Friday, December 26

27 से विराजेंगे लाल बाब के बादशाह, देश मे बना रहेगा धार्मिक माहौल, बच्चों को खाने को मिलेंगे मोदक

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दैनिक केसर खुशबू टाइम्स

हर शुभ काम में प्रथम पूज्य शिव पार्वती के पुत्र भगवान गणेश का हर सनातन धर्मी बहुसंख्यकों के घर में गुणगान किया जाता है। बताते हैं कि गणपति को महान आदर्श के रूप में देखते हुए राष्ट्रीय स्वाभिमान की जागृति के लिए महान क्रांतिकारी लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक द्वारा सार्वजनिक रूप से गणेश उत्सव मनाने की नींव रखी गई। बताते हैं कि जैसे जैसे इस उत्सव की धूम पूरे देश में फैलती गई युवाओं में राष्ट्रवाद की भावना प्रखर होने लगी। कल 27 अगस्त से गणेश चतुर्थी उत्सव शुरू होगा। यह पर्व 11 दिन तक अनंत चतुर्थी तक मनाया जाएगा। विद्वानों के अनुसार शुभ मुहूर्त
चतुर्थी तिथि समयकाल: 26 अगस्त दोपहर 1ः54 से 27 अगस्त दोपहर 3ः44 तक
श्री गणेश उत्सव: 27 अगस्त से 6 सितम्बर तक
गणेश चतुर्थी पर गणेश जी की स्थापना का मुहूर्त: सुबह 7ः32 से 9ः00३ बजे, सुबह 10ः44 से 12ः00३ बजे, दोपहर 1ः30 से 3ः44 के बीच।
श्री गणेश विसर्जन: 6 सितम्बर (अनंत चतुर्दशी)
गणपति जी की स्थापना का शुभ मुहूर्त
विभोर इंदूसुत के अनुसार, 27 अगस्त को गणेश चतुर्थी के दिन सुबह 7 बजकर 32 मिनट से 9 बजे के बीच ‘अमृत चौघड़िया’ में गणपति स्थापना कर सकते हैं। इसके बाद सुबह 10 बजकर 44 मिनट से 12 बजे के बीच ‘शुभ चौघड़िया’ मुहूर्त में भी स्थापना कर सकते हैं।
एक समय था जब लाल बाग के बादशाह गणेश जी की स्तुति विधि विधान के साथ महाराष्ट्र में की जाती थी। धीरे धीरे यह त्योहार पूरे देश में फैला। अब तो गांव और शहरों की गलियों में भी भगवान गणेश का पूजन किया जाता है। और गाजे बाजे के साथ सुंदर झांकियों से युक्त गुलाल खेलते हुए यह त्योहार मनाया जाता है। जिन जगहों पर महाराष्ट्र के लोग रहते हैं उनके द्वारा इस त्योहार को मनाए जाने की धूम उल्लेखनीय होती है।
धार्मिक और राष्ट्रीय एकता की झांकियों में समयानुकुल विषयों को भी शामिल किया जाता है। इस साल उत्सव को राज्य महोत्सव का महाराष्ट्र सरकार ने दर्जा दिया है और इसकी थीम ऑपरेशन सिंदूर पर भी रखी जाए। 132 साल पुराने 1893 में बाल गंगाधर तिलक द्वारा शुरू कराया गया यह उत्सव राष्ट्रीय एकता की झांकियों से परिपूर्ण होता है। इस साल इसे राज्य उत्सव का दर्जा मिला है। इससे उत्सव में कितनी बढ़ोत्तरी होगी यह इसके समापन के बाद ही पता चलेगा। विद्वानों के अनुसार मेरठ में इस परंपरा की नींव 47 साल पूर्व रखी गई। क्योंकि महाराष्ट्र से आए विश्वास पवार और विजय पाटिल शंकर लाल शिवाजी पवार प्रकाश पवार ने अपने घर में मूर्ति स्थापित की थी जो अब सार्वजनिक रूप से शुरू हो गई और पूरे दस दिन तक गणपति बप्पा मौर्या के जयकारे की गूंज सुनाई देने लगेगी।
धार्मिक दृष्टि से पता चलता है कि शिव पार्वती के विवाह के बाद बहुत दिनों तक जब माता पार्वती को संतान नहीं हुई तो उन्होंने भगवान कृष्ण का व्रत किया और बालक गणेश का जन्म हुआ। इन्हें सभी देवी देवता देखने आए तब शनि आए तो सिर नीचा किए खड़े रहे। उन्होंने जैसे ही गणेश को देखा तो उनका सिर कट गया। तब विष्णु भगवान ने एक हाथी का सिर जोड़ा तब से उन्हें गणपति का नाम मिला। इसी प्रकार जब परशुराम जी कैलाश पर शिव पार्वती के दर्शन करने आए तो गणेश ने उन्हें अंदर जाने से रोका। तब परशुराम के फरसे से उनका एक दांत टूट गया तब से वह एक दंत कहलाने लगे।
गणेश जी से संबंध अनेक किवदंतियां सुनाई देती है। मगर प्रथम पूज्य कौन होगा देवी देवताओं में तो तय हुआ कि जो तीनों लोकों की परिक्रमा पहले करके आएगा वही प्रथम पूज्य होगा। तब भगवान गणेश ने भगवान शिव माता पार्वती की परिक्रमा की और कहा कि माता पिता के चरणों में ही तीनों लोक है। जब कार्तिकेय लौटे तो यह घोषणा हुई कि प्रथम पूज्यनीय गणेश जी ही होंगे। अगले दस दिन तक धार्मिक आयोजनों की धूम और बच्चों को मोदक खाने के लिए मिलेंगे। जिस उददेश्य से गणपति की स्थापना महाराष्ट्र में हुई थी उसका युवाओं में आज भी उत्साह है। हम सभी को इस पर्व की बधाई शुभकामनाएं देते हुए निरोगी रहने की कामना करते हैं।
प्रस्तुतिः- अंकित बिश्नोई राष्ट्रीय महामंत्री सोशल मीडिया एसोसिएशन एसएमए व पूर्व सदस्य मजीठिया बोर्ड यूपी संपादक पत्रकार

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