सरकार द्वारा किए जाने वाले आदेश आखिर कुछ मामले मंे लागू क्यों नहीं हो पाते यह एक गंभीर बहस का मुददा हो सकता है। लेकिन कुछ बिंदु ऐसे होते हैं कि उन पर ध्यान देना और जनहित में तुरंत कार्रवाई किया जाना वक्त की सबसे बड़ी मांग कही जा सकती है। इसके उदाहरण के रूप में हम साल में दीपावली आदि अवसरों के साथ ही विवाह और मेलों के दौरान चलाई जाने वाली आतिशबाजी को देख सकते हैं। इससे होने वाले दमघोंटू प्रदूषण को ध्यान में रखते हुए हरित विकास अधिकरण एनजीटी द्वारा सख्त कदम उठाने के साथ ही निर्णय लिए गए। परिमाणस्वरूप देश की राजधानी दिल्ली आदि में इनको छुड़ाने पर पूर्ण प्रतिबंध की बात सामने आ रही है। आए दिन पटाखा फैक्ट्रियों में लगने वाली आग और इनके चलते जानलेवा प्रदूषण को देखते हुए अदालत और सरकार ने भी कई आदेश किए बताते हैं। जिनको लेकर आए दिन पढ़ने सुनने को मिलता है कि आतिशबाजी नहीं छोड़ी जाएगी। ग्रीन पटाखे बिकेंगे। अपने शहर में बीती 26 जून को लिसाड़ी गेट के समर गार्डन में हुए विस्फोट में मकान तो ढहे ही मौते भी हुई। मुलजिम पकड़े गए और अब मुख्य आरोपी मुस्तकीम और उसके भाई जेल से छूटने के बाद गायब है। पुलिस युनुस याकूब और सलीम की तलाश कर रही है। जितनी चर्चा है अभी वो पकड़ से बाहर बताए जा रहे हैं। उसके बाद लोहियानगर की साबुन फैक्ट्री में हुए विस्फोट में हुई मौत के बाद पटाखें बनाने के साथ ही आवाज वाली आतिशबाजी पर रोक भी लगाई गई बतायी जाती है। पुलिस छापेमारी कर दुकानदारों और इन्हें बनाने वालों के यहां से पटाखे बरामद कर रही है। अभी कोटला से 50 हजार के पटाखे पकड़े गए।
मगर सवाल यह उठता है कि एक तरफ हम ध्वनि और वायु प्रदूषण वाली आतिशबाजी पर रोक लगाने और इन्हें बेचने वालों पर कार्रवाई की बात कर रहे हैं दूसरी तरफ गत दिवस जिस प्रकार से शहर के मुख्य स्थानों से लेकर गली मोहल्ले तक आतिशबाजी हुई उसे लेकर मौखिक रूप से पर्यावरण प्रदूषण विरोधी नागरिकों में चर्चा है कि वीआईपी जनप्रतिनिधि और अफसरों की मौजूदगी में प्रदूषण फैलाने वाली आतिशबाजी कैसे हुई प्रतिबंध के बावजूद और वो आई कहां से। पर्यावरण प्रेमियों के साथ साथ मेरा भी मानना है कि खुशियों के मौके पर हमें उत्साह के साथ साथ सब कुछ करना चाहिए लेकिन औरों का नुकसान ना हो और हमारा मनोरंजन हो सके ऐसी व्यवस्स्थाओं को अपनाते हुए जो पुतलों में आतिशबाजी लगाई गई अगर वो ग्रीन पटाखे और रंग बिरंगी रोशनी करने वाली आतिशबाजी होती तो उससे पुतलों का आकर्षण तो बढ़ता ही किसी भी प्रकार का प्रदूषण भी नहीं होता। कुछ लोगों का यह कहना सही प्रतीत होता है कि नियमों का पालन कराने वाले लोगों की थोड़ी सी लापरवाही और दबाव में आदेशों का उल्लंघन होता है वो अन्यों को भी ऐसा करने के लिए प्रेरित करता है । इसके जीते जागते उदाहरण के रूप में आतिशबाजी की आवाजे सुनाई देने लगी हैं उससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि भविष्य में क्या हाल होगा। मैं ना तो आतिशबाजी करने का विरोधी हूं और ना इससे मिलने वाली खुशी का लेकिन अगर शुद्ध वायु की उपलब्धता को ध्यान में रखते हुए हम प्रदूषण फैलाने वाली आतिशबाजी पर प्रतिबंध लगाकर ग्रीन पटाखों के प्रचलन पर जोर दे तो वो हम सबके लिए हर तरह से लाभकारी होगा क्योंकि ना तो सांस के मरीजों को कोई परेशानी होगी और ना ही किसी नए व्यक्ति को इस बीमारी का शिकार होना पड़ेगा। माननीय प्रधानमंत्री और सभी प्रदेश के सीएम से आग्रह है कि इस ओर ध्यान देकर ग्रीन आतिशबाजी के प्रयोग पर जोर दे। दूसरे कुछ ऐसी आतिशबाजी का आविष्कार कराएं जिसमें आवाज भी हो रोशनी भी निकले लेकिन ध्वनि प्रदूषण आदि का खतरा ना हो।
वीआईपी अतिथि और जनप्रतिनिधियों की उपस्थिति में कैसे चली आवाज वाली आतिशबाजी
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