सेवाएं की जाएं समाप्त

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केंद्रीय सड़क परिवहन मंत्री बनने के बाद से नितिन गडकरी और यूपी के सीएम बनने पर योगी आदित्यनाथ द्वारा गडढा मुक्त सड़कें बनाने और नागरिकों को राहत पहुंचाने के निर्देश कई बार दिए जा चुके हैं। मानक के अनुकूल सड़कें बनाने के प्रयास हर स्तर पर हो रहे हैं लेकिन इन पर सकारात्मक कार्य क्यों नहीं हो रहा यह विषय पूर्ण रूप से सोचनीय है। पूर्व में सड़कों का निर्माण कराने वाले इंजीनियरों के बारे में अदालत ने भी टिप्पणी कर निर्देश दिए गए बताए जाते हैं उसके बावजूद यह कार्य नियमानुसार क्यों नहीं हो पा रहा है इसे लेकर हमेशा ही चर्चाएं रही हैं। और विभिन्न मंचों से वरिष्ठ अधिकारी जनप्रतिनिधि और नागरिक भी स्थिति स्पष्ट कर चुके हैं लेकिन कुछ इंजीनियर शायद या तो समाचार पत्र नहीं पढ़ते या सुधार की बात से बचने के लिए कान बंद कर रखते हैं। इनके द्वारा बजट की बंदरबांट जमकर की और कराई जा रही है। क्योंकि यूपी के मेरठ में ७ इंच मोटी की बजाय चार इंच मोटी सड़क बनती पाई गई और उसमें भी मानकों का पालन नहीं होना बताया जा रहा है। एक खबर से पता चलता है कि २५ से ४० प्रतिशत बिलों में जा रहे हैं टेंडर जिससे सड़क की गुणवत्ता पर फर्क पड़ रहा है। इस बारे में पाठकों के इस कथन से मैं भी सहमत हूं कि भले ही टेंडर बिलो में जा रहे हो लेकिन इतने रेट पर जा रहे हैं कि मानक अनकुल पुख्ता सड़कों का ंइंतजाम हो सके। सड़क की मोटाई कम पाई जाने पर तीन अफसरों को कारण बताओ नोटिस दिया गया है अैर निर्माण करने वाली फर्म पर जुर्माना लगाया गया है तथा जेई के वेतन में कटौती की गई है। दूसरी तरफ देहरादून में पेयजल निगम के आरक्षित पदों पर दिल्ली यूपी बिहार के इंजीनियरों के खिलाफ सरकार सुप्रीम कोर्ट चली गई है क्योकि सहायक अभियंताओं के पदा पर नियुक्त हुए इंजीनियरों की सेवाएं समाप्त कर दी थी। हाईकोई ने उनकी बहाली की थी जिसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई। इंजीनियरों के खिलाफ सरकार कोर्ट चली गई इस बिंदु का उल्लेख यहां इसलिए जरुरी है कि आम आदमी को भी कुछ पता चले कि हमारे इंजीरियर निरंकुश हो हरे हैं। ना सरकार की चिंता है ना आम आदमी की। सवाल उठता है कि जेई ऐई पर कार्रवाई की बात की जा रही है। ठेकेदारों पर भी शिंकजा कसने की तैयारी हो रही है। मामला विधानमंडल में उठ चुका है। लेकिन क्या यह कार्रवाई पूर्ण है या इसका कोई फर्क पड़ेगा तो पाठकों के अनुसार इससे कोई सुधार होने वाला नहीं है। इनका कहना है कि मानक के अनुसार सड़क ना बनाने वाले ठेकेदार को काली सूची में डाला जाए और सभी विभागों में इसकी सूचना देते हुए विभाग अपनी वेबसाइट पर इस कार्रवाई को डाले कि फलां ठेकेदार अनियमितताओं के चलते काली सूची में डाल दिया गया है। कुछ नागरिकों का कहना है कि जेई एई को नोटिस देने से कुछ होने वाला नही है। शासन की नीति और टेंडर की शर्तों के विपरीत होने वाले कार्य की सूचना समय से देकर दोषी के खिलाफ कार्रवाई क्यों नहीं कराई गई इसके लिए इन्हें नोटिस नहीं निलंबित किया जाना चाहिए था। ठेकेदारों व इंजीनियरों की मिलीभगत से हंगामा होने के बाद भी सड़कें बनाई जाती है वह कुछ समय बाद टूट जाती है। कुछ सालों के लिए ठेकेदार की जिम्मेदारी की होती है लेकिन मिलीभगत के चलते ऐसा नहीं होता है। कुंछ माह पूर्व उत्तर प्रदेश विधानमंडल में भी इससे संबंध मुददा उठ चुका है। खराब सड़कों और गडढों से परेशान नागरिकों की मौखिक रूप से मांग समयानुकुल है कि ठेकेदार और जेई एई की गोपनीय रूप से संपत्ति की जांच कराई जाए। फिर आय से अधिक कमाई कहां से आई इसकी जांच कराकर अटैच की जाए और उस धन से ईमानदार छवि और मानक अनुसार काम करने वाले ठेकेदारों से काम कराया जाए।
केंद्रीय सड़क परिवहन मंत्री और यूपी के सीएम साहब सभी इंजीनियर और ठेकेदार घोटालेबाज नहीं हो सकते लेकिन ईमानदार छवि के लोग पीछे धकिया जाते हैं क्योंकि उनके पास काली कमाई नहीं होती और गलत काम करने वाले आगे बढ़ते है। सरकार इसके उदाहरण के रूप में दस साल में महानगर की सीमा में जितनी सड़कें बनी उनकी गुणवत्ता और कितने दिन चली की समीक्षा करा ले तो काफी सुधार की स्थिति बन सकती है क्योंकि ठेकेदार व इंजीनियर सब एक सोच के नहंीं होते कुछ में ईमानदारी से काम करने की भावना समाप्त नहीं हुई है बस काली कमाई करने वालों के सामने यह टिक नहीं पाते हैं शायद इसलिए सारी व्यवस्थाएं बिगड़ रही है और बजट मिलने के बाद भी नागरिकों को सुविधाएं नहीं मिल रही हैं।
(प्रस्तुतिः- रवि कुमार बिश्नोई संपादक दैनिक केसर खुशबू टाइम्स मेरठ)

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