Sunday, December 22

जनप्रतिनिधियों के वेतन और पेंशन में नहीं भत्तों में हो बढ़़ोत्तरी

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जमीनी स्तर पर काम करने वाले ग्राम पंचायत के प्रधान से लेकर महापौर तक के लिए बीते दिवस भाजपा सांसद राधामोहन दास अग्रवाल ने राज्यसभा में वेतन भत्ते व पेंशन दिए जाने की मांग उठाई। लोकतंत्र में सबको अपनी बात कहने का अधिकार है। फिर राधामोहन दास तो हमारे जनप्रतिनिधि और सबसे उच्च सदन के सदस्य है। वो संविधान मंे रददोबदल और कानून बनाने में अपनी राय देने के लिए भी अधिकृत हैं लेकिन उनकी मांग पर तो मैं कोई टिप्पणी करने में अपने आपको सक्षम नहीं मानता लेकिन एक आम आदमी होने के नाते मुझे भी अपनी बात कहने का अधिकार है हो सकता है कि किसी को मेरी बात बुरी लगे तो उनसे में मैं पहले ही माफी मांगता हूं और मैं यह कहना चाहता हूं कि संविधान के 73 व 74 वे अनुच्छेद में संशोधन करने पर तो सरकार को विचार करना है लेकिन वर्तमान में जो स्थिति कोरोना के बाद आम आदमी की हो गई है और वो आर्थिक रूप से काफी कमजोर नजर आता है। अगर इन पदों पर बैठे जनप्रतिनिधियों के लिए वेतन भत्ते पेंशन स्वीकार की जाती है तो उस पर होने वाले खर्च को लेकर जो टैक्स बढ़ाए जाएंगे वो सहने की ताकत इस समय आम आदमी में नहीं नजर आती है। इसलिए आप सरकार को सुझाव दें कि वो यह प्रस्ताव लागू करे लेकिन उस पर जो खर्च होना है उसकी व्यवस्था टैक्स ना लगाकर अपने और सरकारी हुक्मरानों के खर्चों में कमी लाकर करे। वैसे तो हो सकता हूं कि मैं गलत हूं लेकिन हमारे विधायक सांसद मंत्रियों आदि को आम आदमी पलकों पर बैठाता है और इनके मान सम्मान के लिए पलक पावड़े बिछाए रहता है। इसलिए यह सम्मान और अपनापन कम नहीं है जो पेंशन और भत्तों की जरूरत जनप्रतिनिधियों को पड़े। मेरी तो राय है कि हमारे जो अन्य जनप्रतिनिधि है उनको मिलने वाला वेतन और पेंशन में भी कटौती होनी चाहिए यात्रा और आवभगत जैसे भत्तों में बढ़ोत्तरी की जाए तो कोई बुराई नही है क्योकि यह सब जनप्रतिनिधि क्षेत्र की जनता के लिए ही करते हैं। और उसकी आवश्यकता भी है।

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