Wednesday, November 12

आवश्यकतानुसार दिमाग को नियंत्रित कर सोचने में भी कोई बुराई नहीं है, बिना सोचे समझे कार्य करने में भी मिलती है भारी सफलता

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सारे विवि यूके दक्षिण कैरोलिना विवि अमेरिका एवं सैंट्रल क्वीसलैंड विवि ऑस्ट्रेलिया के शोधकर्ताओं ने १०५ प्रतिभागियों पर एक अध्ययन किया। एक सप्ताह तक इन पर नजर रखी गई। इनमें छह बार स्मार्टफोन के जरिए अपनी अपनी गतिविधियों को रिकॉर्ड करने के लिए कहा गया और पूछा कि गतिविधि जानबूझकर की थी या आदतन थी। इसमें उभरकर आया कि दो तिहाई दैनिक गतिविधियां आदत से प्रेरित थी। हमारा व्यवहार सोच समझकर किए गए कार्य के बजाय वातावरण या दिनचर्या से प्रभावित होता है। व्यवहार को समझने में महत्वूर्ण है क्योंकि यह दर्शाता है कि दिमाग का बड़ा हिस्सा व्यवहार पर निर्भर करता है। जब हम कोई काम सोचकर करते हैं कि हमारा दिमाग न्यूरल पाथवे बना लेता है जिससे वह अपने आप होने लगता है। जैसे रोजाना काम पर जाते समय एक रास्ते का उपयोग करना। सुबह उठकर कॉफी बनाना। निवृत्त होकर घूमने जाना आसन लगाना यह ऐसी आदतें रोजाना की आदत में शामिल हो जाती है। जानकारो ंका कहना है कि ६५ फीसदी लोग बिना सोचे समझे काम करते हैं। यह शोध किस दृष्टि से किया गया यह तो करने वाले ही जाने। इसमें जो उन्होंने जो बिंदु दर्शाए उनके बारे में भी मुझे कुछ नहीं कहना लेकिन एक बात से मैं सहमत हूं कि आदतों को नियंत्रित करना सीखना चाहिए। क्योंकि हमारे दिमाग को हर काम को निर्णय लेने से बचाती है जिसे मानसिक ऊर्जा की बचत बताई जा रही है लेकिन पिछले लगभग सात दशक से जहां तक याद है ७० प्रतिशत कार्य बिना सोचे समझे और ३० प्रतिशत सोचकर किए गए होंगे। औरों के बारे में तो मैं कुछ नहीं कह सकता लेकिन भूखमरी में जब दो रोटी का जुगाड़ मुश्किल होता है तो किसी भी मुददे पर सोचने का नहीं मिलता लेकिन एक बात विशेष रूप से कह सकता हूं कि जो काम बिना सोचे समझे किया उनमें से ज्यादातर में सफलता मिली। और जो काम सोच समझकर किए उनमें से कुछ फीसदी में तो असफलता और कुछ में भारी नुकसान भी उठाना पड़ा। इतनी बड़ी यूनिवर्सिटयों के शोधकर्ताओं ने सोच समझकर ही इस पर चर्चा की होगी लेकिन मुझे लगता है कि आदतों को नियंत्रित आवश्य करना चाहिए। कुछ कार्य ऐसे होते हैं जिन्हें सोच समझकर करने की कोशिश होनी चाहिए लेकिन कई काम ऐसे होते हैं जिसे बिना सोचे समझे किए जाएं तो सफलता की उम्मीद ज्यादा बढ़ जाती है क्योंकि परेशानी भी आती है तो शरीर और दिमाग उसमें सफलता दिलाने में सफल रहता है। कहने का मतलब है कि काम कोई भी पहले उसकी महत्त्ता और आवश्यकता और बाद में समाज पर इसका क्या असर पड़ेगा और जीवन में इसके क्या फायदे होंगे और महत्वपूर्ण कार्य में इन बिंदुओं पर सोचकर काम करना चाहिए क्योंकि लाभ हानि की चिंता करने से काफी काम होने से पहले ही खराब हो जाते हैैं और कई इसलिए खराब होते हैं कि सामने वाला संभल जाता है और हम कमजोर पड़ जाते हैं। इसलिए मेरा कहना है कि अगर आपका दिमाग दुरुस्त है और किसी भावना से ग्रस्त नहीं है तो आप भी जो मन में आए उसे करेंगे तो भरपूर सफलता मिलेगी। यह बात मैं अपने जीवन में घटी घटनाओं के आधार पर विश्वास से कह सकता हूं क्योंकि यह निर्णय लेने का ही परिणाम है कि ईट भटटा लेबर के रूप में और चाय के झूठे बर्तन धोने वाले से लेकर आज तक जो निर्णय लिया वो सफल भी रहा और उसी के दम पर आज अनपढ़ होने के बावजूद ऐसे काम को अंजाम दे रहा हंू जो शिक्षित लोगों के द्वारा दिया जाने वाला है। समाचारों के इंट्रो जो बड़े बड़े नहीं लिख पाते उसे अपने निर्णय के चलते आसानी से कर लेता हूं। तो यह नहीं कहा जा सकता कि बिना सोचे किया गया काम सफल नहीं हो सकता। इंटरनेट पर हजारों ऐेसे मामले मिल जाएंगे जिन्हें बिना सोचे समझे काम करने से सफलता मिली और कई लोग शीर्ष स्थान पर विराजमान है।
(प्रस्तुतिः- रवि कुमार बिश्नोई संपादक दैनिक केसर खुशबू टाइम्स मेरठ)

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