अपने हितों की बात करना और इसके लिए बोलना व माहौल बनाना सबका अधिकार है लेकिन दूसरों के हितों पर कुठाराघात कर या आम आदमी के टैक्स के दम पर व्यवस्थाएं चलाने वालों में शामिल किसी भी व्यक्ति को यह अधिकार नहीं है कि वह अपने किसी कार्य से टैक्स दाताओं पर आर्थिक भार पड़ने वाला काम करे। सरकारी कर्मचारी होना यह चाहिए वो काम करेंगे जिसका लाभ जनता को मिलेगा। इसीलिए आम आदमी टैक्स भरता है कि इन लोगों को समय से वेतन और सुविधाएं मिलती रहे। मगर हो उसका उलटा रहा है। इसके लिए कहीं ना कहीं शासन स्तर पर भी हो रही है कोताही। इसीलिए कुछ लोगों द्वारा दोहरी नीति अपनाई जा रही लगती है।
आजकल पूरे देश में सरकारी विभागों के कर्मचारी और अधिकारी पुरानी पेंशन के लिए आंदोलन चला रहे हैं। इसमें कुछ बुरा भी नहीं है लेकिन अगर इस कार्य की मांग को लेकर प्रदर्शन धरना और आंदोलनों में यह लोग दफतरों से अवकाश लेकर बिना तनख्वाह के इनमें शामिल हो तो ठीक लगता है लेकिन अब तो जैसे जैसे समय बीत रहा है और सरकार लापरवाही समाप्त करने की बात कर रही है वैसे वैसे जितना पढ़ने सुनने देखने को मिल रहा है सरकारी अधिकारी कार्यदिवस में एक दूसरे का जन्मदिन मनाते हैं। अपनी मांगों के लिए दफतरों में ही सलाह मशविरा करते हैं जिससे आम आदमी के सरकारी कार्य प्रभावित होते है। मगर अब एक नया मामला शुरू हो गया लगता है क्योंकि केंद्रीय व राज्यकर्मचारियों की पुरानी पेंशन बहाली ना होने पर हड़ताल पर जाने या ना जाने को लेकर मतदान हुआ। गत दिवस सरकारी अवकाश नहीं था उसके बावजूद प्रातः दस से शाम पांच बजे तक रेलवे के 1100 में से 900 कर्मचारियों ने इसमें मतदान किया। जिससे यह आसानी से समझा जा सकता है कि यह सब कार्य दिवस में हुआ। मैं ना कर्मचारियेों की पुरानी पेंशन का विरोधी हूं और ना उनके धरना प्रदर्शन का। लेकिन सरकार से तनख्वाह लेने वालों को यह सब करने के लिए तनख्वाह मिलती है तो मुझे लगता है कि देशभर में व्यापारी किसान मजदूर जब अपनी मांगों के समर्थन में हड़ताल धरना प्रदर्शन काम बंद करता है तो उसकी रोज की आमदनी के अनुसार सरकार उसे प्रति व्यक्ति के हिसाब से मुआवजा दें। जिससे उसका भी चूल्हा जलता रहे। लेकिन यहां उल्टा होता है। पहले साल जो टैक्स भरा दूसरे साल उसमें कमी नहीं होनी चाहिए। उसमें बढ़ोत्तरी की शर्ते लगाई जाती है। मैं अनपढ़ हूं और नियम कानूनों के बारे में ज्यादा नहीं जानता हूं लेकिन इतना जानता हूं कि बाबा साहेब डॉ. भीमराव अम्बेडकर जी ने जो संविधान बनाया था उसमें सबको बराबर का हक था। लेकिन यह समझ नहीं आता है कि सरकार कर्मचारी को काम ना करने की भी तनख्वाह देती है लेकिन चोरी आपदा आग या अन्य नुकसान होने पर व्यापारी को राहत देने की बजाय टैक्सों का दबाव इन्हीं कर्मचारियों जिनके जिम्मे वसूली का काम होता है लेकिन जो टैक्स भरता है अन्न उगाता है या सफाई करता है उस मजदूर को कोई रियायत नहीं मिलती। क्या उसका यही कसूर है कि वो सरकारी कर्मचारी नहीं है। मेरा स्पष्ट मानना है कि गैर सरकारी कर्मचारी अगर आंदोलन करते हैं तो सरकार को उन्हंे भी मुआवजा देना चाहिए। ऐसा नागरिकों द्वारा जो मांग की जाती है मेरा मानना है कि वो सही है।
इस संबंध में खबर के अनुसार केंद्रीय एवं राज्य कर्मचारियों की पुरानी पेंशन बहाली नहीं होने पर हड़ताल पर जाने या नहीं जाने को लेकर कर्मचारियों द्वारा कराए गए दो दिवसीय मतदान में 99.5 प्रतिशत कर्मचारियों ने हड़ताल के पक्ष में मतदान किया है। रेलवे कर्मचारियों के संगठन राष्ट्रीय रेलवे मजदूर संघ (एनआएमयू) के आह्वान पर केंद्रीय व राज्य कर्मचारियों की पुरानी पेंशन बहाली की मांग को लेकर दस अगस्त को नई दिल्ली के रामलीला मैदान में रैली हुई थी। इसमें की गई घोषणा के अनुसार 21 व 22 नवंबर को कर्मचारियों से पुरानी पेंशन बहाली नहीं होने पर हड़ताल पर जाने या नहीं जाने के लिए कर्मचारियों से मतदान कराना था।
एनआएमयू मेरठ शाखा द्वारा शाखा अध्यक्ष विजयकांत शर्मा और सचिव सुभाष शर्मा के निर्देशन में गुलधर, मोदीनगर, मेरठ नगर, मेरठ कैंट, सकौती, मुजफ्फरनगर, देवबंद, नागल में मतदान केंद्र बनाए गए थे। दोनों दिन सुबह आठ बजे से शाम पांच बजे तक मतदान हुआ। सचिव सुभाष शर्मा ने बताया कि बुधवार देर शाम को मतगणना की गई। 1147 कर्मचारियों में से 901 कर्मचारियों ने वोटिंग में भाग लिया। इनमें से 897 कर्मचारियों ने हड़ताल पर जाने के पक्ष में मतदान किया। केवल दो कर्मचारियों ने हड़ताल का विरोध किया, जबकि दो वोट निरस्त हुए। इस दौरान राजीव, अनुज, वरुण, अजय, श्रीओम, रविंदर, हरेंद्र, इकबाल, विपिन, रंजीत मौजूद रहे।
आंदोलन धरना प्रदर्शनों के दौरान सरकारी कर्मचारियों को जिस प्रकार मिलती है तनख्वाह, व्यापारी किसान और मजदूरों को भी सरकार दे मुआवजा
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