देश के मिजोरम, मध्यप्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़, तेलंगाना आदि राज्यों मेें होने वाले चुनावों में विजय होने के लिए सभी राजनीतिक दल पूरी तौर पर तैयार नजर आ रहे हैं। जीत का सेहरा किसके सिर बंधेगा और कौन सरकार बनाएगा यह तो परिणाम आने के बाद ही पता चलेगा। मगर ऐसे समय में केंद्र शासित प्रदेश लददाख स्वायत पर्वतीय विकास परिषद के आए चुनाव परिणामों को देखकर यह कहा जा सकता है कि अगर केंद्र में सत्ताधारी दल और उसके सहयोगियों ने अपने अफसरों की कार्यप्रणाली में सुधार और जमीनी असलियत जानने की कोशिश नहीं की तो उसके उम्मीदवारों को कठिनाईयों का सामना करना पड़ सकता है। बताते चलें कि जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 को निरस्त किए जाने और लददाख को केंद्र शासित प्रदेश बनाने के बाद कारगिल में हुए पहले प्रमुख चुनाव में 77.61 फीसदी मतदाताओं ने वोट डाले और पहली बार ईवीएम से यहां हुए चुनाव के बाद 26 सदस्यीय चुनाव में 22 सीटों पर यहां कांग्रेस और नेका के बने गठबंधन ने जीत हासिल की। जिसमें नेशनल काफ्रंेस के 12 और कांग्रेस के 10 उम्मीदवार जीते। जबकि दो सीटों पर भाजपा और निर्दलीयों ने जीत हासिल की। जिससे स्पष्ट हो रहा है कि केंद्र में सत्ता संभाल रही पार्टी के उम्मीदवार यहां निर्दलीयों की संख्या से आगे नहीं बढ़ पाए और राहुल गांधी की पूर्व में की गई भारत जोड़ों यात्रा तथा आम आदमी से मिलने और उसकी समस्याएं सुनने का असर लददाख परिषद चुनाव में दिखाई दिया।
लददाख को केंद्र शासित प्रदेश घोषित करने के बाद हुए चुनाव के जो परिणाम आए हैं उनका भाजपा को मनन जरूर करना पड़ेगा। क्येांकि यह उम्मीद की जाती थी कि राष्ट्रवादी विचारधारा के लोग पूरी तौर पर धारा 370 की समाप्ति के चलते यहां भाजपा के साथ खड़े होंगे। लेकिन मात्र दो सीटों पर जीत मिलने की परिस्थितियों में सुधार नहीं किया गया तो आगामी विधानसभा चुनावों के परिणाम भी आश्चर्यजनक हो सकते हैं।
स्मरण रहे कि पूर्व में उप्र सहित कुछ प्रदेशों में उपचुनाव हुए थे उनमें भी कुल मिलाकर विपक्ष की स्थिति अगर बहुत अच्छी नहीं तो बहुत खराब भी नहीं रही थी। यह कुछ ऐसे बिंदु हैं जिन पर भाजपा और उसके नेताओं को राहुल गांधी की जो एक लहर सी चलती नजर आ रही है कह कोई कुछ भी ले लेकिन पप्पू अब सुलझे विचाारों के मंझे हुए राजनेता हो चुके हैं जो मतदाता की नब्ज टटोलने के साथ साथ उसकी परेशानियों जो समझकर उनसे मानसिक रूप से जुड़ रहे हैं और उन्हें सफलता भी मिल रही है। जो पूर्व में हुए विधानसभा चुनाव में भी कांग्रेस ने हिमाचल प्रदेश और कर्नाटक में जीत हासिल करने में सफलता प्राप्त की थी।
11 अक्टूबर से पहले नई परिषद का गठन होना तय बताया जा रहा है। यह चुनाव भाजपा ने जम्मू कश्मीर विधानपरिषद के पूर्व अध्यक्ष हाजी इनायत अली को चेहरा बनाकर लड़ा था जो नेका प्रत्याशी से हार गए। बताते चलें कि 30 सदस्यीय परिषद में 26 सीटों पर चुनाव हुआ। नेका के वर्तमान अध्यक्ष फिरोज अहमद खान भी चुनाव जीत गए।
लददाख के केंद्र शासित प्रदेश बनने के बाद हुए स्वायत पर्वतीय विकास परिषद के हुए चुनाव में कांग्रेस नेका गठबंधन को बहुमत, दो सीटों पर सिमटकर क्यों रह गई भाजपा
Share.