Tuesday, October 14

कस्तूरबा गांधी विद्यालयों की व्यवस्थाओं में बीएसए की संदिग्ध भूमिका ? सरकार माह में एक बार हर स्कूल की जांच कराएं चाहे वो यूपी बोर्ड हो या सीबीएसई व आईसीएसई

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सरूरपुर क्षेत्र के भूनी में स्थित कस्तूरबा गांधी विद्यालय की बर्खास्त शिक्षिका रीना को तत्काल प्रभाव से स्कूल छोड़ने को आदेश जिस तत्परता से मिला अगर उसी हिसाब से इससे पूर्व इनकी देखभाल की व्यवस्था कर ली जाती तो शायद फोन को लेकर पड़ी डांट के कारण हॉस्टल छोड़कर गई छात्राओं को पैसे ना होने की वजह से लिफ्ट लेकर ना जाना पड़ता। कई दोषियों के खिलाफ कार्रवाई हो चुकी है। धीरे धीरे कस्तूरबा गांधी विद्यालय की साख वापस लाने और अभिभावकों में अपनी बच्चियों को इनमें भेजने के लिए प्रोत्साहन की भावना उत्पन्न करने हेतु डीएम डॉ. वीके सिंह, सीडीओ नुपूर गोयल के सहयोग से प्रयास कर रहे हैं। लेकिन सवाल यह उठता है कि बीएसए आशा चौधरी और अन्य अधिकारियों द्वारा समय से इस ओर ध्यान क्यों नहीं दिया गया। खबरों के अनुसार डीएम ने नोटिस देकर सात दिन में उनसे जवाब मांगा है और यह भी बताया जा रहा है कि उनकी भूमिका को लेकर भी सवाल उठ रहे हैं। चर्चा है कि अगर जवाब सही नहीं मिला तो उच्च स्तर पर बीएसए और खंड अधिकारी के खिलाफ कार्रवाई हो सकती है। कुछ जानकारों का मानना है कि बीएसए और अन्य अधिकारी जिम्मेदारियों को पूर्ण करने में किसी भी रूप में सफल नहीं है। अब ऐसे आरोपों में कितनी सत्यता हो सकती है यह जांच का विषय है मगर बीएसए सहित सभी विभागों में आकस्मिक निरीक्षण कर इनकी उपस्थिति और कार्यप्रणाली के साथ ही जिम्मेदारियों का कितना पालन इनके द्वारा कराया जा रहा है सीएम की शिक्षा को बढ़ावा देने की नीति के तहत देखा जाना चाहिए। क्योंकि मौखिक सूत्रों का यह कहना कितना सही है यह तो संबंधित अधिकारी ही जान सकते हैं मगर जो कहा जा रहा है उसके अनुसार शिक्षा विभाग के ज्यादातर अधिकारी दफतरों की शोभा बढ़ाने आते हैं और कस्तूरबा गांधी विद्यालय या अन्य स्कूलों का इनके द्वारा ना नियमित निरीक्षण किया जाता है ना पत्रावलियों का अवलोकन। सहायता प्राप्त स्कूलों की प्रबंध कमेटियों में जो विभागीय अधिकारियों को होना चाहिए उनमें भी उनके आदमी रख दिए जाते हैं जो होता है वह सिर्फ हस्ताक्षर करने के लिए होता है। ऐसी बाते तो रोज सुनने को मिलती है कि शिक्षा विभाग में भ्रष्टाचार चरम पर है। नियुक्ति और शिक्षकों के स्थानांतरण में मोटा लेनदेन होता है। बच्चों को शिक्षा दिलाने के लिए सीएम की भावनाओं के अनुकुल प्रयास नहीं होते यह बात सही लगती है। मेरा मानना है कि प्रदेश के सीएम शिक्षा विभाग के उच्चाधिकारियों के साथ जिलों के प्रशासनिक अधिकारियों से कस्तूरबा गांधी विद्यालयों व चाहे वो यूपी बोर्ड हो या सीबीएसई व आईसीएसई के सभी स्कूलों का नियमित निरीक्षण कराने और सरकारी नीति के तहत लाभ दिया जा रहा है या नहीं यह दिखवाना चाहिए।
(प्रस्तुतिः रवि कुमार बिश्नोई दैनिक केसर खुशबू टाइम्स मेरठ)

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