Thursday, October 30

वस्तुओं की कीमत कम होने और जीएसटी कटौती का उपभोक्ता को नहीं मिल पा रहा लाभ, सब्जी फल के ठेलों से लेकर होटलों तक पुरानी और नई दरों की सूची प्रदर्शित कराई जाए

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आजकल महंगाई कम होने से खाने की थाली के सस्ता होने जैसी खबरें खूब पढ़ने को मिल रही है। खाद्य वस्तुए ईंधन और निर्मित उत्पादों के दाम घटने के दावे भी खूब किए जा रहे हैं। ५.२२ प्रतिशत खाद्य मुद्रास्फीति रहने की बात भी सामने आ रही है। एक खबर के अनुसारसितंबर महीने में थोक महंगाई दर में मामूली गिरावट देखी गई। इस दौरान खाने-पीने की चीजों, ईंधन और विनिर्मित वस्तुओं की कीमतों में नरमी दिखी। इसके असर से थोक मूल्य सूचकांक (डब्ल्यूपीआई) घटकर 0.13 प्रतिशत पर पहुंच गई। मंगलवार को जारी सरकारी आंकड़ों में इसकी पुष्टि हुई। थोक महंगाई दर अगस्त में 0.52 प्रतिशत तथा पिछले वर्ष सितम्बर में 1.91 प्रतिशत थी।
उद्योग मंत्रालय ने एक बयान में कहा, सितंबर 2025 में थोक महंगाई के सकारात्मक रहने का कारण खाद्य उत्पादों, गैर-खाद्य वस्तुओं, परिवहन उपकरणों और कपड़ों के विनिर्माण कीमतों में वृद्धि है। थोक मूल्य सूचकांक के आंकड़ों के अनुसार, खाद्य वस्तुओं की कीमतों में सितंबर में 5.22 प्रतिशत की गिरावट दिखी। अगस्त में इसकी कीमतें 3.06 कम हुई थी। इस दौरान सब्जियों की कीमतों में गिरावट देखी गई।
सब्जियों की कीमतों में सितम्बर में 24.41 प्रतिशत की नरमी आई। अगस्त में यह 14.18 प्रतिशत थी। विनिर्मित उत्पादों के मामले में मुद्रास्फीति घटकर 2.33 प्रतिशत रह गई। जबकि अगस्त में यह 2.55 प्रतिशत थी। ईंधन और बिजली में सितम्बर माह में 2.58 प्रतिशत की नकारात्मक मुद्रास्फीति या अपस्फीति देखी गई, जबकि पिछले महीने यह 3.17 प्रतिशत थी।
भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) खुदरा महंगाई दर को ध्यान में रखकर इस महीने की शुरुआत में बेंचमार्क नीतिगत दरों को 5.5 प्रतिशत पर अपरिवर्तित रखा था। गत सोमवार को जारी आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, खुदरा मुद्रास्फीति सितंबर में 8 वर्ष के निम्नतम स्तर 1.5 प्रतिशत पर आ गई।
पिछले दिनों जीएसटी कम की गई। उसके बावजूद इनका लाभ जहां तक नजर आ रहा है आम उपभोक्ताओं तक पूरी तौर पर नहीं पहुंच पा रहा है। जबकि जीएसटी से संबंध जानकारियां देने और जागरूकता लाने के लिए सत्ताधारी दल और उसके सहयोगी शहरों व गांव देहातों में लोगों से मिल रहे हैं और उन्हें इस बारे में विस्तार से बता रहे हैं। मगर जहां तक आम आदमी का मामला है, ना तो कहीं मिठाई सस्ती नजर आ रही है और ना ही अन्य खाद्य सामग्री। सीजनल सब्जियों के दाम हमेशा ही मंदे होते हैं लेकिन बाकी फल सब्जियों के रेट वहीं ज्यादा दिखाई देते हैं। ढाबे वाला दाल सब्जी और चाय के पैसे पहले वाले ही ले रहा है। दूध कंपनियों ने स्थानीय स्तर पर जितनी दरो में कमी होनी चाहिए थी वो नहीं की। मैं यह तो नहीं कहता कि जिम्मेदार जो दावे कर रहे हैं वो सही नहीं है लेकिन जब महंगाई कम हुई है तो उसका लाभ भी आम आदमी को मिले यह व्यवस्था अभी कहीं नजर नहीं आ रही है। जनप्रतिनिधि भी महंगाई कम होने की बात कर रहे हैं लेकिन किसी के द्वारा भी दुकानों या फल सब्जी व अन्य स्थानों पर कोई रेट लिस्ट नहीं लगवाई जिससे पता चलता हो कि पहले फलां चीज की कीमत ये थी और अब यह हो गई। आश्चर्य की बात यह है कि जब जीएसटी कम होने की बात हुई तो कुछ कंपनियों ने यह कहकर अपने उत्पादों के दाम कम करने से मना कर दिया था कि रेट कम होने से परेशानी होगी। खाद्य सामग्री का वजन बढ़ाया जाएगा लेकिन पुरानी तारीखों में उत्पादित खाद्य सामग्री के पैकेट का वजन वहीं कम है और उपभोक्ताओं को पुराने दाम पर बेचे जा रहे हैं। रोजमर्रा की चीजों के दाम कम करने को व्यापारी तैयार नहीं है। जब महंगाई बढ़ती है और कंपनियां चीजों के दाम बढ़ाती है तो दुकानदार भी कीमत तुरंत बढ़ा देते हैं मगर कीमत कम करने को तैयार नहीं है। मेरा मानना है कि सरकार जीएसटी कम होने और विभिन्न सामग्रियों के दाम घटने का दाम सीधे उपभोक्ता को लाभ उपलब्ध कराने के लिए फलों के ठेले से लेकर खुदरा व्यापारियों व होटलों व ढाबों पर सूची लगवाईये और मेन्यू कार्ड में नए रेट अंकित कराएं। तो ही इस रेट कटौती का लाभ आम आदमी को मिल पाएगा वरना सरकार दावे करती रहेगी और जनप्रतिनिधि फोटो सेशन करते रहेंगे और कीमत यथावत बनी रहेंगी। जो ना सरकार के हित में है या आम आदमी के लेकिन व्यापारियों का मुनाफा कई गुना बढ़ सकता है इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता। संबंधित विभाग जो आंकड़े पेश करता है जो चीजें सस्ती उपलबध कराने का भी इंतजाम करे यह सबसे बड़ी बात उपभोक्ता हित में कही जा सकती है।
(प्रस्तुतिः- रवि कुमार बिश्नोई संपादक दैनिक केसर खुशबू टाइम्स मेरठ)

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