Tuesday, August 12

हर कोई नितिन गडकरी नहीं बन सकता, देश और नागरिकों का नुकसान ना हो तो सरल शब्दों में कभी कभी झूठ बोलना व चापलूसी गलत नहीं

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चापलूसी या झूठी प्रशंसा यह ऐसे शब्द हैं जो ना चाहते हुए भी हर कोई आपको पसंद करता रहेगा क्योंकि प्रशंसा झूठी हो या सच्ची यह जानते हुए भी कि यह गलत बोल रहा है सुनने वाले को अच्छा लगता है मगर होशियार व्यक्ति ऐसा करने वाले से चौकस जरूर हो जाते हैं। जहां तक पिछले छह दशक में देखा सरकारी क्षेत्रों और राजनीति में इसका बड़ा महत्व होता है। क्योंकि काबिल ना होने के बाद भी ऐसा करने वाले उन्नति और प्रमोशन प्राप्त कर लेते हैं। राजनीति में ज्यादातर मामलों में अच्छा पद और बिल्ली के भाग छींका टूटने की कहावत को चरितार्थ करते हुए सरकारी पद भी मिल जाते हैं। अब अगर ऐसे कामयाब शब्द को कोई गलत बताए तो आप समझ सकते हैं कि कोई साफ बोलने वाला ऐसा व्यक्ति ही हो सकता है जिसे ना तो कोई लालच हो ना डर। वर्तमान समय में इस क्षेत्र में नितिन गडकरी ऐसी ही शख्सियत नजर आते हैं। केंद्रीय सड़क परिवहन मंत्री स्पष्ट कह चुके हैं कि गरीबी बढ़ रही है जबकि सरकार कहती है कि गरीबी कम हुई है। ऐसी ही अन्य मामलों में अपनी बात कहने वाले नितिन गडकरी ने कहा कि राजनीति में झूठ बोलना या चापलूसी करना जरूरी है यह धारणा सही नहीं है। नेता अगर पूरे विश्वास के साथ सच बोलना चाहे तो उन्हें कोई नहीं रोक सकता। गडकरी ने बीते दिवस पुणे में आयोजित लोकमान्य तिलक पुरस्कार से सम्मानित होने के बाद यह बात कही। उन्होंने कहा कि यह गलत धारणा है कि राजनीति में सिर्फ झूठ बोला जाता है या चापलूसी की जाती है। शिवसेना के पूर्व प्रमुख दिवंगत बाला साहेब ठाकरे अपने भाषणों में सच ही बोलते थे। इसलिए हर किसी को सच बोलना सीखना चाहिए। अच्छे को अच्छा और बुरे को बुरा कहने में कुछ गलत नहीं है। नितिन गडकरी जी आप जो बोले वो पूर्ण रूप से सही है लेकिन आम आदमी अगर इस नीति को अपनाएं तो उसके कितने ही अच्छे परिणम निकले लेकिन फौरी तौर पर यह दो शब्द उसकी कठिनाईयों की शुरूआत हो सकते हैं। इसलिए मेरा मानना है कि सच को सच और झूठ को झूठ तो कहो लेकिन ऐसी भाषा में कि आप अपना मत भी व्यक्त कर दें और सामने वाला उसका आश्य समझ जाए मगर उसके चेहरे पर नाराजगी ना नजर आए और आपकी समस्या से वो प्रभावित ना हो। इसलिए राजनीति हो या कोई और क्षेत्र चापलूसी और झूठ बोलना गलत है मगर हर बात को कहने और शब्दों का उच्चारण किस प्रकार किया जाए वो सबसे ज्यादा जरूरी है। इससे कोई भी इनकार नहीं कर सकता। जो इस पॉलिसी को अपनाता है उसे नुकसान कम ही होते हैं। जहां तक नितिन गडकरी की बात है हर आदमी उनके जैसा नहीं हो सकता क्योंकि पावर सुविधा और जनसमर्थन जुटाना कि सच बोलने के बाद भी सामने वाला शांत बना रहे वो सबके बस की बात नहीं है।
(प्रस्तुतिः- रवि कुमार बिश्नोई दैनिक केसर खुशबू टाइम्स मेरठ)

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