मेरठ 15 जून (प्र)। लापरवाही की इससे बड़ी इंतहा क्या होगी कि आम नागरिक को रहने के लिए आवास उपलब्ध कराया जाता है, लेकिन वह लालच में उस मकान पर धड़ल्ले से शोरूम बना लेता है। जबकि दुकान पर रिहाइश बनाकर उसमें रहा जा रहा है। आवास-विकास परिषद में चल रहे इस मनमानी के खेल में अधिकारियों की बड़े पैमाने पर सांठगांठ की बात सामने आ रही है। आवास विकास परिषद की योजनाओं शास्त्रीनगर, जागृति विहार, माधवपुरम, मंगल पांडे नगर में बड़े पैमाने पर निर्धारित भू उपयोग को आवंटियों ने मनमानी करते हुए बदल दिया है।
आरटीआई एक्टिविस्ट लोकेश खुराना ने जन सूचना अधिकार के तहत यह मामला उठाया था। इसके जवाब में मिला जवाब नियमों के खुले उल्लंघन की दास्तां बयां कर रहा है। आरटीआई एक्टिविस्ट लोकेश खुराना ने बताया कि शास्त्रीनगर योजना संख्या तीन और सात में कुल आवासीय भूखंड 2563 थे। योजना संख्या तीन में 775 संपत्तियों का भू उपयोग परिवर्तित हुआ। योजना संख्या सात में 242 संपत्तियों में भू उपयोग परिवर्तित होने की बात अधिकारियों ने स्वीकार की। इसी कारण शास्त्रीनगर योजना अब रिहायशी इलाके के बजाय व्यावसायिक क्षेत्र में बदला नजर आता है। जागृति विहार योजना संख्या छह में 475 संपत्तियों का भू उपयोग परिवर्तित होने की बात भी स्वीकार की गई है।
बड़े पैमाने पर भू उपयोग परिवर्तित करने का मामला फिलहाल हाईकोर्ट में विचाराधीन है। हाईकोर्ट ने आवास विकास परिषद को प्रति शपथ पत्र (पक्ष रखने को दिया जाने वाला जवाब) दायर करने के लिए तीन सप्ताह का समय दिया है। उन्होंने बताया कि आवास अधिनियम 1965 की धारा 83 के तहत आवास विकास परिषद भू उपयोग परिवर्तित कर बनाई गईं इमारतों के विरुद्घ केवल ध्वस्तीकरण की कार्रवाई कर सकता है।
यहां विकास प्राधिकरण की तर्ज पर चालान काटने या शमन शुल्क अदा कर अवैध निर्माण को वैद्य कराने की गुंजाइश नहीं है। उधर आवास-विकास परिषद के अधीक्षण अभियंता राजीव कुमार का कहना है कि भू उपयोग परिवर्तन के मामलों में प्रभावी कार्रवाई सुनिश्चित की जाएगी। कई बार समय से फोर्स नहीं मिलने के चलते अवैध निर्माण को रोकना संभव नहीं हो पाता है।