मेरठ, 21 जून (प्र)। आधार कार्ड दीजिए… आयुष्मान भारत कार्ड ले जाइए। कुछ इस थीम पर गरीब मरीजों को छला जा रहा। तीन जून को किला परीक्षितगढ़-गढ़ मार्ग पर स्थित आसिफाबाद के एक जनसेवा केंद्र पर दिनेश गोस्वामी ने अपनी मां पुष्पा के लिए 3800 रुपये जमा कर आयुष्मान कार्ड बनवाया। कार्ड उसे चंद मिनट में मिल गया, जो अस्पताल की जांच में फर्जी साबित ’हुआ। स्वास्थ्य विभाग ने कोई कार्रवाई तो नहीं की, बल्कि शिकायतकर्ता का नाम लेकर पत्र प्रसारित कर दिया। राज्यसभा सदस्य डा. लक्ष्मीकांत बाजपेयी ने 20 जून को जिलाधिकारी को पत्र लिखकर भ्रष्टाचार को प्रमाणित करने वाले कागजात भी भेजे हैं। डा. बाजपेयी ने यह भी कहा कि शिकायतकर्ता का नाम पत्र में लिखकर सार्वजनिक करना अपराध है, और इसके खिलाफ शासन से शिकायत की जाएगी। डा. लक्ष्मीकांत बाजपेयी ने पत्र में लिखा है कि फर्जी आयुष्मान बनने का सिलसिला कई वर्ष से चल रहा। दिसंबर 2021 में मेडिकल कालेज के आयुष्मान मित्र ने प्रमाण समेत शिकायत की, लेकिन प्रशासन ने कोई संज्ञान नहीं लिया। कई अस्पतालों में फर्जी आयुष्मान कार्ड पर मरीज भर्ती करने का रैकेट चल पड़ा। शिकायतकर्ता डा. नगेंद्र एवं राज्यसभा सदस्य डा. लक्ष्मीकांत बाजपेयी ने सीएमओ कार्यालय के दो अधिकारियों पर मिलीभगत का आरोप लगाते हुए
स्वास्थ्य विभाग ने आयुष्मान मित्र रंजन को ग्रुप से हटाया
जिले में फर्जी आयुष्मान कार्ड बनाने की शिकायत करने वाले आयुष्मान मित्र रंजन कुमार को स्वास्थ्य विभाग ने सूचना के ग्रुप से हटा दिया, वहीं लखनऊ से निगरानी करने वाली संस्था साची ने रंजन का कार्यदायित्व बदल दिया है। साची ने अब रंजन की भूमिका को भी संदिग्ध माना है। बता दें कि रंजन कुमार ने दिसंबर 2021 में प्राचार्य एवं सीएमओ को पत्र लिखकर बताया था कि उनकी जानकारी के बिना 20 लोगों का आयुष्मान कार्ड पेडिंग दिखा रहा है।
बाद में रंजन ने अपने विभागाध्यक्ष डा. नवरत्न को पत्र लिखकर थाना मेडिकल कालेज में एफआइआर दर्ज कराने के लिए भी कहा था। जांच की मांग की है। 14 शिकायतकर्ताओं ने आयुष्मान भारत योजना के पैनल वाले दर्जनभर अस्पतालों के खिलाफ स्वास्थ्य विभाग एवं जिलाधिकारी को पत्र भेजा गया। सीएमओ आफिस ने अस्पतालों से तीन दिन में स्पष्टीकरण देने का नोटिस जारी किया, लेकिन एक भी अस्पताल की न जांच हुई और न कार्रवाई हुई। बल्कि शिकायतकर्ताओं पर दवाव बनाकर उनके बयान वापस कराने का प्रयास हुआ।
जिन मरीजों का इलाज हुआ, उनका बिल बनाकर लखनऊ से पैसे निर्गत करा लिए गए। सीएमओ डा. अखिलेश मोहन कहते हैं कि प्रकरण गंभीर एवं जटिल है। साइबर क्राइम से जांच कराने का अनुरोध किया गया है।