Monday, August 11

ध्वस्त करने के बजाय खुद ही बनवा दी तीन दुकानें

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मेरठ 11 अगस्त (प्र)। न खाता, न वही जो कैंट बोर्ड करे वो ही सही! मामला सर्कुलर रोड पर अवैध रूप से बनवा दी गई तीन दुकानों का है। इन तीन दुकानों में से एक में फल व सब्जी, दूसरी में ढाबा और तीसरी में गैराज चल रहा है। अवैध इसलिए कहा जा रहा है, क्योंकि रोड साइड पर कहीं भी यदि कामर्शियल यूज से अवैध निर्माण होता है तो वो गैर कानूनी हैं और कैंट के इलाके में जहां फौजी अफसरों की कॉलोनी मलहोत्रा एन्क्लेव है, वहां तो और भी गलत है, इससे कृत्य से फौजी अफसरों की कॉलोनी की गोपनीयता के भंग होने का खतरा है। जहां ढाबा बनवाया गया है, वहां आने जाने वाले कौन है, उनकी मंशा यहां आने की क्या है, यह कोई नहीं जानता। कैंट एक्ट की यदि बात करें तो जिस प्रकार से ये दुकानें बनवा दी गयी है, वैसा कोई प्रावधान नहीं है तथा रोड साइड पर दुकानें नहीं बनवायी जा सकीं। कैंट बोर्ड की यह कारगुजारी बोर्ड में तैनात रहे सीईओ ज्योति कुमार के कार्यकाल की है। ज्योति कुमार की ऐसी क्या मजबूरी या दवाब था, जो उन्होंने अवैध रूप से बनवा दी गई, इन तीन दुकानों के मामले में रेवेन्यू सेक्शन जो भी इसमें लिप्त थे, उनके खिलाफ कार्रवाई क्यों नहीं की उस दौरान ज्योति कुमार सीईओ थे और अध्यक्ष ब्रिगेडियर निखिल देश पांडे थे और रेवेन्यू सेक्शन का भी स्टाफ वहीं था जो इस वक्त है।

ऐसे किया गया घालमेल
इन तीन दुकानों के अवैध रूप से बनवाने के पीछे सबसे पहला काम तहबाजारी के ठेकेदार से इनकी 25 रुपये वाली पर्ची कटवाई गयी, जबकि 25 रुपये वाली पर्ची केवल ठेलों या फड की ही काटी जा सकती है, जहां पूरा पक्का स्ट्रक्चर बना हो वहां यह पर्ची नहीं काटी जा सकती, जिस प्रकार का निर्माण कराया गया है, वहां केवल और केवल ध्वस्तीकरण किया जाता है। यदि दुकानों का निर्माण करा भी दिया गया, तो यह मामला पहले बोर्ड की बैठक में रखा जाता, बोर्ड में यह प्रपोजल पास होता, उसके बाद कमांड को भेजा जाता, जब वहां से सहमति आ जाती, उसके बाद यहां खुली नीलामी करायी जाती, जो भी अधिकतम बोली लगाता, उसको जगह अलाट की जाती, लेकिन बोर्ड के अफसरों ने इस प्रकार की किसी भी प्रक्रिया का पालन नहीं किया। सबसे बड़ी हैरानी तत्कालीन सीईओ ज्योति कुमार की चुप्पी पर है, न जाने क्यों और किस दबाव में उन्होंने भी जो कैंट एक्ट में जो नियम है, उसका भी पालन नहीं किया। जितनी जगह 20/40 की ये दुकानें अवैध रूप से बनवा दी गयी हैं, यदि ऐसी दुकानें नियमानुसार बनवाई होती तो एक ही दुकान से कम से कम डेढ़ लाख का रेवेन्यू एक ही दुकान से आता, लेकिन ऐसा नहीं किया गया। बोर्ड के खजाने के साथ भी नाईसाफी की गई। जानकारों की मानें इन दुकानों से प्रतिमाह करीब 33 हजार बतौर किराए के तौर पर लिए जाते लेकिन इस रकम की कोई रसीद नहीं काटी जाती, बड़ा सवाल फिर यह रकम किसी की जेब में जा रही है। कैंट बोर्ड के अधिकृत प्रवक्ता जयपाल तोमर से इस संबंध में सवाल किया गया तो उन्होंने कहा कि मेरा वर्जन नो कमेंट है।

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