मेरठ 16 फरवरी (विशेष संवाददाता)। उत्तरी भारत के प्रसिद्ध उच्च शिक्षा संस्थानों में सुमार मेरठ कालेज की प्रबंध समिति के चुनावों की गतिविधियां मौखिक सूत्रों के अनुसार गोपनीय तरीके से वर्तमान मैनेजमेंट द्वारा शुरू कर दी गई है। जानकारों का कहना है कि पिछली बार जुलाई माह में चुनाव हुए थे तीन माह का कार्यकाल कार्य समिति का होता है इसीलिए अब जुलाई में चुनाव प्रस्तावित होंगे अगर वर्तमान पदाधिकारी समय से कराना चाहेंगे तो।
अजय अग्रवाल ओम प्रकाश अग्रवाल
कुछ लोगों का मानना है कि चुनाव जब होंगे तब होंगे लेकिन इस कार्यकाल में चुने गये सचिव डा0 ओम प्रकाश अग्रवाल अपनी जिम्मेदारियां पूरी करने में कई कारणों से सफल नहीं हो पाए क्योंकि पूरे कार्यकाल वो प्रधानाचार्य विवाद में ही ज्यादा उलझे रहे। तो कुछ साधारण सदस्यों का मानना है कि इसके पीछे कारण ये रहा कि उन्होंने पूर्व अध्यक्ष और सचिव रहे जानेमाने शिक्षाविद् और जनपद में सबसे लोकप्रिय राजनेता और समाजसेवी दयानंद गुप्ता जी की कार्यप्रणाली पर चलने की कोशिश की जिसमें वो सफल नहीं हो पाए और अपने हिसाब से उन्होंने काम करने की सोची नहीं इसलिए इस बार उनके ग्रुप के कुछ पदाधिकारी व सदस्य आगामी चुनावों में सचिव पद के लिए सेठ दयानंद गुप्ता जी के पुत्र और एक प्रकार से सामाजिक कार्यों में उनके वारिस अजय अग्रवाल को लाने की योजना बना रहे है। ऐसा कहने वालों का मौखिक तर्क था कि अजय अग्रवाल ने डीएन कालेज का सचिव रहते हुए काफी अच्छा कार्य किया। जिसकी अन्य पदाधिकारी और सदस्यों के साथ साथ शिक्षक भी प्रशंसा करते है। दूसरी तरफ ईस्माईल डिग्री कालेज के सचिव का पद छोड़कर उनके द्वारा अरूण को दिया गया। जिससे वो मेरठ कालेज की राजनीति और कार्य परिषद की व्यवस्थाओं को बाहर रहकर भी समझ सके।
अब इसमें कितनी सत्यता है ये तो वर्तमान मैनेजमेंट कमेटी और अजय अग्रवाल ही जान सकते है। मगर कुछ लोग यह भी कहते है कि डा0 ओमप्रकाश अग्रवाल सचिव रहते हुए अपने लोगों को मेरठ कालेज का सदस्य भी नहीं बना पाए क्योंकि जैसे ही मैंबरशिप खोली तो विपक्षी गुट के विवेक गर्ग गु्रप कोर्ट से स्टे ले आये जिसे सचिव साहब खत्म नही करा पाए। इसलिए वो अपने लोगों की मंशा पर भी खरे नहीं उतर पाए। शायद इसी कारण से कुछ सूत्रों के अनुसार अंदर ही अंदर वर्तमान कार्यकारिणी में मंथन चल रहा है। बड़ी संख्या में पदाधिकारी और कार्यकारिणी सदस्यों का मानना है कि अध्यक्ष सुरेश जैन रितुराज अपनी जिम्मेदारी निभाने के साथ साथ सदस्यों की भावनाओं व इच्छाओं को भी अपनी स्पष्ट बात कहने की प्रवृत्ति के चलते संतुष्ट करने में सफल रहे इसलिए रितुराज अश्वनी प्रताप सहित तमाम पदाधिकारी व कार्यकारिणी सदस्यों से किसी को कोई नाराजगी इधर उधर हुई बातचीत में उभरकर सामने नहीं आई सबका यही कहना था कि ओम प्रकाश जी जितने अच्छे डाक्टर व सामाजिक व्यक्ति है उतना वो सचिव पद पर कामयाब नहीं रहे। और जो लोग उनके साथ चल रहे थे उन्हें भी लेकर इस दौरान वो नहीं चल पाए इसलिए इस बार सचिव पद का भार किसी और को सौंपा जाना जरूरी है।
समाजसेवा का क्षेत्र हो या राजनीति इनमें कब कोई किसके साथ जाएगा और अब जो कह रहा है और दस मिनट बाद क्या कहने लगेगा किसकी किससे कब नाराजगी होगी और कब प्यार की पिंगे बढ़ेगी यह कोई कुछ नहीं कह सकता क्योंकि कई बार ऐसा देखने को मिला जिस व्यक्ति से सभी नाराज होते थे चुनाव के दौरान वो ही सबसे महत्वपूर्ण होकर सामने आये और चुनाव भी जीत गये।