मेरठ, 30 अप्रैल (प्र)। इसे सिस्टम की अंधेरगर्दी नहीं तो और क्या कहेंगे कि बिना नियुक्ति के ही कोषागार में 35 साल तक नौकरी करने वाले मुख्य रोकड़िया सुशील कुमार को जांच में दो साल पहले ही दोषी ठहरा दिया गया था। तत्कालीन डीएम मुजफ्फरनगर ने निदेशक कोषागार को पत्र लिखकर सुशील कुमार की सेवा समाप्त करने की संस्तुति की थी। दोषी पाए जाने के बावजूद वह मेरठ कोषागार में दो साल और नौकरी करता रहा। अब जाकर सुशील को निदेशक कोषागार एवं पेंशन नील रतन कुमार ने बर्खास्त किया है।
मुजफ्फरनगर की रामपुरम कॉलोनी के जय प्रकाश और मुजफ्फरनगर कोषागार में डिप्टी कैशियर शिवकुमार वर्मा की शिकायत पर यह कार्रवाई हुई। अनियमित नियुक्ति की शुरुआती स्तर पर जांच के आधार पर ही सितंबर-2022 में मुजफ्फरनगर के तत्कालीन जिलाधिकारी चंद्रभूषण सिंह ने मुख्य रोकड़िया सुशील कुमार को सेवा से निष्कासन के लिए निदेशक कोषागार लखनऊ को पत्र लिखा था। इसके बाद भी अब दो साल तक आरोपी सेवा में रहा।
इस प्रकरण में विभाग के तत्कालीन निदेशक आलोक अग्रवाल ने दूसरी जांच अनुशासनात्मक बिंदुओं पर कराई थी। इसके लिए वित्त नियंत्रक राजकीय मेडिकल कॉलेज सहारनपुर एसके गौतम को नामित किया गया।
उन्होंने जांच के दौरान मुख्य रोकड़िया के पद तैनात सुशील कुमार का पक्ष सुना। शिकायतकर्ता जयप्रकाश और शिव कुमार के बयान दर्ज किए। वरिष्ठ कोषाधिकारी मुजफ्फरनगर से रिकॉर्ड तलब किया गया। समस्त साक्ष्यों को संकलित करने के बाद उन्होंने जनवरी 2024 में आख्या निदेशक को प्रेषित कर दी थी।
मुजफ्फरनगर में तैनात रहे सुशील कुमार ने फर्जी तरीके से नियुक्ति कराकर पदोन्नति पाई। किसी अफसर ने उनकी नियुक्ति की पत्रावली तक नहीं देखी। इस दौरान कई डीएम भी बदले गए।
मुजफ्फरनगर में तैनात डिप्टी कैशियर शिव कुमार वर्मा ने 6 सितंबर 2021 को शिकायत की। उनका तर्क था कि सुशील की पदोन्नति की वजह उनका प्रमोशन प्रभावित हुआ है। उनकी नियुक्ति कभी वैधानिक तरीके से नहीं हुई। उन्होंने हाईकोर्ट में भी याचिका दाखिल की, जो लंबित है। दूसरी शिकायत दिसंबर 2021 में जय प्रकाश ने की थी। दोनों पर जांच के बाद शासन ने बड़ी कार्रवाई की। वरुण खरे, मुख्य कोषाधिकारी का कहना है कि शासन से मुख्य रोकड़िया सुशील कुमार को बर्खास्त करने का आदेश प्राप्त हुआ है। उच्चाधिकारी के आदेशों के अनुपालन में उन्हें आदेश तामील करा दिया है। उन्हें कार्यमुक्त कर दिया गया है।