मेरठ 06 जनवरी (प्र)। करोड़ों रुपये के फर्जी स्टांप घोटाले में क्राइम ब्रांच मेरठ और कोतवाली पुलिस ने गिरफ्तारी की है। दो आरोपियों की गिरफ्तारी कर ली गई है और पूछताछ की जा रही है। गिरफ्तार दोनों आरोपी फर्जी स्टांप की मदद से कराए गए बैनामों में गवाह बनते थे।
मेरठ समेत यूपी के कई जिलों में करोड़ों रुपये का फर्जी स्टांप घोटाला अंजाम दिया गया। कुछ दस्तावेज लेखक और वकीलों ने ऐसे स्टांप को बैनामे में इस्तेमाल किया, जिनका ट्रेजरी यानी कोषागार में कोई रिकार्ड ही नहीं था। ऐसे में सरकार के पास इन स्टांप की रकम नहीं पहुंचती थी। खुलासा ऑडिट के समय हुआ और पता चला कि यह घोटाला करोड़ों का है। इसके बाद जांच शुरू कराई गई। मेरठ में फर्जी स्टांप घोटाले को अधिवक्ता/दस्तावेज लेखक विशाल वर्मा ने अपने साथियों के साथ पिछले करीब आठ साल से अंजाम दे रहा था।
फर्जी स्टांप मामले में विशाल वर्मा और उसके दो साथियों राहुल वर्मा निवासी प्रवेश विहार कॉलोनी मेडिकल और राहुल वर्मा निवासी रिठानी परतापुर के खिलाफ रजिस्ट्री कार्यालय के कनिष्क सहायक अनिल कुमार की ओर से एक तहरीर दी गई। जांच में पता चला कि विशाल वर्मा के द्वारा रजिस्ट्री कार्यालय में जो डीड प्रस्तुत की गई, उनका कोषागार में रिकार्ड नहीं मिला, जबकि उन पर कोषागार मेरठ की मुहर मौजूद थी। हर डीड पर विशाल वर्मा का नाम था।
पूछताछ में खुलासा हुआ कि विशाल वर्मा के कहने पर ही बैनामे में गवाह बनते थे। आरोपियों ने ये भी बताया कि विशाल वर्मा ने ई-स्टांप व्यवस्था लागू होने के बाद बैनामे के दस्तावेज में ऊपर ई-स्टांप का एक पर्चा लगाता था। बाकी सारे स्टांप फर्जी वाले होते थे। दोनों ने बताया कि उन्होंने विशाल के यहां से काम छोड़ दिया था।
सिविल लाइन थाने में दर्ज हुए मुकदमे में जिन दोनों राहुल को नामजद किया गया, उन्हें कोतवाली पुलिस और क्राइम ब्रांच मेरठ की टीम ने गिरफ्तार कर लिया। हालांकि मास्टरमाइंड और मुख्य आरोपी विशाल वर्मा इस बार भी पुलिस के हाथ नहीं लगा। विशाल की पुलिस को तलाश है।
एसएसपी डॉ. विपिन ताडा का कहना है कि फर्जी स्टांप प्रकरण में सिविल लाइन थाने में एक मुकदमा दर्ज कराया गया था। इस मामले में वांटेड दोनों आरोपियों को गिरफ्तार किया गया है। विशाल वर्मा की तलाश में टीम को लगाया गया है