श्रीहरिकोटा 31 जुलाई। भारत के आंध्र प्रदेश राज्य में श्रीहरिकोटा स्थित सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से बुधवार (30 जुलाई 2025) को एक बेहद महत्वाकांक्षी मिशन के सेटेलाइट ‘निसार’ को GSLV-F16 प्रक्षेपण यान के जरिए लॉन्च किया गया। ये सेटेलाइट केंद्र से उड़ान भरकर सूर्य की समकालिक ध्रुवीय कक्षा में स्थापित होगा।
निसार का पूरा नाम ‘नासा-इसरो सिंथेटिक अपर्चर रडार’ है। ये एक अत्याधुनिक पृथ्वी-अवलोकन सेटेलाइट है, जिसे भारत के इसरो और अमेरिका की नासा ने संयुक्त रूप से विकसित किया है।
भूस्खलन क्षेत्रों पर रखेगा नजर
यह उपग्रह 240 किलोमीटर चौड़े रडार क्षेत्र का उपयोग करके हर 12 दिन में धरती का मानचित्र बनाएगा, जिससे विज्ञानियों और आपदा प्रतिक्रिया एजेंसियों को हिमालय में ग्लेशियरों के पीछे हटने से लेकर दक्षिण अमेरिका में संभावित भूस्खलन क्षेत्रों तक हर चीज पर नजर रखने के लिए डाटा उपलब्ध होगा।
नासा-इसरो सिंथेटिक अपर्चर रडार (निसार) उपग्रह को दोनों अंतरिक्ष एजेंसियों द्वारा संयुक्त रूप से विकसित किया गया है। हालांकि, इसरो ने अतीत में रिसोर्ससेट और रीसेट सहित पृथ्वी पर नजर रखने वाले उपग्रहों को प्रक्षेपित किया है, लेकिन इन उपग्रहों से एकत्रित डाटा भारतीय क्षेत्र तक ही सीमित था।
पूरी धरती पर नजर रखेगा निसार
इसरो और नासा ने मिलकर पहली बार ऐसा सेटेलाइट लांच किया है, जो पूरी धरती पर नजर रखेगा। इसरो के जीएसएलवी एफ-16 ने लगभग 19 मिनट की उड़ान के बाद लगभग 745 किलोमीटर की दूरी पर निसार उपग्रह को सूर्य समकालिक ध्रुवीय कक्षा (एसएसपीओ) में स्थापित कर दिया, जिससे विश्व की दो शीर्ष अंतरिक्ष एजेंसियों के बीच सहयोग सफल रहा।
दुनिया का सबसे महंगा मिशन
इसरो के अध्यक्ष वी नारायणन ने कहा कि मुझे यह घोषणा करते हुए बेहद खुशी हो रही है कि जीएसएलवी एफ-16 ने निसार उपग्रह को सफलतापूर्वक कक्षा में स्थापित कर दिया है। बुधवार का मिशन कथित तौर पर दुनिया का सबसे महंगा मिशन था, जिसकी अनुमानित लागत 1.5 अरब डॉलर थी।
इसके अलावा यह सूर्य समकालिक ध्रुवीय कक्षा के लिए पहला जीएसएलवी मिशन भी था। अब तक सभी जीएसएलवी मिशन जियोसिंक्रोनस ट्रांसफर आर्बिट (जीटीओ) में ही गए हैं। एसएसपीओ मिशन होने के नाते इसको पूरी तरह सफल बनाने के लिए कई विश्लेषण और अध्ययन किए गए।
नारायणन ने कहा कि सभी वाहन प्रणालियों का प्रदर्शन अपेक्षा और पूर्वानुमान के अनुरूप सामान्य रहा। आज हमने इच्छित कक्षा प्राप्त कर ली। वास्तव में हमें 20 किमी के स्वीकार्य स्तर की तुलना में तीन किमी से भी कम फैलाव (वांछित कक्षा से विचलन) वाली कक्षा प्राप्त हुई है..सभी पैरामीटर अपेक्षा के अनुरूप हैं।
आपदा से निपटने के लिए मिलेगा अधिक समय
नासा ने कहा कि निसार से प्राप्त डाटा सरकार और प्रशासन को प्राकृतिक और मानव-जनित खतरों से निपटने के लिए योजना बनाने में महत्वपूर्ण इनपुट मुहैया कराएगा। निसार खतरे की निगरानी के प्रयासों में मदद कर सकता है और संभावित रूप से प्रशासन को संभावित आपदा से निपटने के लिए तैयारी करने हेतु अधिक समय दे सकता है।
भूकंप और भूस्खल संभावित क्षेत्रों की निगरानी
निसार उपग्रह पृथ्वी की भूमि और बर्फ का 3-डी तस्वीरें प्रदान करेगा। दिन-रात बादलों और हल्की बारिश के पार देखने की अपनी क्षमता से यह उपग्रह डाटा यूजरों को भूकंप और भूस्खलन संभावित क्षेत्रों की निरंतर निगरानी करने और यह निर्धारित करने में सक्षम बनाएगा कि ग्लेशियर और बर्फ की चादरें कितनी तेजी से बदल रही हैं।
भूमि और बर्फ के बदलाव पर रहेगी नजर
इसरो के अनुसार, इस मिशन का प्राथमिक उद्देश्य अमेरिकी और भारतीय विज्ञानी समुदाय के साझा हित के क्षेत्रों में भूमि और बर्फ के बदलाव, भूमि पारिस्थितिकी तंत्र और समुद्री क्षेत्रों का अध्ययन करना है। यह मिशन बायोमास को मापने, सक्रिय फसलों के विस्तार में परिवर्तन को ट्रैक करने और जलाशयों में परिवर्तन को समझने में मदद करेगा।