सरकार द्वारा प्रदेश वासियों को हर संभव भयमुक्त वातावरण का अहसास कराने तथा अपराधी प्रवृति के लोंगों की गतिविधियों पर अंकुश के प्रयासों के बावजूद सुप्रीम कोर्ट के प्रधान न्यायाधीश संजीव खन्ना जय कुमार और केवी विश्वनाथन की तीन सदस्यीय पीठ द्वारा दीवानी मामलों को अपराधिक में बदलने के प्रकरण में की गई टिप्पणी कि यूपी में पूरी तरह ध्वस्त हो गया कानून का शासन। जो हो रहा है वो गलत है। यह कानून के शासन का पूरी तरह ब्रेकडाउन है। जैसी टिप्पणियां किया जाना शायद किसी प्रदेश की कानून व्यवस्था और पुलिस की कार्यप्रणाली को लेकर किया जाना लोकतंत्र में सरकार के लिए उचित नहीं है। बताते चलें कि नोएडा के रहने वाले देबूसिंह व दीपक सिंह के खिलाफ दीवानी विवाद को अपराधिक केस में तब्दील किए जाने पर उनके वकील चांद कुरैशी द्वारा दाखिल की गई अपील के बाद इलाहाबाद हाईकोर्ट के तीन सितंबर के दिए गए आदेश को चुनौती दी गई। बताते चलें कि एक लेनदेन के मामले में चेक बाउंस होने की स्थिति में आईपीसी की धारा 406 अपराधिक विश्वासघात, 506 अपराधिक धमकी और 120 बी अपराधिक साजिश के तहत एफआईआर दर्ज की गई थी जिसमें हाईकोर्ट ने देबू सिंह और दीपक सिंह को राहत देने से खबर के अनुसार इनकार कर दिया थां उसके बाद यह मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा और न्यायाधीशों द्वारा यह निर्णय दिया गया। सबसे बड़ी बात यह टिप्पणी कि उत्तर प्रदेश में कानून का शासन पूरी तरह ध्वस्त हो गया है। खबर के अनुसार सुप्रीम कोर्ट ने दीवानी मामले को आपराधिक केस में बदलने की प्रवृत्ति पर यूपी पुलिस को कड़ी फटकार लगाते हुए सोमवार को टिप्पणी की, कि उत्तर प्रदेश में कानून का शासन पूरी तरह ध्वस्त हो गया है। कोर्ट ने कहा कि दीवानी मामले को आपराधिक मामले में तब्दील करना स्वीकार नहीं किया जा सकता।
शीर्ष अदालत ने उत्तर प्रदेश के पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) और जांच अधिकारी को हलफनामा दाखिल कर यह बताने को कहा है कि दीवानी विवाद के मामले में आपराधिक केस क्यों शुरू किया गया? ये टिप्पणियां गत सोमवार को प्रधान न्यायाधीश संजीव खन्ना, संजय कुमार और केवी विश्वनाथन की तीन सदस्यीय पीठ ने देबू सिंह और दीपक सिंह की उनके खिलाफ दर्ज आपराधिक मामला रद करने की मांग वाली याचिका पर सुनवाई के दौरान कीं।
उत्तर प्रदेश में जो हो रहा है वह गलत है: सुप्रीम कोर्ट
पीठ ने कहा कि उत्तर प्रदेश में जो हो रहा है वह गलत है। रोजाना दीवानी विवादों को आपराधिक केस में तब्दील किया जाता है। ये पूरी तरह गलत है। सिर्फ पैसे न देने पर मामले को आपराधिक मामले में नहीं बदला जा सकता। ये गलत है।
कोर्ट ने नाराजगी तब प्रकट की जब वकील ने बताया कि एफआईआर इसलिए दर्ज की गई, क्योंकि दीवानी मामला तय होने में समय लगता। पीठ ने नाराजगी जताते हुए कहा कि हम जांच अधिकारी को निर्देश देंगे कि वह कटघरे में खड़े होकर गवाही दे और बताए कि कैसे क्रिमनल केस बनाया है?
