Saturday, September 7

पढ़ने वाले बच्चों की आत्महत्या को रोकने को सरकार उठाए सकारात्मक कदम, विकास कुमार के मामले में आईआईटी कानपुर प्रशासन के मामले में हो सख्त कार्रवाई

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मेरठ के कंकरखेड़ा निवासी विकास कुमार मीणा आईआईटी कानपुर के छात्र द्वारा आत्महत्या किए जाने का मामला इस क्षेत्र में कोई नया नहीं है। पूर्व में दिल्ली कोटा सहित तमाम महानगरों में जहां शिक्षण संस्थान हैं इस प्रकार की घटनाएं पढ़ने सुनने को मिलती ही रहती है। पूर्व में खबरों को देखें तो कहीं रैगिंग को लेकर तो कहीं मानसिक आर्थिक उत्पीड़न को लेकर इस प्रकार की घटनाएं होने की खबरें सामने आती रही है। लेकिन पहली बार विकास कुमार से संबंध वायरल हो रहे वीडियो के आधार पर जो पढ़़ने सुनने को मिल रहा है कि घर से पैसे लेते मुझे शर्म आती है। मैं फेल्यर हूं। ट्राई करने के बाद भी कामयाब नहीं हो पा रहा हूं। अच्छा बेटा नहीं बन पा रहा हूं। इसलिए यह कदम उठाया गया। अभी बताते हैं कि सुसाइड नोट की असल कॉपी स्पष्ट रूप से सामने नहीं आ पाई है। पुलिस भी कई बिंदुओं पर जांच कर रही है। आईआईटी कानपुर के जिम्मेदार लोगों का कहना है कि निधन पर खेद है। संस्थान छात्रों के हित के लिए कार्य करता है। फिर भी कहीं ना कहीं गैप रह गया। जिसे दूर किया जाएगा। नए काउंसलर की नियुक्ति की जाएगी। पहली बात तो यह कि छात्रों को या शिक्षा के बाद मनचाही नौकरी नहीं मिलती है तो भी बच्चे कभी भी अपने परिवार वालांे के लिए ना तो बोझ होते हैं ना ही उन्हें पैसे लेने पर शर्म आनी चाहिए और जहां तक फेल्यर की बात है तो दुनिया में कोई भी कभी फेल्यर नहीं होता बस कभी कभी निर्णय लेने में कोई गलती हुई और जो सोच रखा था वो नहीं हुआ। इसका मतलब यह नहीं है कि बच्चे फेल्यर हो गए। इस कारण मेरा मानना है कि बच्चे अभिभावक और स्कूल कॉलेज के संचालक छात्रों की काउंसिलिंग के दौरान यह बात भी उन्हें जरूर समझाएं क्योकि परिवार पर जो भी होता है वो सब बच्चों के लिए होता है और मां बाप अगर डांटते हैं तो बच्चों के हित में ही की जाती है चाहे वह कितने ही बड़े क्यों ना हो जाए। अभिभावकों की निगाह में बच्चे ही होते हैं। इसलिए उन्हें ऐसी बातों का बुरा नहीं मानना चाहिए। मेरा मानना है कि विकास कुमार मीणा के पिता नेमचंद मीणा को इस बात का संज्ञान तो लेना ही चाहिए कि आईआईटी प्रशासन ने बर्खास्तगी की जानकारी मां बाप को क्यों नहीं दी। अगर पूर्व में काउंसलर सही नहीं थे तो उनकी कमी को पूरा क्यों नहीं किया गया। मैं यह नहीं कहता कि आईआईटी प्रशासन या कॉलेज संचालक हर छात्र तक नहीं पहुंच सकते लेकिन उनकी मानसिक स्थिति के बारे में बातचीत होती रहनी चाहिए और चार जनवरी को अगर उसे बर्खास्त किया गया था तो उसके बाद कई दिन तक यह बात जिम्मेदारों ने स्पष्ट क्यों नहीं की और बर्खास्तगी का ठोस कारण क्यों नहीं बताया।
बच्चे हॉस्टल में पढ़ने जाते रहेंगे। इसलिए ऐसी घटनाएं की पुनरावृति आसानी से ना हो पाए। इसके लिए मेरे द्वारा पूर्व में कई बार केंद्र व प्रदेशों की सरकार के साथ साथ शिक्षा मंत्रालय से भी आग्रह किया जाता रहा है कि बच्चे किसी के भी हो उसे बड़े प्यारे होते हैं। वो स्वस्थ रहे आगे बढ़ते रहे हर अभिभावक यही चाहता है और स्कूल कॉलेज में पढ़ने के बच्चों को भेजते हैं तो कोई संस्थान सरकारी सहायता प्राप्त हो लेकिन घरवालों का काफी पैसा इस काम में लगता है और बच्चे की कमी कोई भी पूरी नहीं कर सकता। जब शिक्षण संस्थान इतनी मोटी फीस वसूलते हैं तो यह उनकी जिम्मेदारी है कि वो अपने कंपाउड और हॉस्टल में खुश रहने का माहौल उपलब्ध कराएं। जहां तक आईआईटी प्रशासन का कहना है कि उन्हें खेद है तो उनके खेद से विकास जीवित तो नहीं हो जाएगा। उसके घरवालों को जो यह जीवनभर का दुख मिला हे उसकी पूर्तिं भी संभव नहीं है। लेकिन मेरा मानना है कि सरकारें शिक्षा संस्थानों के संचालकों पर शिकंजा कसे और यह तय करें कि ऐसी घटनाएं ना हो पाए और स्कूलों में जहां 200 से ज्यादा बच्चे हो वहां मनौचिकित्सक सर्जन और काउंसलरों की नियुक्ति हो व अन्य स्कूलों में डॉक्टर संबद्ध किए जो यह ध्यान रखें कि बच्चा किसी बात को लेकर विवाद में तो नहीं है।

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