Thursday, November 13

प्रधानमंत्री जी दे ध्यान! सरकार और जनता का सरकारी तंत्र से भरोसा क्यों घट रहा है

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एक दशक पूर्व जब केंद्र में सरकार बदली और नरेंद्र मोदी जी के नेतृत्व में पूर्ण बहुमत की सरकार बनी और प्रधानमंत्री ने देश में भय व भ्रष्टचार मुक्त वातावरण स्वच्छता विश्वसनीयता कायम करने की घोषणा की तो यह लगा था कि सरकार बहुमत है और ज्यादातर प्रदेशों में इसी दल की सरकार है और शासन के पास गलत काम करने वालों को सुधारने की शक्तियां मौजूद हैं इसलिए जनहित की योजनाएं लागू होंगी। आम आदमी को सस्ता न्याय मिलेगा और वो अपनी बात बिना डरे कह सकेगा। एक दशक बीतने के बाद जो नजर आ रहा है उसे देखकर यह तो कहा जा सकता है कि सरकारें अपने वादे के अनुसार पूर्ण व्यवस्था करने लापरवाही भ्रष्टाचार रोकने के लिए निर्देश तथा बजट काम समय से पूरा कराने को दे रही है। लेकिन ग्रामीण कहावत ज्यों ज्यों दवाई की मर्ज बढत्रा गया के समान आम आदमी को भय के साथ रहना पड़ रहा है। महानगरों व देहातों में विकास गुणवत्तापूर्ण कार्य और लापरवाही किस हद तक है कि सरकारें अपने कार्य भी अपनी एजेंसियों और विभागों के कर्मचारी और अफसरों के होने के बाद भी प्राइवेट कंपनियों से कराने को मजबूर है। इसके उदाहरण के रूप में कुछ साल पहले मोदी सरकार द्वारा दिल्ली में बनवाए गए नए संसद भवन का निर्माण सरकारी विभाग सीपीडब्यलूडी से कराने की बजाय टाटा की कंपनी से कराया गया। अभी पिछले दिनों निजी कंपनी को बड़ी कंसलटैेंसी का काम सौंपे जाने की चर्चा है। आखिर क्या सरकार को अपनी एजेंसियों पर ही विश्वास नहीं रहा जो अपने काम भी पूरी फौज विभाग में होने के बाद भी अन्य एजेंसियों से काम कराना पड़ रहा है। और कंसलटेंसी कंपनियों से काम कराने का प्रचलन बढ़ रहा है।
इसके उदाहरण के रूप में यूपी में नगर निगमों प्राधिकरणों में मोटा वेतन और सुविधाएं लेेने वाले कर्मचारियों और अधिकारी होने के बाद भी विकास कार्यों के लिए प्राइवेट कंपनियों से अनंुबंध किया जा रहा है और बिल्डरों से काम कराने के लिए चर्चा हो रही है। दूसरी तरफ पुलिस के काम को देखें तो साल में कई बार व्यवस्था बनाने के लिए उन्हें नागरिकों का सहयोग लेना पड़ता है और कभी तो छात्रों को ही व्यवस्था बनाने में लगा दिया जाता है। वर्तमान में कांवड़ यात्रा चल रही है। यूपी का ज्यादातर पुलिस बल इसे संपन्न कराने के लिए लगाया गया है। इसे फिर भी अधिकारियों में असुरक्षा की भावना कहे या नागरिकों से तालमेल की कमी इस बार मेेरठ में विभिन्न चौराहों पर आरएसएस कार्यकर्ता व्यवस्था संभाल रहे हैं। ज्यादातर जगहों पर दारोगा और पुलिसकर्मी कुर्सियों पर बैठे नजर आते हैं।
सवाल उठता है कि शहरों को स्मार्ट सिटी बनाना हो या सरकार बड़े कार्य कराना चाहती हो अब तो इंजीनियर होने के बाद भी निजी कंपनियों को मोटा भुगतान कर उन्हें सलाकार क्यों बनाया जा रहा है। कई बार पढ़ने को मिला कि कार्यों की शिकायत होने पर जांच की गई तो उनमें भ्रष्टाचार सामने आ रहा है जो इस बात का प्रमाण है कि कुछ नौकरशाह निरकुंशता की सीमाएं लांघ रहे हैं और सरकार की कार्य पूरे कराने भाईचारा बढ़ाने विकास योजनाओं को पूरा नहीं करा रहे हैं। सब जानते हैं कि सरकार अपनी पर आ जाए तो बड़ों बड़ों को सुधार देती है। कहावत के अनुसार एक दबंग थानेदार चार्ज लेने से पूर्व सबसे बड़े बदमाश की खबर लेता है और पूरे साल व्यवस्था अपने आप बनी रहती है। मुझे भी लगता हे कि सरकार को अब लापरवाह अफसरों व कर्मचारियों को सेवानिवृति और उनके द्वारा किए गए नुकसान की उनकी निजी संपत्ति से पूर्ति कराने और मुकदमा दर्ज करने से नहीं चूकना चाहिए। वरना कुछ हठधर्मी आसानी से सुधरने वाले नहीं है। क्योंकि इससे ईमानदारी से काम करने वाले अफसरों और कर्मचारियों का मनोबल भी कमजोर होता है। ऐसा ना हो इसलिए ईमानदारी से काम करने वालों को पुरस्कृत करना चाहिए।

(प्रस्तुतिः- रवि कुमार बिश्नोई संपादक दैनिक केसर खुशबू टाइम्स)

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