पीठ ने कहा कि आप इस तरह आरोप पत्र नहीं दाखिल कर सकते। जांच अधिकारी को सीख मिलनी चाहिए। दीवानी मामले में वक्त लगेगा सिर्फ इसलिए आपने आपराधिक केस दर्ज कर आपराधिक कार्यवाही शुरू कर दी।
इस मामले में देबू सिंह और दीपक सिंह ने वकील चांद कुरैशी के जरिए अपील दाखिल कर इलाहाबाद हाई कोर्ट के आदेश को चुनौती दी है और उनके खिलाफ दर्ज एफआईआर रद करने की मांग की है।
चेक बाउंस का था मामला
याचिका के अनुसार मूलतः यह मामला चेक बाउंस का था। सुप्रीम कोर्ट ने दोनों अभियुक्तों के खिलाफ नोएडा के ट्रायल कोर्ट में लंबित आपराधिक कार्यवाही पर रोक लगा दी है लेकिन स्पष्ट किया है कि उनके खिलाफ चेक बाउंस का मामला चलता रहेगा।
दोनों अभियुक्तों के खिलाफ नोएडा के सेक्टर 39 थाने में आईपीसी की धारा 406 (आपराधिक विश्वासघात ), 506 (आपराधिक धमकी) और 120बी (आपराधिक साजिश) के तहत एफआईआर दर्ज की गई थी।
याचिका के मुताबिक दोनों के पिता ने शिकायतकर्ता से 25 लाख रुपये उधार लिये थे इसके बदले उसके पिता ने उन्हें 25 लाख का चेक भी जारी किया था। मामले के मुताबिक बाद में पैसे न लौटाने पर पुलिस ने शिकायत मिलने पर पिता के साथ साथ इन दोनों याचिकाकर्ताओं के खिलाफ भी आपराधिक मामला दर्ज कर लिया था, जिसे रद कराने की याचिका में मांग की गई है। हाई कोर्ट से याचिका खारिज होने के बाद सुप्रीम कोर्ट में अपील दाखिल की है।
मैं सुप्रीम कोर्ट के आदरणीय न्यायाधीशों के फैसले पर तो टिप्पणी नहीं कर रहा हूं लेकिन इस प्रकरण में जो यूपी पुलिस की छवि प्रभावित होगी उसे देखते हुए यूपी के सीएम योगी जो पहले ही कानून व्यवस्था में सुधार के लिए प्रयासरत हैं उन्हें और डीजीपी को पुलिस की कार्यप्रणाली में सुधार हेतु सख्त निर्णय लेते हुए गलत मामले दर्ज करने वाले पुलिसकर्मियों को सही मार्ग पर लाने के लिए कार्रवाई तो करनी पड़ेगी।
क्योंकि एक तरफ पुलिस सारे नियम कानून तोड़कर दीवानी मामलो को अपराधिक में दर्ज कर रही है दूसरी तरफ सरकार, डीजीपी और अदालतों के निर्देशों के बावजूद ना तो शहरों में ई-रिक्शा का संचालन ही सही करा पा रही है और ना चाइनीच मांझे की बिक्री की रोकथाम में सफल है। इतना ही नहीं नियम विरूद्ध बजने वाले डीजे की आवाज कम कराने जैसे मामूली मामलों में भी यूपी पुलिस को सफलता ना मिलना इस ओर इशारा करता है कि संबंधित अधिकारी और पुलिसकर्मी सीएम की नियमों को पालन कराने की मंशा को गंभीरता से नहीं ले रहे है। वरना ऐसे कैसे हो सकता है कि एक थाना क्षेत्र में दस बीस डीजे चलाने वाले होंगे इतने ही चाइनीज मांझा बेचने वाले होंगे और इतने ही बाजारों में ईरिक्शा का संचालन सुधारने में भी पुलिसकर्मी सफल नहीं है तो आखिर यह हो क्या रहा है। आज कई लोगों को यह कहते सुना गया कि सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीशों का फैसला समयानुकुल है और कुछ निरंकुश पुलिसकर्मियों की कार्यप्रणाली में सुधार हेतु अब शासन और डीजीपी प्रशांत कुमार को कार्रवाई का चाबुक दोषियों पर चलाना ही होगा।
(प्रस्तुतिः रवि कुमार बिश्नोई दैनिक केसर खुशबू टाइम्स मेरठ)
सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी: यूपी में पूरी तरह ध्वस्त हो गया कानून का शासन, यह गलत है; मुख्यमंत्री जी! डीजे की तेज आवाज चाइनीज मांझे की बिक्री और ई रिक्शा का संचालन सही करने में असफल पुलिसकर्मियों पर नियमों का चाबुक जरूरी है
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