Sunday, December 22

मेरठ हापुड़ लोकसभा क्षेत्र से भाजपा में ही राजेंद्र अग्रवाल को चुनौती देने वालों की बढ़ रही है संख्या

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जैसे जैसे लोकसभा चुनाव का समय निकट आता जा रहा है वैसे वैसे प्रदेश से बाहर के भी कुछ प्रमुख नेता और सांसद व विधायकेां के उप्र में चुनाव लड़ने की सुगबुगाहट शुरू हो रही है।
कुछ समय पहले हुए पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव में भाजपा शासित प्रदेशों में जो बदलाव की लहर चली और देश के कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर जैसे नेताओं को केंद्र से प्रदेश में ले जाकर बैठा दिया गया और एक सफल सीएम सिद्ध हुए वहां के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को फिलहाल पद विहीन छोड़ा गया। उससे एक संदेश यह भी मिल रहा है कि तीन बार या उससे ज्यादा बार सांसद रह चुके नेताओं के टिकट काटकर नए चेहरों को सामने लाया जा सकता है। वैसे तो भी अभी यह सुगबुगाहट मध्य प्रदेश सहित उनही प्रदेशों में चल रही है जहां विधानसभा चुनाव के बाद नए चेहरों को प्राथमिकता मिली और पुरानों को केंद्र से प्रदेश में लाकर बैठा दिया गया।
उत्तराखंड के हरिद्वार की खानपुर विधानसभा सीट से पूर्व विधायक कुंवर प्रणय सिंह चैंपियन ने एक बयान में कहा कि वो अगला चुनाव यूपी की मेरठ बिजनौर अमरोहा या सहारनपुर से लड़ेंगे। भले ही उन्होंने चार सीट गिनाई हो मगर किसी वजह से उनकी किस्मत खुली तो मोखिक सूत्रों का कहना है कि वो पहली पसंद मेरठ-हापुड़ लोकसभा क्षेत्र को रख सकते हैं।
अब अगर किसी वजह से उनकी बात सही होती है तो फिलहाल इस सीट से सांसद राजेंद्र अग्रवाल के सामने एक ओर संभावित उम्मीदवार को पछाड़कर टिकट प्राप्त करने की चुनौती होगी। लेकिन दूसरी तरफ यह चर्चा भी महत्वपूर्ण है कि उप्र में ना तो विधानसभा चुनाव हो रहे हैं और ना ही अभी राजेंद्र अग्रवाल की उम्र इतनी हुई है कि उन्हें इस कारण से उनकी सीट पर किसी और के बारे में सोचा जाए। दूसरे अभी तक जितने लोगों के नाम सामने आ रहे हैं भले ही उनकी छवि लोकप्रियता कितनी हो मगर राजेंद्र अग्रवाल के इर्द गिर्द नहीं पहुंच रही है और वाहनों पर मिशन 2024 मेरठ हापुड़ लोकसभा सीट लिखवाकर या कुछ आयोजन कराने से कोई उनका मुकाबला नहीं कर सकता है। जिस प्रकार पूर्व पीएम स्व. इंदिरा गांधी क्या निर्णय लंेगी यह कोेई नहीं सोचता था उसी प्रकार पीएम मोदी कब क्या फैसला लेंगे कब किसको उसकी छवि के अनुसार अर्श से फर्श पर पहुुंचाएगे कोई कुछ नहीं कह सकता है। यह बात राजंेद्र अग्रवाल के लिए आशा की प्रतीक है। उनकी ईमानदार छवि और जनमानस में पकड़ पहले से कम नहीं हुई है। कुछ लोगों का यह कहना है कि वो चुनाव में कम वोटों से जीते थे राजनीति में वोटों की गिनती नहीं वो जीते या हारे यह महत्वपूर्ण होता है। आज अगर आप कोई चुनाव हारते हैं और आपकी छवि अच्छी है तो किसी नेता को विधानसभा या संसद में स्थान मिलने से इनकार नहीं किया जा सकता। फिलहाल इतना कहा जा सकता है कि राजेंद्र अग्रवाल का टिकट भले ही ना कटे लेकिन उनके मुकाबले टिकट मांगने वालों में दिन प्रतिदिन बढ़ोतरी हो रही है। इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता। दूसरी और अभी यह भी नहीं कहा जा सकता कि चैंपियन किस पार्टी से चुनाव लड़ेंगे।

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